बाराबंकी जिले के तेजवापुर गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान नवनीत वर्मा ने टमाटर की खेती में अनोखा प्रयोग कर शानदार सफलता हासिल की है. दरअसल नवनीत ने तीन साल पहले इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (IPM) तकनीक से 4 एकड़ में टमाटर की खेती शुरू की. जिससे उनकी टमाटर की बंपर पैदावार के साथ ही लागत भी कम आई. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में किसान नवनीत वर्मा ने बताया कि बीते 25 वर्षों में वो टमाटर की खेती कर रहे हैं. लेकिन 3 साल पहले जब हमने IPM तकनीक का इस्तेमाल किया तो अच्छी पैदावार टमाटर की हुई. इससे हमारी सब्जियों में कीड़े-मकोड़े से नुकसान नहीं होता. यह सीधे नीले पीले ट्रैप पर अटैप हो जाते हैं. वर्मा बताते हैं कि इस एक फसल से अब तक लाखों रुपये कमा चुके हैं.
किसान नवनीत वर्मा की गिनती बाराबंकी के बड़े और जागरूक किसानों में होती है. उन्होंने बताया कि रासायनिक दवाएं न सिर्फ काफी महंगी पड़ती हैं बल्कि सेहत, फसल और यहां तक खेती की मिट्टी को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं. लेकिन इससे बिना कीटनाशक भी खेती कर सकते हैं. वहीं इस साल 2024 मुनाफे के सवाल पर उन्होंने बताया कि 1 एकड़ में लागत निकालने के बाद 7-8 लाख की बचत हो रही है. कुल मिलाकर 4 एकड़ में 22-25 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. टमाटर की खेती में ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है न ही बहुत ज्यादा देखरेख की जरूरत है. समय-समय पर खाद्य, बीज, पानी देने से टमाटर तैयार हो जाता है.
तेजवापुर गांव के निवासी किसान नवनीत वर्मा ने कहा कि टमाटर की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर की जा सकती है, जिसमें रेतीली दोमट, चिकनी मिट्टी, लाल और काली मिट्टी शामिल हैं. जिस खेत में टमाटर की रोपाई करना है वहां पर जल निकासी की उचित व्यवस्था हो. आईपीएम किट के सहारे 500 क्विंटल इस साल टमाटर की पैदावार हो जाएगी. उन्होंने बताया कि इस विधि से फसलों में कीटों की समस्या कम हुई है. वहीं, कीटनाशकों पर होने वाले खर्च की भी बचत हो रही है.
नवनीत कहते हैं कि हमारे खेत के टमाटर की सप्लाई सबसे ज्यादा नेपाल में होती है. वहीं, गोरखपुर और लखनऊ के मंडियों में भी भेजा जाता है. 1800 रुपये प्रति क्विंटल के रेट से हमारे टमाटर को व्यापारी खरीद लेते है. यानी एक किलो टमाटर 18 रुपये. अब तक लाखों रुपये की कमाई टमाटर से हो चुकी है.
उप कृषि निदेशक बाराबंकी श्रवण कुमार ने बताया कि आईपीएम में कई यांत्रिक उपाय किए जाते हैं, जो कीटों को आकर्षित करके उन्हें नियंत्रित करते हैं. इनमें सबसे प्रमुख है स्टिकी स्ट्रिप. यह चिपचिपी पन्नी होती है, जो चार रंगों में उपलब्ध होती है - नीली, पीली, काली और सफेद. इन रंगों के कारण कीट इन पन्नियों पर खिंचे चले आते हैं और चिपक जाते हैं. इसके अलावा एक और यांत्रिक उपाय है 'फेरोमोन ट्रैप'. इस ट्रैप में रबर का ढक्कन होता है, जिसमें मादा कीट की खुशबू का केमिकल प्रयोग किया जाता है. इस खुशबू से अन्य कीट आकर्षित होते हैं और ट्रैप में फंस जाते हैं. उन्होंने कहा कि यह विधि केवल आर्थिक दृष्टि से ही लाभकारी नहीं, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है.
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