छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता के जंगलों की बहुलता वाले बस्तर इलाके में आदिवासी समुदायों के लिए तेंदूपत्ता संग्रह करना Source of Extra Income का जरिया है. तमाम आदिवासी परिवारों के लिए तेंदूपत्ता संग्रह आजीविका का मुख्य साधन भी रहा है. मगर, इन्हें बाजार में मेहनत का सही दाम न मिल पाने के कारण इनकी मेहनत का सही लाभ कारोबारी ही उठा पा रहे थे. राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने आदिवासियों के लिए Green Gold माना गया तेंदूपत्ता के बस्तर में संग्रह करने वालों को बैंक मित्र एवं बैंक सखियों के माध्यम से मजदूरी दिलाने की योजना के सफल प्रयोग को अंजाम दिया है. इसके तहत सरकार की ओर से 2024 में 36 हजार से अधिक आदिवासी परिवारों को लगभग 12 करोड़ रुपये से ज्यादा मेहनताना दिया है. सरकार का दावा है कि अब सही मायने में तेंदूपत्ता इन आदिवासियों के लिए 'हरा सोना' साबित हो पा रहा है. तेंदूपत्ता संग्रह के मेहनताने से इनके घर परिवार की जरूरतें पूरी हो पा रही हैं.
छत्तीसगढ़ में बस्तर के वनांचल में आदिवासी समुदायों के पास गर्मी के दिनों में जब खेतों में कोई काम नहीं होता है, तब इसी तेंदूपत्ता के संग्रह से इन परिवारों को भरण पोषण का सहारा मिलता है. राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने वनांचल में रहने वाले ग्रामीणों के लिये तेंदूपत्ता के संग्रहण की मजदूरी में प्रति मानक बोरा की दर से इजाफा करने की योजना शुरू की है.
ये भी पढ़ें, Cow Protection : गोवंश की तस्करी, वध एवं मांस की बिक्री करने पर छत्तीसगढ़ में भी होगी यूपी की तरह सजा
सरकार द्वारा जारी बयान के अनुसार चालू सीजन 2024 में तेंदूपत्ता का एकत्र करने वाले 36 हजार 229 परिवारों को पारिश्रमिक के रूप में 12 करोड़ 43 लाख 95 हजार 749 रुपये का भुगतान उनके अपने ही गांव के बैंक मित्र एवं बैंक सखियों द्वारा किया जा रहा है.
बस्तर जिले के दूरदराज के गांव कुथर में रहने वाले तेंदूपत्ता संग्राहक आयतू और बैसू का परिवार पीढ़ियों से इसी काम में लगा है. आयतू और बैसू का कहना है कि अब तक उन्हें एक सीजन में तेंदूपत्ता संग्रह से 3 से 5 हजार रुपये तक की कमाई होती थी. सरकार ने तेंदूपत्ता का खरीद मूल्य 5500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया है. पहले यह 4000 रुपये प्रति मानक बोरा था. उन्होंने कहा कि कीमत में इजाफा होने के बाद उनकी आय 8 हजार रुपये से ज्यादा हो गई है. इससे उसके जैसे अनेक परिवारों को भी अच्छा लाभ मिलने लगा है.
उन्होंने बताया कि वह खेती-किसानी के साथ-साथ तेंदूपत्ता संग्रह का काम कई सालों से कर रहे हैं. गर्मी में खेती का काम नहीं होने पर तेंदूपत्ता संग्रह से अतिरिक्त कमाई हो जाती है. उन्हें इस काम में एक-एक पत्ता तोड़कर पत्तों के बंडल बनाने पड़ते हैं. इस काम में काफी मेहनत होती है. साय सरकार ने उनके परिश्रम को समझते हुए मेहनताने में इजाफा किया है. यह सराहनीय है.
ये भी पढ़ें, Toxic River : छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी जहरीले पानी से बनी मछलियों और मवेशियों की कब्रगाह
साय सरकार ने इस योजना के तहत बैंक मित्र और बैंक सखियों के माध्यम से आदिवासी परिवारों को तेंदूपत्ता के संग्रह का मेहनताना देने की शुरुआत की है. बस्तर की बैंक मित्र पखनार रामो कुंजाम ने बताया कि वह 5 ग्राम पंचायतों के 250 से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहकों को मेहनताने का भुगतान करते हैं. गांव की बैंक सखियां भी इस काम में अहम भूमिका निभा रही हैं.
लोहण्डीगुड़ा ब्लॉक में कस्तूरपाल गांव के बैंक मित्र सामू कश्यप 50 से अधिक संग्राहकों तथा बस्तर विकासखण्ड के भानपुरी गांव की बैंक सखी जमुना ठाकुर 56 से ज्यादा संग्राहकों को भुगतान करती हैं. डिमरापाल गांव की बैंक सखी तुलेश्वरी पटेल अब तक डिमरापाल एवं छिंदगांव के 90 से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को 1.5 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान कर चुकी हैं.
बस्तर के वन मंडल अधिकारी एवं जगदलपुर के जिला सहकारी यूनियन के प्रबंध संचालक उत्तम गुप्ता ने बताया कि जिले के सभी 07 विकासखण्डों के अंतर्गत 15 प्राथमिक वन उपज सहकारी समितियों के कुल 36 हजार 229 तेंदूपत्ता संग्राहकों को अब तक 12.43 करोड़ रुपये मेहनताने के रूप में दिया जा चुका है. इनमें सबसे ज्यादा बकावंड विकासखंड के 86 ग्राम पंचायतों के 16 हजार 510 संग्राहकों को 05 करोड़ 45 लाख 47 हजार 614 रुपये मेहनताने का भुगतान स्थानीय बैंक सखियों द्वारा किया जा रहा है. इस योजना के दोहरे लाभ के रूप में एक ओर, तेंदूपत्ता संग्राहकों को मेहनताना पाने में सहूलियत हुई है, वहीं, बैंक सखियों को भी अच्छी कमीशन राशि मिलने से इनकी भी आय में इजाफा हुआ है.