बीमाधड़ी: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को किसानों के लिए सुरक्षा कवच बताया गया है. लाखों किसानों को इससे राहत मिली है लेकिन कुछ किसान फसल बीमा कंपनियों की मनमानी से परेशान भी हैं. इस योजना के ज्यादातर नियम कंपनियों के हक में हैं, इसलिए वो क्लेम देने में आनाकानी करती हैं. फसल नुकसान होने के बावजूद क्लेम पाना आसान नहीं है. उसके लिए किसानों को कई शर्तों का दरिया पार करना होता है. किसान इस योजना का मुख्य किरदार जरूर हैं, लेकिन इसके नियम और शर्तें तय करते वक्त कृषि मंत्रालय के अधिकारी और बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि ही होते हैं, उसमें किसानों की कोई भूमिका नहीं होती. इसीलिए किसान 'बीमाधड़ी' के शिकार होते हैं. इसके बावजूद कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिनके जरिए किसान इन कंपनियों से लड़कर अपना हक ले सकते हैं या फिर सावधानी बरत कर योजना में कदम बढ़ा सकते हैं.
फसल बीमा योजना में किसानों को अब तक सबसे बड़ा अधिकार यही है कि पूरा प्रीमियम जमा होने और फसल नुकसान के सैंपल के लिए क्रॉप कटिंग होने के 30 दिन के भीतर अगर क्लेम नहीं मिलता है तो संबंधित बीमा कंपनी किसान को 12 फीसदी ब्याज जोड़कर क्लेम देगी. अगर प्रीमियम काटने के बावजूद फसल नुकसान का क्लेम नहीं मिला है तो आप कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. कंपनी की मनमानी के खिलाफ वहां से अक्सर न्याय मिलता है.
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राजस्थान के कृषि आयुक्त कानाराम ने 'किसान तक' से बातचीत में बताया कि किसानों पर फसल बीमा करवाने के लिए कोई जोर नहीं डाल सकता. यह योजना इसीलिए स्वैच्छिक बनाई गई है. कोई किसान चाहे तो बीमा करवाए या न करवाए यह उस पर निर्भर करता है. अगर कोई किसान केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) पर लोन लेता है तो पहले उसके लोन में से फसल बीमा का प्रीमियम ऑटोमेटिक काट लिया जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता. इसमें सुधार किया गया है. लेकिन शर्त यह है कि दिसंबर और जुलाई में केसीसी धारक किसान को जाकर बैंक को लिखित में बताना होगा कि उसे फसल बीमा नहीं चाहिए. अगर वो लिखित में नहीं देगा तो उसके लोन की रकम में से पैसा काट लिया जाएगा.
किसान का एक और अधिकार है. वो जिस फसल के लिए लोन ले रहा है उसी का बीमा करवाए ऐसा जरूरी नहीं है. लेकिन, इसके लिए भी बैंक में लिखित तौर पर देना होगा. मान लीजिए कि किसी किसान ने बाजारा की खेती करने के लिए लोन लिया, लेकिन वो मूंग की फसल का बीमा करवाना चाहता है तो ऐसा हो सकता है. उस किसान को संबंधित बैंक में जाकर बस यह बताना होगा कि उस फसल का बीमा न किया जाए जिसके लिए लोन लिया है. उसकी जगह मूंग का बीमा किया जाए. फिर उसकी बोई गई मूंग का बीमा हो जाएगा. यह किसान का अधिकार है.
फसल बीमा क्लेम 'इंश्योरेंस यूनिट' में नुकसान के हिसाब से मिलता है. एक इंश्योरेंस यूनिट पटवार मंडल या पंचायत कोई भी हो सकता है. जबकि बीमा का प्रीमियम इंडीविजुअल जमा होता है तो नुकसान का आकलन भी इंडीविजुअल ही होना चाहिए. यह बहुत बड़ा मुद्दा है कि जब किसान ने अपने खेत का बीमा करवाया तो क्लेम देते वक्त पूरे पंचायत को यूनिट मानकर क्यों काम किया जाए? अगर किसी किसान को लगता है कि उसके नुकसान का इंडिविजुअल सर्वे होना चाहिए तो ऐसा हो सकता है. लेकिन नुकसान का नेचर वैसा ही होना चाहिए.
अगर किसी के खेत में आग लग जाए तो उसका इंडीविजुअल सर्वे हो सकता है. ओलावृष्टि भी जरूरी नहीं है कि पूरे पंचायत में हो, बाढ़ का पानी भी एक पंचायत में किसी स्थान पर जा सकता है और दूसरे पर नहीं जा सकता है. इसलिए इन दोनों के नुकसान का इंडीविजुअल असेसमेंट हो सकता है. इसी तरह अगर खेत में कटी हुई फसल है और वो बारिश में भीगकर खराब हो गई तो उस खेत में नुकसान का अलग सर्वे हो सकता है.
अगर किसी किसान भाई-बहन के अकाउंट से फसल बीमा का पैसा कटा है फिर भी उसे नुकसान का क्लेम नहीं मिल रहा है तो उसे शिकायत करने के तीन स्तरीय इंतजाम हैं. सबसे पहले वो अपने ब्लॉक के कृषि अधिकारी से शिकायत कर सकता है. वहां से मदद न मिलने पर वो जिला स्तरीय शिकायत निवारण समिति के पास जा सकता है. जिसके अध्यक्ष संबंधित जिले के डीएम होते हैं. अगर वहां से भी उसे उसका हक नहीं मिला तो वो राज्य स्तरीय शिकायत निवारण कमेटी को शिकायत दे सकता है. जिसके अध्यक्ष प्रमुख सचिव होते हैं.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि फसल बीमा योजना में ज्यादातर शर्तें कंपनियों के फेवर में हैं. जिस दिन बीमा कंपनी और सरकारी अधिकारियों के साथ किसान प्रतिनिधि भी शामिल हो जाएंगे, उस दिन काम आसान हो जाएगा. अभी नियम यह बनाया गया है कि जिस केसीसी धारक को बीमा नहीं चाहिए वो साल भर में दो बार बैंक जाकर बताएगा कि उसे फसल बीमा नहीं करवाना है.
एक बार खरीफ सीजन के दौरान 24 जुलाई तक और रबी सीजन के दौरान 24 दिसंबर तक उसे बैंक को लिखित तौर पर बताना होगा कि उसके लोन वाले पैसे से फसल बीमा का प्रीमियम न काटा जाए. जबकि होना तो यह चाहिए जिसे बीमा करवाना हो वो बैंक जाए और बीमा करवाए. यहां भी कंपनियों की सहूलियत के लिए किसानों को परेशान किया जा रहा है.
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