पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी न करते हुए अपने परिवार का बिजनेस संभालना किसी भी इंसान के लिए मुश्किल फैसला हो सकता है. खासकर तब, जब वह बिजनेस खेती से जुड़ा हुआ हो. पंजाब के फरीदकोट के रहने वाले बोहाड़ सिंह गिल के लिए भी यह फैसला शायद मुश्किल रहा हो, लेकिन उन्होंने 10 साल में 2.5 करोड़ का बिजनेस खड़ा करके कइयों के लिए मिसाल कायम की है.
तय किया 37 से 250 एकड़ का सफर
गिल ने लुधियाना की पंजाब एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी से एग्रिकल्चर में बैचलर इन साइंस की डिग्री हासिल करने के बाद अपने गांव लौटने का फैसला किया. उन्होंने पहले अपनी पुश्तैनी 37 एकड़ ज़मीन पर गेहूं और धान की पारंपरिक खेती से शुरुआत की. लेकिन आलुओं के व्यापार में मुनाफा देखकर जल्द ही उन्होंने दो एकड़ पर आलू उगाने का फैसला किया.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट गिल की सफलता की कहानी लिखते हुए बताती है कि जब उन्हें आलू में मुनाफा हुआ तो उन्होंने 200 एकड़ ज़मीन लीज़ पर लेकर डायमंड और एलआर जैसे शुगर-फ्री आलू उगाने का फैसला किया. इस फैसले ने गिल की ज़िन्दगी बदल दी.
शुगर-फ्री आलू से की बंपर कमाई
गिल बताते हैं कि शुगर-फ्री आलू की मांग इतनी ज्यादा है कि वह 250 एकड़ से भी इसे पूरा नहीं कर पाते हैं. एक्सप्रेस की रिपोर्ट गिल के हवाले से कहती है, “मैंने अपनी ज़मीन में गेहूं और धान से शुरुआत की, फिर कुछ एकड़ में आलू से. नतीजों ने मुझे गेहूं उगाना बंद करने और आलू पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया."
वह कहते हैं, "मैंने अपनी खेती का विस्तार करने के लिए ज़मीन पट्टे पर लेना भी शुरू कर दिया. इस साल मैं 250 एकड़ में आलू की खेती कर रहा हूं. इसमें मेरी 37 एकड़ पुश्तैनी जमीन भी शामिल है. शुगर-फ्री आलू की मांग बहुत ज्यादा है और मैं जो ऑर्डर मिलता है उसे पूरा नहीं कर सकता."
उनके विविध फसल पोर्टफोलियो में अब आलू के अलावा मक्का, मूंग, धान और प्रीमियम बासमती चावल भी शामिल हैं. अब न सिर्फ गिल करोड़ों में कमाई कर रहे हैं, बल्कि दूसरों को रोज़गार भी दे रहे हैं.
सरकार का मिला समर्थन, कमाई हुई करोड़ों में
पानी की कमी की चुनौती को पहचानते हुए गिल ने दो साल पहले स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली स्थापित की. उन्होंने 40 एकड़ से इसकी शुरुआत की. और अब इसे अपने 150 एकड़ में फैला लिया है. वह बताते हैं, “मैंने आलू की खेती में पानी की खपत 50 प्रतिशत से कम कर दी है. यह विधि मिट्टी में हवा से नाइट्रोजन भी पहुंचाती है."
वह बताते हैं, "इससे यूरिया की खपत 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है और फसल की गुणवत्ता और पैदावार में सुधार होता है. इस प्रणाली ने मिट्टी को नरम बनाए रखा है इसलिए मैंने इसे 150 एकड़ में विस्तारित किया. मेरी योजना अपनी सारी ज़मीन को स्प्रिंकलर प्रणाली के अंतर्गत लाने की है.”
गिल बताते हैं कि सरकार किसानों को स्प्रिंकलर से सिंचाई के लिए सब्सिडी भी देती है. सब्सिडी के बाद एक एकड़ की सिंचाई की लागत सिर्फ 15,000 रुपए आती है.
200 एकड़ जमीन पर 70,000 रुपये प्रति एकड़ की मोटी लागत के बावजूद गिल अपनी नई तकनीकों और सही फसल के चयन के कारण अच्छी कमाई कर रहे हैं. सभी खर्चों को पूरा करने के बाद गिल प्रति एकड़ एक लाख रुपये का शुद्ध लाभ कमा रहे हैं. यानी 250 एकड़ से उनकी वार्षिक कमाई 2.5 करोड़ रुपये है. वह कहते हैं, "यह आय विदेश में डॉलर कमाने वाले मेरे दोस्तों से भी ज्यादा है."