भारत सरकार की प्रमुख योजना ‘किसान पहचान पत्र’ (Kisan Pehchaan Patra) के अंतर्गत अब हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य भी जुड़ने जा रहे हैं. यह योजना किसानों को एक यूनिक डिजिटल आईडी देने के उद्देश्य से शुरू की गई है, जिससे सरकार को उनकी जानकारी, भूमि स्वामित्व और फसलों के पैटर्न को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक 14 राज्यों में 7.2 करोड़ से अधिक किसानों को डिजिटल पहचान पत्र जारी किए जा चुके हैं. सरकार का लक्ष्य है कि 2025-26 तक 9 करोड़ और उसके अगले साल तक 11 करोड़ किसानों को यह डिजिटल आईडी प्रदान की जाए.
डिजिटल किसान पहचान के मामले में कुछ राज्य काफी आगे हैं. इनमें टॉप 5 राज्य हैं:
इसके अलावा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्य भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.
सरकार ने 2025-26 के लिए ‘AgriStack’ के अंतर्गत किसान रजिस्ट्रियों के विकास और डिजिटल क्रॉप सर्वे (DCS) के लिए कुल ₹6000 करोड़ का बजट निर्धारित किया है. इसमें 4000 करोड़ रुपये किसान रजिस्ट्रियों और लीगल हेयर सिस्टम के लिए हैं, जबकि 2000 करोड़ रुपये डिजिटल फसल सर्वे के लिए.
इस योजना से सरकार को किसानों को विभिन्न योजनाओं का लाभ सीधे और सही तरीके से पहुंचाने में मदद मिलेगी, जैसे:
डिजिटल क्रॉप सर्वे 2025-26 के खरीफ सीजन में 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू किया गया है. इसका उपयोग अब फसल बीमा और किसान क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाओं में सत्यापन के लिए किया जा रहा है. यह देखा जा रहा है कि किसान ने जो फसल बताई है, वही वास्तव में बोई गई है या नहीं.
फिलहाल देश के 29 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस योजना से जुड़ चुके हैं, सिर्फ पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य UTs इससे बाहर हैं. 30 राज्यों ने सैद्धांतिक रूप से डिजिटल टूल्स को अपनाने की सहमति दे दी है.
‘किसान पहचान पत्र’ योजना और ‘एग्रीस्टैक’ जैसी पहलें किसानों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती हैं. इससे जहां योजनाओं का लाभ सीधे किसानों तक पहुंचेगा, वहीं सरकार को भी डेटा के माध्यम से योजनाओं को और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी.
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