उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के ऊंचाहार तहसील के अंतर्गत आने वाले मियांपुर गांव में जग्गी प्रसाद सिंह 76 साल की उम्र में भी खेती किसानी में कमाल कर रहे हैं. कृषि विभाग में मार्केटिंग इंस्पेक्टर के पद पर रह चुके जग्गी प्रसाद सिंह ने रिटायर होने के बाद कुछ बड़ा करने की ठान ली. सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने फंड के पैसों से रायबरेली जनपद के मियांपुर गांव में 10 बीघा बंजर जमीन खरीदा. गौ आधारित तरीकों से अपनी इस उसर जमीन को उन्होंने 2 साल के भीतर ही उपजाऊ बना दिया. आज जग्गी प्रसाद अपने क्षेत्र में खेती पशुपालन और मछली पालन में नए आयाम गढ़ रहे हैं. उन्होंने 10 बीघे के फार्म में गौ आधारित प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, तो वहीं इसके साथ ही मछली पालन और बकरी पालन भी कर रहे हैं. वे बताते हैं शरीर भले ही बुजुर्ग हो गया है लेकिन बढ़ती उम्र का एहसास उन्हें थोड़ा भी नहीं है. वे आज भी पूरी तरीके से फिट हैं. उन्हें कोई बीमारी नहीं है. खुद को फिट रखने के लिए वे प्राकृतिक खेती से पैदा किए हुए अनाज का उपयोग करते हैं.
जग्गी प्रसाद सिंह ने 'किसान तक' को बताया कि सेवानिवृत्त होने के बाद मिलने वाली पेंशन से वह अपना गुजारा बैठकर कर सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी. इसीलिए उन्होंने फंड से मिले हुए पैसों से गांव में 10 बीघे उसर, बंजर जमीन बहुत ही सस्ते दामों पर खरीद ली. गौ आधारित तरीके से उन्होंने जीवामृत, घन जीवामृत का उपयोग करके अपनी उसर जमीन को उपजाऊ बना डाला. 2 साल के भीतर ही उनकी जमीन पर फसल लह-लहाने लगी.
किसानों की आय को दोगुना करने के लिए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार भी प्रयासरत है. किसान भी लगातार अपनी आय को बढ़ाने के लिए खेती में नए-नए तरीके अपना रहे हैं. जग्गी प्रसाद सिंह भी गौ आधारित जीरो बजट खेती को पिछले 4 सालों से कर रहे हैं. वे बताते हैं कि जीरो बजट खेती किसानों के लिए काफी फायदा फायदेमंद है, क्योंकि पूर्ण तरीके से प्राकृतिक होने से फसल की लागत में कमी आती है. वह अपने खेतों में किसी भी तरीके की रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं. वह पूर्ण रूप से गौ आधारित जीवामृत, घन जीवामृत, वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग करते हैं.
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वहीं उनके खेतों में फसल का उत्पादन भी रासायनिक खाद के मुकाबले कम नहीं है. उनके अनाज में गुणवत्ता ज्यादा होती है. वह प्रतिवर्ष मछली पालन से ढाई लाख रुपए की आमदनी करते हैं. इसके अलावा खेती के माध्यम से भी वे 2 से 3 लाख रुपए प्रति वर्ष कमाई करते हैं.
जग्गी प्रसाद खेतों से पैदा होने वाले अवशेष को जलाते नहीं है, बल्कि उनका कई तरीके से उपयोग करते हैं. उन्होंने अपने खेत में एक साथ गन्ने और आलू की फसल को लगाया हुआ है. वहीं पराली के माध्यम से उन्होंने खेतों को ढका है. वे बताते हैं कि इससे नमी खेत में बनी रहती है. इसके साथ ही डी-कंपोजर की माध्यम से वे पराली को खेत में ही सड़ा कर खाद बना लेते हैं जिससे उनके खेत उपजाऊ हो जाते हैं और उत्पादन बढ़ जाता है.
अपने 10 बीघे के फार्म में जग्गी प्रसाद मछली पालन भी करते हैं. उन्होंने तीन अलग-अलग तालाब बना रखे हैं. एक तालाब में वह मछली पालन के लिए बच्चों को पैदा करते हैं, तो वहीं दो अलग-अलग तालाबों में अलग-अलग तरह की मछलियों का पालन करते हैं. वह मछली पालन से सालाना 2.5 लाख रुपए से 3 लाख रुपए की आमदनी करते हैं.
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वहीं उन्होंने बकरी पालन भी शुरू किया है. वह बीटल नस्ल की बकरी का पालन कर रहे हैं जो काफी बड़ी होती है. हालांकि अभी संख्या कम है, लेकिन आगे वह इसमें बढ़ोतरी करेंगे.