अगर हमारे अंदर कुछ करने का जज्बा हो तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं. ऐसा खेती-किसानी में देखने को मिलता है. दिनेश पाटीदार एक ऐसे किसान हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से बंजर जमीन को भी सोना बना दिया. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के कसरावद तहसील के बालसमुद गांव के रहने वाले दिनेश पाटीदार ने 20 साल पहले अपनी पुश्तैनी बंजर जमीन पर खेती शुरू की थी. उस समय जमीन में कोई फसल नहीं होती थी और सिंचाई की भी कोई सुविधा नहीं थी. लेकिन दिनेश ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपनी मेहनत से इस जमीन को करोड़ों की कमाई का जरिया बना दिया.
दिनेश पाटीदार को अपनी पुश्तैनी जमीन से कोई खास आमदनी नहीं हो रही थी. इसलिए उन्होंने कुछ नया करने का सोचा. उन्होंने पौधों के बारे में जानकारी जुटाई और विलुप्त प्रजातियों के बारे में भी जानकारी हासिल की. उन्होंने एक नर्सरी खोलने का फैसला किया, पहले शौकिया तौर पर सिर्फ 100 पौधों से नर्सरी शुरू की फिर पूरी जानकारी जुटाकर साल 2006 में दिनेश पाटीदार ने 3 लाख रुपये लोन लेकर नर्सरी का काम शुरू किया. लेकिन उनकी जमीन बंजर थी और सिंचाई की कोई सुविधा नहीं थी. बिजली विभाग से कई चक्कर लगाने के बाद भी उनके खेतों तक बिजली के तार नहीं पहुंचे. लेकिन दिनेश ने हार नहीं मानी. उन्होंने सिंचाई के लिए सोलर पैनल लगाए और नर्सरी की शुरुआत की.
दिनेश पाटीदार ने अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए कई नर्सरियों और ट्रेनिंग कार्यक्रमों में भाग लिया. इसके बाद उन्होंने तोरणमाल और पातालकोट के जंगलों से काली हल्दी, लोहगल और गरुड़ फल जैसे औषधीय पौधे जुटाए. उनकी नर्सरी स्थापित होने के बाद उन्होंने देश की दुर्लभ और विलुप्त पौधों की प्रजातियों को संरक्षित करना शुरू किया. आज उनकी नर्सरी में करीब 200 औषधीय गुणों वाले पौधे, 25 से अधिक फलों के पौधे, फॉरेस्ट पौधे और 50 से अधिक प्रकार के सजावटी और फूलों वाली प्रजातियों के पौधे हैं.
दिनेश पाटीदार की मेहनत रंग लाई और उनकी नर्सरी से उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा. उन्होंने सिर्फ 20 सालों में न केवल अपने खेतों की तस्वीर बदल दी, बल्कि उनकी प्रेरणा से इलाके के किसान भी परंपरागत खेती के अलावा औषधीय जैविक खेती और बागवानी करने लगे हैं. आज उनकी नर्सरी के पौधे महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के 500 से ज्यादा स्थानों पर पहुंचाए जाते हैं. उनकी नर्सरी में हर समय 5 से 6 लाख नर्सरी पौधे तैयार रहते हैं. वह करोड़ों पौधे बेचकर हर महीने 10 से 13 लाख रुपये का मुनाफा कमाते हैं. वह अपनी कमाई के साथ-साथ 15 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.
दिनेश पाटीदार की नर्सरी में 200 से अधिक किस्मों के पौधे तैयार होते हैं. फल वाले पौधे 6 महीने से लेकर साल भर में तैयार होते हैं, वहीं, फॉरेस्ट वाले पौधे साल भर में तैयार होते हैं और औषधीय और सजावटी पौधे तीन महीने में तैयार हो जाते हैं. उनकी नर्सरी में आम, अमरूद, अनार, आंवला, किन्नू, संतरा, नींबू, खजूर, माल्टा, इज्जाफा और थाई एप्पल बेर सहित कई तरह के पौधे मिलते हैं. वहीं, काली हल्दी, लोहगल और गरुड़ फल जैसे औषधि पौधे मिलते है.
दिनेश पाटीदार ने विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए हैं. जब भी उन्हें पता चलता है कि किसी स्थान पर कोई औषधीय पौधा मिलने की संभावना है, तो वह वहां चले जाते हैं और उसकी तलाश करते हैं. ऐसे ही प्रयासों में उन्होंने पातालकोट के घने जंगलों से काली हल्दी, लोहगल और गरुड़ फल जैसी कई औषधियां एकत्रित की हैं. दिनेश पाटीदार ने बताया कि उनके पास विलुप्त प्रजाति के अनेक पौधे हैं. इनमें काली हल्दी, गरुड़ फल, कवीट, सफेद और पीला पलाश, लक्ष्मण और हनुमान फल सहित दर्जनों विलुप्त प्रजाति के पौधे उनकी नर्सरी में मिलते हैं.