कहावत है, अगर सीखने और करने की ललक हो तो इंसान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. यह कहावत शुष्क और कम पानी की खेती के लिए कुख्यात राजस्थान के किसान रामेश्वर लाल जाट पर सटीक बैठती है. भीलवाड़ा जिले के कोटड़ी पंचायत समिति के खजीना गांव के रहने वाले रामेश्वर लाल ने मुश्किल हालात वाली जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की सफल खेती की है. शुरूआत में जब इन्होंने खेत में ड्रैगन फ्रूट लगाए तो आसपास के बुजुर्ग और अन्य किसानों ने इन्हें ताने दिए, लेकिन दो साल की कड़ी मेहनत के बाद आज रामेश्वर एक सफल ड्रैगन फ्रूट उगाने वाले किसान हैं.
किसान तक से वे कहते हैं, “जिन लोगों ने शुरूआत में मेरा मनोबल तोड़ा, ताने दिए अब वही किसान अपने बच्चों के साथ मेरी खेती के बारे में सीखने के लिए आते हैं.”
रामेश्वर लाल जाट से किसान तक ने उनकी पूरी कहानी जानी. वे कहते हैं, “एक बार मैं अपने रिश्तेदारों के पास गुजरात गया. वहां कच्छ, गांधीनगर में उनके खेतों में ड्रैगन फ्रूट की खेती हो रही थी. मैंने उत्सुकता में उनसे इसके बारे में पूछा. सुनकर लगा कि यह फायदे की खेती है. इसीलिए वापस आकर एक दोस्त की मदद से श्रीलंका से करीब 700 पौधे मंगाए. खेतों को ड्रैगन फ्रूट के लिए तैयार करने में छह-सात लाख रुपये का खर्चा आया. मैंने अपने यहां दो बीघे में इसकी खेती 2020 में शुरू कर दी.”
रामेश्वर किसान तक को बताते हैं, “पिछले साल इस खेत में कुछ फल लगे थे. संख्या करीब 500 होगी. इसे मैंने बेचा नहीं बल्कि दोस्तों और रिश्तेदारों में बांट दिया. इस साल पौधे बड़े हुए हैं. इसीलिए मुझे कम से कम 10 क्विंटल फसल की उम्मीद है. पौधे में फल आने पर इसकी लंबाई एक फीट तक हो जाती है. अभी 27 महीने के एक पौधे में कम से कम 10 फल आते हैं और एक फल 300-400 ग्राम का होता है. मेरा फल वजन और आकार में कम है इसीलिए इसमें मिठास ज्यादा है. वजनी ड्रैगन फ्रूट में मिठास कम होती है.”
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ड्रैगन फ्रूट के बाजार और फल के बारे में रामेश्वर बताते हैं कि भीलवाड़ा जैसी छोटी जगह में ड्रैगन फ्रूट नहीं बिकता. क्योंकि यहां के लोग इसके बारे में जानते ही नहीं है. इसीलिए जयपुर, अहमदाबाद या दिल्ली में इसकी सप्लाई करूंगा.
वे जोड़ते हैं, “ ड्रैगन फ्रूट में मई के महीने में फूल आता है. वहीं, जून तक फल आ जाता है और एक महीने में पक जाता है. इसके बाद दीपावली तक इसमें फल आते रहते हैं.”
रामेश्वर लाल के दो बीघे के खेत में लगे ड्रैगन फ्रूट के पौधे करीब आठ फीट ऊंचे सीमेंट के खंभों के सहारे टिके हुए हैं. वह कहते हैं, “एक पोल पर इसके चार पौधे लगते हैं. पांच साल की उम्र के पौधे पर 20-25 किलो तक वजन वाले फल लगते हैं.
ड्रैगन फ्रूट 45 डिग्री तक की गर्मी सहन कर जाता है, लेकिन कई बार यहां इससे ज्यादा भी तापमान चला जाता है. इसीलिए फंगस और अन्य बीमारियों से बचाव के लिए मैंने ग्रीन शेड लगाया है. वहीं, खेती में सिर्फ देशी खाद का इस्तेमाल ही करता हूं.”
ड्रैगन फ्रूट की खेती करने से पहले रामेश्वर लाल सामान्य रबी और खरीफ की खेती करते थे. वे बताते हैं, “पहले मैं रबी में गेहूं और सरसों की उपज लेता था और खरीफ में कपास और मक्का की. लेकिन उनका भाव ही अच्छा नहीं मिलता था. इसीलिए मैंने खेती में कुछ अलग करने की ठानी.”
रामेश्वर जोड़ते हैं, “इसकी खेती के साथ एक सबसे अच्छी बात यह है कि एक बार लगाए हुए पौधे करीब 40 साल तक चलेंगे. इसी में से नए पौधे फूटेंगे.”
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रामेश्वर लाल ने दो बीघे में ड्रैगन फ्रूट लगाया है. लेकिन दो पोल यानी खंभों के बीच में करीब सात-आठ फीट जगह छोड़ी है. इस जगह में उन्होंने मिर्ची के पौधे लगा दिए हैं. साथ ही दूसरे सीजन में वे अन्य सब्जी के पौधे भी इसमें लगा देते हैं. वे बताते हैं, “सब्जी के बेचने से मेरा मजदूरी और अन्य सामान्य खर्च निकल जाते हैं. इस तरह ड्रैगन फ्रूट बेचने पर मुझे शुद्ध मुनाफा ही होगा.”
रामेश्वर लाल जाट किसान तक को बताते हैं कि शुरूआत में तो परिवार के अलावा किसी ने मेरी हौसला अफजाई नहीं की. बल्कि बुजुर्ग और साथी किसानों ने ताने ही दिए, लेकिन जब वे इसमें फल आते देख रहे हैं और इसके भाव के बारे में उन्हें पता चल रहा है तो वे अब मुझसे ये खेती सीखने आ रहे हैं. इसीलिए मैंने घर में ही एक छोटी सी नर्सरी भी तैयार की है. इसमें एक हजार से अधिक ड्रैगन फ्रूट के पौधे तैयार हो रहे हैं. इन्हें मैं अपने आसपास के किसानों को ही बेच रहा हूं.