प्रदूषित वातावरण और केमिकलयुक्त खाद्यान्न फसलों से होने वाली बीमारियों का प्रकोप जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे लोग केमिकल-मुक्त उपजाई गई फसलों का महत्व समझने लगे हैं और ऐसे खाद्यान्न की मांग भी बढ़ने लगी है. इसी कारण जैविक या प्राकृतिक खेती की पद्धतियां जोर पकड़ रही हैं. हालांकि, अधिकतर किसानों का कहना है कि प्राकृतिक खेती में केमिकल खेती के मुकाबले उत्पादन कम मिलता है, जिससे प्राकृतिक और जैविक खेती को कम अपनाया जा रहा है. लेकिन ताराचंद बेलजी ने भारतीय प्राचीन कृषि पद्धतियों, खासकर पंचमहाभूत तकनीक को अपनाकर प्राकृतिक खेती में नई दिशा दी है. आज उनका नाम देश भर में प्राकृतिक खेती के सफल उदाहरण के रूप में लिया जाता है. उनका दावा है कि पंचमहाभूत तकनीक से वह रासायनिक खेती की तुलना में अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं. यह तकनीक न केवल उत्पादन बढ़ाती है, बल्कि भूमि को उर्वर और फसलों को भी स्वस्थ और उपज को पौष्टिक बनाती है.
मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के एक छोटे गांव कनई से निकले किसान ताराचंद बेलजी का दावा है कि भारतीय प्राचीन तकनीक पंचमहाभूत तकनीक वाली प्राकृतिक खेती से रासायनिक खेती से ज्यादा उत्पादन मिल रहा है. उनकी तकनीक पर खेती करने वाले किसानों की संख्या लाखों में है. बेलजी एक छोटे से किसान से प्राकृतिक खेती और जैविक कृषि का सफल मॉडल बन चुके हैं.उनके परिवार के पास 30 एकड़ जमीन थी.ताराचंद ने जब जहरीले कीटनाशकों और रसायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव को महसूस किया, तो उन्होंने 2003 में चित्रकूट जाकर नानाजी देशमुख से खेती के प्रयोगों को सीखा और प्राचीन भारत की कृषि पद्धतियों का अध्ययन किया. इसके बाद 2009 में नरसिंहपुर आकर केमिकल खेती के विकल्प की तलाश में जुट गए और भारत की कृषि पद्धतियों को जमीन पर उतारा.
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ताराचंद ने प्राकृतिक खेती में भारतीय प्राचीन कृषि की पंचमहाभूत युक्त कृषि को अपनाया और बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक के भी उत्पादन ज्यादा मिलने लगा. उनका कहना है कि उत्पादन के मामले में केमिकल खेती को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. रासायनिक खेती से उपजी फसल और मानव स्वास्थ्य की बीमारियों को भी इस पंचमहाभूत खेती ने खत्म कर दिया है. उनके खेतों में हरी-भरी स्वस्थ फसल आ रही है और दूषित और कठोर हो चुकी मिट्टी मक्खन जैसी मुलायम हो गई है. इस खेती से उपजे भोजन में विटामिन, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से युक्त उच्च गुणवत्ता का खाद्यान्न मिल रहा है, जो खाने में स्वादिष्ट और शरीर के लिए पौष्टिक है.
ताराचंद ने सब्जियों से ज्यादा उत्पादन पाने के लिए 3G और 4G तकनीक को प्रचलित किया है. उनका दावा है कि लौकी के एक पौधे से 1,000 लौकियों तक का उत्पादन संभव है. उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि की पंचमहाभूत युक्त कृषि को अपनाया और बताया कि इसके बाद बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक के भी उत्पादन ज्यादा मिलने लगा है. उनका कहना है कि उत्पादन के मामले में केमिकल खेती को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. अपनी प्राकृति खेती का नाम TCBL मॉडल रखा है.
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बेलजी का कहना है कि मौजूदा प्राकृतिक-जैविक खेती का मॉडल पूरी तरह से कारगर नहीं है. उन्होंने देखा कि गोबर की खाद से पौधों को पूरी तरह से पोषण नहीं मिल पाता, जिसके कारण किसान को उतना उत्पादन नहीं मिल पाता जितना कि अच्छी आमदनी के लिए जरूरी होता है. पोषक तत्वों की कमी के कारण फसलों को कीड़े-मकोड़े भी आसानी से चपेट में ले लेते हैं. उनका मानना है कि रसायनिक खेती के कारण हमारी भूमि से जरूरी तत्व खत्म हो गए हैं और मिट्टी नकारात्मक हो गई है. बेलजी का कहना है कि भूमि में पंचमहाभूत के संतुलन से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी खेती की जा सकती है. इस तकनीक ने उनकी फसलों को न केवल अधिक उत्पादन दिया, बल्कि फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर की है.