कृष‍ि व‍िज्ञान केंद्रों का कायापलट करेगा ICAR, अगले दो महीने में भरे जाएंगे सभी खाली पद  

कृष‍ि व‍िज्ञान केंद्रों का कायापलट करेगा ICAR, अगले दो महीने में भरे जाएंगे सभी खाली पद  

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद के महान‍िदेशक डॉ. ह‍िमांशु पाठक ने कहा क‍ि केवीके का बड़ा नेटवर्क है. इसे कैसे बेहतर बनाया जाए इस पर प‍िछले एक-दो महीने में कई बैठकें हुई हैं. बहुत च‍िंतन-मंथन हुआ है. इन्हें पहले से बेहतर काम करने वाला बनाया जाएगा. 

आईसीएआर के स्थापना द‍िवस पर मौजूद डॉ. ह‍िमांशु पाठक और अन्य वैज्ञान‍िक (Photo-Kisan Tak).  आईसीएआर के स्थापना द‍िवस पर मौजूद डॉ. ह‍िमांशु पाठक और अन्य वैज्ञान‍िक (Photo-Kisan Tak).
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jul 17, 2023,
  • Updated Jul 17, 2023, 9:04 PM IST

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) के महान‍िदेशक डॉ. ह‍िमांशु पाठक ने कहा है क‍ि कृष‍ि क्षेत्र को आगे बढ़ाने के ल‍िए जो र‍िसर्च हो रही है उसे क‍िसानों तक पहुंचाने के ल‍िए कृष‍ि व‍िज्ञान केंद्रों (KVK) को मजबूत क‍िया जाएगा. इस समय केवीके स्टॉफ की कमी से जूझ रहे हैं, लेक‍िन आने वाले एक-दो महीने के अंदर सौ फीसदी स्टॉफ हो जाएंगे. क‍िसी भी श्रेणी का कोई भी पद खाली नहीं रहेगा. इससे काम करने की क्षमता बढ़ेगी और हमारी बात आसानी से क‍िसानों तक पहुंचेगी. केवीके का बड़ा नेटवर्क है. इसे कैसे बेहतर बनाया जाए इस पर हमने प‍िछले एक-दो महीने में कई बैठकें की हैं. इस पर बहुत च‍िंतन-मंथन हुआ है. इसे पहले से बेहतर काम करने वाला बनाया जाएगा. इसल‍िए सबसे पहले स्टॉफ की कमी को पूरा क‍िया जाएगा. 

डॉ. पाठक सोमवार को द‍िल्ली स्थ‍ित नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. आईसीएआर इस समय अपना 95वां स्थापना द‍िवस मना रहा है. इसे टेक्नोलॉजी डे के रूप में मनाया जा रहा है. डॉ. पाठक ने कहा क‍ि हमारे 113 इंस्टीट्यूट हैं. इनमें जो-जो प्रोडक्ट व‍िकस‍ित क‍िए गए हैं उसका प्रदर्शन हो रहा है और जो कम‍ियां हैं उस पर च‍िंतन हो रहा है. ताक‍ि उसे दुरुस्त करके हम आगे बढ़ सकें. बता दें क‍ि डॉ. पाठक ने कई संस्थानों के खाली पड़े न‍िदेशकों और व‍िभाग प्रमुखों के पदों को प‍िछले छह महीने में ही भर देने का काम क‍िया है. 

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चार ग्लोबल यून‍िवर्स‍िटी बनाने की कोश‍िश

आईसीएआर के डीजी डॉ. पाठक ने कहा क‍ि हमारी चार डीम्ड यून‍िवर्स‍िटी और तीन सेंट्रल यून‍िवर्स‍िटी हैं. इस समय चार डीम्ड यून‍िवर्स‍िटी को हम ग्लोबल यून‍िवर्स‍िटी बनाने की कोश‍िश में जुटे हुए हैं. आने वाले द‍िनों में 16 और जगह जगहों पर यूजी और पीजी की डिग्री मिलेगी. जहां पर पढ़ाई के साथ-साथ र‍िसर्च का काम होता है वहां पर‍िणाम अच्छे आते हैं. उन्होंने कहा क‍ि कृष‍ि क्षेत्र में न‍िजी क्षेत्र की भी भूम‍िका अहम है. जब तक प्राइवेट, पब्ल‍िक और क‍िसानों की पार्टनरश‍िप नहीं होगी तब तक समस्याओं का समाधान नहीं होगा. उन्होंने कहा क‍ि जलवायु पर‍िवर्तन कृष‍ि क्षेत्र के ल‍िए बड़ी चुनौती है, लेक‍िन कृष‍ि वैज्ञान‍िक क्लाइमेट रेजिलिएंट और रोगरोधी फसलों की क‍िस्में व‍िकस‍ित कर उससे क‍िसानों को बचाने की कोश‍िश में जुटे हुए हैं.

दूसरे देशों के ल‍िए भी काम

हमारे वैज्ञान‍िक म्यांमार के कृष‍ि क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं. अफ्रीकन देशों में हम मिलेट की खेती को बढ़ा रहे हैं. हम सीड विदाउट बॉर्डर नामक एक ऐसा प्रोग्राम बना रहे हैं ज‍िससे एक दूसरे के यहां धान की नई क‍िसी आने के बाद भारत, बांग्लादेश और नेपाल में उसका एक साथ इस्तेमाल हो. इसे दूसरी फसलों तक भी बढ़ाने की कोश‍िश है. आईसीएआर ने फसलों की कुल 6000 वैराइटी विकसित की है, ज‍िसमें से 1888 जलवायु परिवर्तन को देखते हुए तैयार की गई हैं. 

बासमती की रोगरोधी क‍िस्में

इस मौके पर भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा के डायरेक्टर डॉ. अशोक कुमार स‍िंह ने कहा क‍ि अफगान‍िस्तान में अफगान‍िस्तान नेशनल एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी यून‍िवर्स‍िटी (ANASTU) नाम से एक यून‍िवर्स‍िटी खोली गई है. ज‍िसमें पूसा मदद दे रहा है. इसके साथ म‍िलकर ज्वाइंट ड‍िग्री प्रोग्राम शुरू क‍िया गया है. उन्होंने बासमती की रोगरोधी क‍िस्मों पूसा बासमती 1885, पूसा बासमती 1886 और पूसा बासमती 1847 के बारे में जानकारी दी. कहा क‍ि इससे एक्सपोर्ट को बढ़ावा म‍िलेगा. 

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