राजस्थान में सेब तो मध्य प्रदेश में थाई अमरूद की खेती, कृषि में स्टार्टअप जैसी हलचल

राजस्थान में सेब तो मध्य प्रदेश में थाई अमरूद की खेती, कृषि में स्टार्टअप जैसी हलचल

एक अपरिचित फसल पर दांव लगाने और सफलता पाने वाले ऐसे भारतीय किसानों की तादाद बढ़ती जा रही है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वाली फसलों के लालच से परे जाकर प्रयोग करने की हिम्मत दिखाने लगे हैं. इस प्रक्रिया में नए जमाने के किसान न केवल पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं बल्कि वो जलवायु की बंदिशों को भी तोड़ने लगे हैं.  

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Apr 07, 2025,
  • Updated Apr 07, 2025, 7:37 PM IST

देश में इन दिनों खेती के क्षेत्र में बिल्‍कुल किसी स्‍टार्टअप जैसी हलचल देखने को मिल रही है. रेगिस्‍तान जैसी जगह पर सेब उगाया जा रहा है तो मध्‍य प्रदेश में थाई अमरूद की खेती हो रही है. किसान जो पहले इस तरह के प्रयोगों को लेकर आशंकित रहते थे, अब बिना किसी डर के खेती में नए प्रयोगों को तरजीह देने लगे हैं. ऐसे किसान न केवल खुद को सफलता की ओर बढ़ रहे हैं बल्कि अपने क्षेत्र के बाकी किसानों को भी प्रोत्‍साहित करने लगे हैं. 

पारंपरिक फसल से अलग तरह की खेती 

बिहार के पूर्णिया के किसान सोनू मक्के जैसी पारंपरिक फसल से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने लगे हैं. अपने इस फैसले के बारे में वह कहते हैं, 'मेरे गांव के पड़ोसी और किसान आशंकित थे और सच कहूं तो मैं भी थोड़ा डरा हुआ था. '26 साल के सोनू पूर्वी बिहार के जिले में ड्रैगन फ्रूट की व्यावसायिक खेती करने वाले पहले किसानों में शामिल थे जोकि अभी तक मध्य और दक्षिण अमेरिका में उगाया जाता रहा है.

साल 2018 में उन्होंने जो भरोसा खुद पर किया, उससे उन्‍हें भी सफलता मिली. सोनू कहते हैं, 'यह सही समय पर लिया गया सही फैसला था.' सोनू कहते हैं कि एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने में लगभग 5-7 लाख रुपये का खर्च आता है जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर और उससे जुड़े सभी खर्च शामिल हैं. 

पूंजी और अपने साहस के साथ किसानों ने सफलता की कई कहानियां लिखी हैं. एक अपरिचित फसल पर दांव लगाने और सफलता पाने वाले सोनू अकेले नहीं हैं. वे भारतीय किसानों की उस बढ़ती हुई जमात का हिस्सा हैं जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वाली फसलों के लालच से परे जाकर प्रयोग करने की हिम्मत दिखाने लगी है. इस प्रक्रिया में नए जमाने के किसान न केवल पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं बल्कि वो जलवायु की बंदिशों को भी तोड़ने लगे हैं.  

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राजस्‍थान में उगाया जा रहा सेब 

राजस्थान के गर्म रेगिस्तानी जलवायु में संतोष देवी सेब उगाती हैं. यह एक ऐसा फल जो कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के ठंडे इलाकों में खूब फलता-फूलता है. उन्होंने साल 2015 में अनार की जगह सेब के पेड़ लगाकर एक साहसिक कदम उठाया. वहीं शरबती गेहूं का क्षेत्र मध्य प्रदेश के विदिशा में विजय मनोहर तिवारी थाई अमरूद की खेती कर रहे हैं. इस अमरूद का एक अलग गुलाबी रंग होता है और इसकी भारतीय और अंतरराष्‍ट्रीय दोनों ही बाजारों में काफी मांग है. 

इसी तरह से अजमेर में रहने वाले एमबीए गुरकीरत सिंह ब्रोका अपने कमरे के अंदर ही कश्मीरी केसर उगा रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. केसर की खेती करने के लिए उन्‍होंने अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी. इस काम में उन्‍होंने 30 लाख रुपए का निवेश किया. उन्होंने अपनी पहली फसल से ही अच्छा मुनाफा कमाया और वर्तमान में वे केसर की खेती से सालाना 60 लाख रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं. वहीं कुछ लोग असम की घाटियों से दूर महाराष्‍ट्र  के कोल्हापुर में चाय भी उगा रहे हैं. 

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भारतीय किसान दिखा रहे हिम्‍मत 

साफ है कि भारतीय किसान पारंपरिक सीमाओं से आगे निकलकर साहसपूर्वक आगे बढ़ रहे हैं. वे गैर-पारंपरिक नकदी फसलों की कोशिश कर रहे हैं, अक्सर आरामदायक भौगोलिक सीमाओं से बाहर और एक तरह की साइलेंट ग्रीन रेवोल्‍यूशन 2.0 की शुरुआत कर रहे हैं. यह सन् 1960 और 1970 के दशक की पहली क्रांति से अलग है. अब इंटरनेट पर जानकारी का खजाना है. साथ ही मौसम की जानकारी और मिट्टी के परीक्षण आसानी से उपलब्ध हैं. भारत में खेती में एक स्टार्ट-अप जैसी उथल-पुथल देखी जा रही है. 

राजस्थान के सेब किसान राहुल, जिन्होंने एक पौधे से शुरुआत की थी, कहते हैं कि अब उनके पास 100 से ज्‍यादा पेड़ हैं. सीकर में रहने वाले राजस्थान के इस किसान ने बाद में अनार, चीकू, नींबू, किन्नू और दूसरे मौसमी फलों की खेती शुरू की और अब सालाना 40 लाख रुपये तक कमा लेते हैं. 

विदिशा के विजय मनोहर तिवारी साल भर बीजयुक्त, गूदेदार, कुरकुरे और मीठे थाई अमरूद उगाते हैं. वह कहते हैं कि करीब आधा किलोग्राम वजन वाले हर अमरूद की दिल्ली और मुंबई के बाजारों में प्रीमियम उपहार विकल्प के रूप में बहुत मांग है क्योंकि इसकी शेल्फ-लाइफ 10 दिनों तक है. तिवारी ने बताया, 'साल 2023 और 2024 में, मेरी थाई अमरूद फैक्ट्री ने 42 टन का उत्पादन किया.'  

(सुशिम मुकुल की रिपोर्ट) 


 

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