Success Story: लखनऊ के इस युवा किसान ने 18 साल की उम्र में शुरू किया फूलों का स्टार्टअप, अब लाखों में कमाई

Success Story: लखनऊ के इस युवा किसान ने 18 साल की उम्र में शुरू किया फूलों का स्टार्टअप, अब लाखों में कमाई

गौरव बताते हैं कि ग्लेडियोलस और रजनीगंधा फूलों की खेती सितंबर से शुरू होती है. उसके बाद अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर और जनवरी तक ये फूल खूब बिकते हैं.

फूलों की खेती से चमकी इस युवा किसान की किस्मत! (Photo-Kisan Tak)
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Apr 04, 2024,
  • Updated Apr 05, 2024, 11:05 AM IST

Success story: खेती-किसानी के क्षेत्र में बदलाव का दौर लगातार जारी है. यूपी के युवा भी अब नौकरी पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि वह अपनी किस्मत स्टार्टअप के साथ ही खेती-किसानी में भी आजमा रहे हैं. इसी कड़ी में राजधानी लखनऊ के मलिहाबाद के ढकवा गांव के रहने वाले गौरव कुमार महज 22 साल की उम्र में लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं. उन्होंने 18 साल की उम्र से ही ग्लेडियोलस और रजनीगंधा फूलों की खेती करनी शुरू कर दी थी और महज चार महीने में ही इससे 8 लाख रुपए कमा लिए.

इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से खास बातचीत में युवा किसान गौरव कुमार ने बताया कि उनके पिता शिव कुमार धान, गेहूं उगाते थे. उन्हें कई बार नुकसान हो जाता था. मौसम की मार की वजह से फसल खराब हो जाती थी. ऐसे में पिता को सहयोग करने के लिए इन्होंने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ज्वाइन किया, जहां से इन्हें फूलों की खेती के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने अपने पिता को यह आइडिया दिया कि गेहूं, धान की खेती तो सभी कर रहे हैं, क्यों ना, नई तरह की खेती की जाए, पहले तो उनके पिता नहीं माने, लेकिन बाद में उन्होंने इस पर सहमति दे दी.

ग्लेडियोलस और रजनीगंधा फूलों की खेती

गौरव बताते हैं कि ग्लेडियोलस और रजनीगंधा फूलों की खेती सितंबर से शुरू होती है. उसके बाद अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर और जनवरी तक ये फूल खूब बिकते हैं. सिर्फ 4 महीने में ही इन फूलों के जरिए चार से आठ लाख रुपए की कमाई हो जाती है. उन्होंने बताया कि इंटर बायो से किया और अब डी-फार्मा की पढ़ाई पूरी हो चुकी हैं. मेडिकल की पढ़ाई के साथ ही खेती पर भी पूरा ध्यान रहेगा. पिता के पास आम के कई बाग हैं और कई खेत हैं, जिन पर लौकी, कद्दू, धनिया के साथ ही आलू और तमाम सब्जियां उगाई जाती हैं. फूलों की खेती गौरव खुद करते हैं. अब पिता के आम बागानों की भी देखरेख वह खुद ही कर रहे हैं.

गौरव के पिता करते हैं आम की खेती

गौरव कुमार ने आगे बताया कि जब तक उनके पिता आम बागवानी का काम देखते थे, तब तक कभी भी आम विदेश नहीं गए, लेकिन उन्होंने अपने पिता को तकनीकी रूप से आइडिया दिया और आम विदेश भेजने के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से सलाह ली. इसके बाद वहां से कंपनियां आईं और करीब 20 क्विंटल आम पिछले साल जर्मनी भेजा गया था. इस साल भी आम विदेश भेजे जाने की पूरी संभावना है. आम पर बौर पूरी तरह से आ चुके हैं. उनका रखरखाव गौरव कुमार खुद कर रहे हैं.

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