यूपी में दशहरी गांव के किसान परेशान, सरकारी अनदेखी से चौपट हुई आम की बागवानी

यूपी में दशहरी गांव के किसान परेशान, सरकारी अनदेखी से चौपट हुई आम की बागवानी

दशहरी गांव का नाम दशहरी आम की किस्म के नाम पर रखा गया है और यहां 200 साल से अधिक पुराना 'दशहरी मदर प्लांट' है, जिसे भारत में इस किस्म का उत्पादन करने वाले सभी पेड़ों का सोर्स माना जाता है. इस गांव से आम सिंगापुर, हांगकांग, फिलीपींस, मलेशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों में निर्यात किया जाता है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि दशहरी आम राजनीतिक अनदेखी का शिकार हो रहा है.

क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 11, 2024,
  • Updated May 11, 2024, 2:46 PM IST

आपने दशहरी आम का स्वाद चखा होगा. आप क्या, दुनिया के कई कोने में इस आम का स्वाद चाव से लिया जाता है. स्वाद के साथ इसकी सुगंध सबको खींच लेती है. लेकिन यह आम जिस जगह से निकलता है, जहां इसका पुश्तैनी स्थान है, वहां के आम किसान बहुत परेशान हैं. इस गांव का नाम है दशहरी गांव जो उत्तर प्रदेश में है. यह गांव लखनऊ से 21 किमी की दूरी पर स्थित है. यहां के किसानों की शिकायत है कि मौसमी मार से उनकी बागवानी चौपट हुई है, लेकिन सरकार कोई मदद नहीं कर रही है.

लोकसभा चुनावों के बीच किसानों ने यह मुद्दा उठाया है. इस गांव में दशहरी आम की खेती बहुत मशहूर है. यहां से देश-विदेश में आम की सप्लाई जाती है. लेकिन इस बार गर्मी और पानी की कमी से आम की पैदावार बहुत प्रभावित हुई है जिससे किसानों में घोर निराशा है. यहां पानी का बहुत बड़ा स्रोत था जो अब सूख गया है. इस स्रोत से आम के बागों को पानी मिलता था और सैकड़ों पेड़ों को सिंचाई का पानी मुहैया होता था. और भी फसलों की खेती के लिए पानी दिया जाता था. लेकिन सरकार ने कई साल से इसकी अनदेखी की जिससे यह सूख गया और आम की बागवानी चौपट हो गई.

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200 साल पुराना आम का पेड़

लखनऊ से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर यह गांव मोहनलालगंज निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत काकोरी के पास है, जहां 20 मई को मतदान होने वाला है. 'हिंदुस्तान टाइम्स' की एक रिपोर्ट बताती है,  दशहरी गांव का नाम दशहरी आम की किस्म के नाम पर रखा गया है और यहां 200 साल से अधिक पुराना 'दशहरी मदर प्लांट' है, जिसे भारत में इस किस्म का उत्पादन करने वाले सभी पेड़ों का सोर्स माना जाता है. इस गांव से आम सिंगापुर, हांगकांग, फिलीपींस, मलेशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों में निर्यात किया जाता है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि दशहरी आम राजनीतिक अनदेखी का शिकार हो रहा है.

इस क्षेत्र में हर सीजन में औसतन 2 से 2.5 लाख मीट्रिक टन आम की फसल पैदा होती है. लेकिन 2 किमी लंबे जलस्रोत को रेनोवेट करने की मांग वर्षों से लंबित है. “दो दशक पहले 2 किमी लंबी धारा पानी से भरी थी. इसका अधिकांश भाग सूख गया है, केवल एक हिस्से में ही पानी बचा है - वह भी जलकुंभी के साथ,'' 35 वर्षीय ग्राम प्रधान कंचन यादव ने कहा. ''2015-2016 में इसे रेनोवेट करने के लिए लगभग 2.5 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया गया था, जो आई-स्पर्श अमर ग्राम योजना का हिस्सा था. लेकिन चीजें आगे नहीं बढ़ीं,'' यादव ने कहा, अगर इसे ठीक कर दिया जाता है तो यह फिर से आम के खेतों के लिए जीवन रेखा बन जाएगी.

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क्या कहते हैं किसान

“एक समय था जब इस गांव में 50 परसेंट खेती और 50 परसेंट आम की बागवानी होती थी. हालांकि समय के साथ शहरीकरण के कारण किसानों को अपनी ज़मीन बेचनी पड़ी और उन पर प्लाटिंग शुरू हो गई,” 68 वर्षीय हरि पाल ने कहा, जिन्होंने अपने गांव को बदलते देखा है. पूर्व ग्राम प्रधान मनोज यादव ने कहा, "आम की खेती 50 परसेंट से घटकर 30 परसेंट हो गई है क्योंकि किसानों को फसल के खतरे और पानी की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें अक्सर नुकसान होता है."

 

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