राजस्थान सरकार की ‘वंदे गंगा जन संरक्षण, जन अभियान’ और ‘अमृतं जलम्’ जैसी पहलों ने राज्य में जल संरक्षण को जन आंदोलन का रूप दे दिया है. जयपुर के समीप स्थित ऐतिहासिक रामगढ़ बांध इस अभियान का केंद्र बन चुका है, जहां आमजन, जनप्रतिनिधियों और स्वयंसेवी संस्थाओं की सहभागिता ने एक नया इतिहास रच दिया. सुबह से ही श्रमदान करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी और हर उम्र और वर्ग के लोग—नेता, डॉक्टर, व्यापारी, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग—फावड़े-परातों के साथ बांध की गोद में जुट गए. जेसीबी, ट्रैक्टर-ट्रॉली जैसे संसाधनों के साथ उत्साह का माहौल ऐसा बना कि “आएगा-आएगा, रामगढ़ बांध में पानी आएगा” और “हम सबने ठाना है, रामगढ़ बांध में पानी लाना है” जैसे नारे गूंजने लगे.
इस ऐतिहासिक बांध की दशा सुधारने की इस सामूहिक कोशिश में सांसद मंजू शर्मा, महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर, विधायक महेंद्र पाल मीना, पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल, बीजेपी नेता रवि नैय्यर, अमित गोयल, चंद्रमनोहर बटवाड़ा, सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी श्रमदान किया. ‘टीम प्रयास’ परिवार की ओर से संदेशपरक रंगोली बनाई गई और ‘मां अन्नपूर्णा सेवा समिति’ ने श्रमिकों के लिए जलपान की व्यवस्था की. इस आयोजन ने साबित कर दिया कि जब इरादे मजबूत हों और लोगों के दिलों में अपने शहर के लिए प्रेम हो, तो सूखे इतिहास को भी फिर से जीवन मिल सकता है.
रामगढ़ बांध कभी जयपुर की जीवन रेखा हुआ करता था. महाराजा माधो सिंह द्वितीय ने 1897 में इस बांध का निर्माण शुरू करवाया था, जो 1903 में बनकर तैयार हुआ. उस समय जयपुर सिर्फ चारदीवारी तक सीमित था और जनसंख्या के हिसाब से यह बांध पर्याप्त जल आपूर्ति करता था. वर्ष 1931 से रामगढ़ बांध से जयपुर शहर को जल आपूर्ति शुरू हुई और 1982 में एशियाड गेम्स के दौरान यहां नौकायन प्रतियोगिता तक आयोजित की गई. यह बांध चार प्रमुख नदियों—रोड़ा, बाणगंगा, ताला और माधोवेनी—से भरता था, जिनमें से बाणगंगा प्रमुख स्रोत थी. लेकिन समय के साथ शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और अनदेखी के कारण इन नदियों का अस्तित्व समाप्त हो गया और 2005 के बाद से यह बांध पूरी तरह सूखा पड़ा है.
हालांकि, 1978 में राज्य सरकार ने इसे सिर्फ पीने के पानी के लिए आरक्षित करने का निर्णय लिया था. इस बांध की कुल जल संग्रहण क्षमता 75 मिलियन क्यूबिक मीटर है, और 1924 तथा 1977 में दो बार यह ओवरफ्लो तक हुआ. 1981 में आई बाढ़ के बाद इसे आखिरी बार पूरा भरा गया था. समय के साथ यह पर्यटन स्थल भी बन गया, लेकिन अब वीरान पड़ा है. ऐसे में, जयपुर और जमवारामगढ़ के लोगों की उम्मीदें टूट चुकी थीं, लेकिन अब एक नई योजना इन उम्मीदों को फिर से संजीवनी दे रही है.
सरकार अब ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ERCP) और रामसेतु परियोजना (MPKC) के तहत इस ऐतिहासिक जलस्रोत को पुनर्जीवित करने में जुटी है. जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने बताया कि ईसरदा बांध से रामगढ़ बांध तक जल आपूर्ति के लिए फीडर लाइन और नहरी तंत्र तैयार किया जाएगा. इस योजना के तहत 55 मिलियन क्यूबिक मीटर चंबल नदी का पानी रामगढ़ में डाला जाएगा. रास्ते में दो स्थानों पर नहरें बनेंगी, साथ ही पिकअप वायर और आर्टिफिशियल रिजर्व वायर भी स्थापित किए जाएंगे.
इस पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 1915 करोड़ रुपये है और इसे पूरा करने में चार साल का समय लगेगा. मंत्री ने आश्वासन दिया कि मौजूदा कार्यकाल में ही इन नदियों से रामगढ़ बांध में पानी लाया जाएगा. इन सरकारी प्रयासों के साथ जनता की भागीदारी, श्रमदान और जल संरक्षण के प्रति बढ़ती जागरूकता ने यह संकेत दे दिया है कि रामगढ़ बांध में एक बार फिर जल की लहरें लौट सकती हैं. जयपुरवासियों का सपना—‘जलमग्न हो रामगढ़ बांध अपना’—अब सिर्फ सपना नहीं, बल्कि एक संभावित वास्तविकता बनता जा रहा है.(रीथम जैन की रिपोर्ट)