
केंद्र सरकार की कृषि नीतियों और किसानों की उपेक्षा के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने देशभर में स्थानीय स्तर पर आंदोलन तेज करने का ऐलान किया है. संठन ने धान, गन्ना और कपास की फसलों की सरकारी खरीद क्रमशः 3012 रुपये, 500 रुपये और 10121 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करने की मांग की है. इसके साथ ही एसकेएम ने कहा कि किसानों की स्थानीय गंभीर मांगों के साथ अब एमएसपी@C2+50%, कर्ज माफी, बिजली बिल 2025 की वापसी और भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 (LARR) के पालन जैसी नीतिगत मांगों को भी संघर्ष का हिस्सा बनाया जाएगा. संगठन ने डीएम को ज्ञापन सौंपने और मांगें पूरी न होने पर 'लंबे संघर्ष' की चेतावनी दी है.
मोर्चा ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि 2024-25 के लिए धान का घोषित एमएसपी 2369 रुपये प्रति क्विंटल होने के बावजूद किसानों को औने-पौने भावों में अपनी उपज बेचनी पड़ रही है. संगठन के अनुसार उत्तर प्रदेश में किसान धान को 1500-1600 रुपये प्रति क्विंटल में बेचने को मजबूर हैं, जो आधिकारिक दर से करीब 800 रुपये कम है. वहीं बिहार और झारखंड में दाम 1200-1400 रुपये तक गिर गए हैं. एसकेएम ने कहा कि स्वामीनाथन फार्मूले के अनुसार धान का एमएसपी 3012 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जिससे किसानों को वर्तमान दरों पर करीब 1600 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान झेलना पड़ रहा है.
उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की हालत पर भी संगठन ने चिंता जताई. बयान के अनुसार, पिछले नौ वर्षों में गन्ने के दाम में केवल 55 रुपये की बढ़ोतरी हुई है, जबकि लागत कई गुना बढ़ चुकी है. वर्तमान सीजन में गन्ने का दाम 370 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि किसानों ने इसे बढ़ाकर 500 रुपये प्रति क्विंटल करने और चीनी मिलों पर बकाया 3,500 करोड़ रुपये का तत्काल भुगतान कराने की मांग की है. एसकेएम ने कहा कि कपास किसान 5500-6000 रुपये प्रति क्विंटल पर फसल बेचने को मजबूर हैं, जबकि घोषित एमएसपी 7710 रुपये है. मूंग किसानों को 8768 रुपये प्रति क्विंटल की घोषित दर के बजाय 4000 रुपये से कम में बिक्री करनी पड़ रही है. संगठन ने बासमती धान के लिए 5000 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी तय करने और सरकारी खरीद तंत्र स्थापित करने की मांग की.
मोर्चा ने आरोप लगाया कि देशभर में उर्वरकों की कालाबाज़ारी और कीमतों में मनमानी चल रही है। किसान 270 रुपये के यूरिया बैग के लिए 700 रुपये तक चुका रहे हैं. संगठन ने कालाबाज़ारी रोकने और नकली उर्वरकों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है. बिजली के मुद्दे पर एसकेएम ने कहा कि किसानों पर जबरन प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं और बिजली विधेयक 2025 किसानों के हितों के खिलाफ है. संगठन ने इस बिल को वापस लेने और 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की मांग की. मनरेगा को लेकर एसकेएम ने कहा कि कानून में 100 दिनों की गारंटी के बावजूद मजदूरों को औसतन 47 दिन का ही काम मिलता है और 284 रुपये की औसत दैनिक मजदूरी राज्य के न्यूनतम वेतन से कम है. संगठन ने मनरेगा में कृषि व डेयरी को जोड़ने, 700 रुपये दैनिक मज़दूरी और 200 दिन रोजगार की गारंटी की मांग की.
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि एनडीए शासनकाल में सूक्ष्म वित्त संस्थान गरीब परिवारों से अत्यधिक ब्याज वसूल रहे हैं और कई मामलों में ऋण वसूली के नाम पर अवैध गतिविधियां कर रहे हैं. एसकेएम ने मांग की कि सरकार सूक्ष्म वित्त संस्थानों पर नियंत्रण कानून बनाए और गरीबों को इंट्रेस्ट फ्री लोन प्रदान करे. एसकेएम ने अपने बयान में सभी राज्य समन्वय समितियों से किसानों और खेतिहर मजदूरों को स्थानीय स्तर पर संगठित करने की अपील की. संगठन ने कहा कि यदि सरकार ने किसानों की मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं की, तो देशभर में वृहद और दीर्घकालिक आंदोलन शुरू किया जाएगा.
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