महाराष्ट्र सरकार द्वारा हाल ही में फसल क्षति मुआवजे की सीमा तीन हेक्टेयर से घटाकर दो हेक्टेयर करने के फैसले ने किसानों में जबरदस्त आक्रोश पैदा कर दिया है. पहले ही संकटों से जूझ रहे किसानों को अब सरकार की इस नीतिगत चोट ने दोहरी मार दी है. हमारे संवाददाता से बातचीत में अकोला, अमरावती और विदर्भ के कई किसानों ने कहा, "पहले ही महंगे बीज, खाद, कीटनाशक पर बढ़ता जीएसटी और प्राकृतिक आपदाओं से हम टूट चुके हैं. अब अगर नुकसान होगा भी, तो उसका पूरा मुआवजा नहीं मिलेगा. ऐसे में किसानी करना घाटे का सौदा बन गया है."
किसानों ने तंज कसते हुए कहा, "लाडली बहन योजना के तहत बहनों को पैसे दिए जाते हैं, लेकिन क्या किसान इस देश के लाडले नहीं हैं? क्या हम अपने खून-पसीने से देश का पेट नहीं भरते?" मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए एक किसान ने कहा, "प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि फसलों के दाम दोगुने होंगे, लेकिन उल्टा हमारी फसलें जैसे मूंग, अरहर, कपास, सोयाबीन आज लागत से भी कम दाम पर बिक रही हैं."
बारिश की अनिश्चितता, फसलों पर जंगली जानवरों का हमला, और नुकसान के बाद मुआवजे के लिए सालों तक इंतजार – इन सबके बीच किसानों ने महाराष्ट्र सरकार और केंद्र पर आरोप लगाया कि ये नीतियां किसानों को खेती से दूर करने के लिए बनाई जा रही हैं. किसानों की मांग है कि "ऐसे निर्णय लेने से पहले किसान प्रतिनिधियों से चर्चा की जाए." नहीं तो यह आंदोलन का रूप ले सकता है. "अगर यही हाल रहा, तो हम खेती छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे," – यही है आज के महाराष्ट्र किसान की दर्दभरी पुकार.
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मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए एक किसान ने कहा, “प्रधानमंत्री ने कहा था कि फसलों के दाम दोगुने होंगे, लेकिन अरहर, मूंग, कपास, सोयाबीन जैसी फसलें लागत से भी कम दामों में बिक रही हैं.”
विदर्भ, जो किसानों की आत्महत्या के मामलों के लिए पहले से ही बदनाम है, वहां किसान संगठनों का कहना है कि यह फैसला आत्महत्या की ओर और एक कदम धकेलने जैसा है. किसान बोले कि चाहे कोई भी सरकार हो, आत्महत्याओं के पीछे के कारणों पर अब तक कोई ठोस नीति नहीं बनी.
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उन्होंने कहा कि चुनावों में कर्जमाफी का वादा किया जाता है लेकिन सत्ता में आने के बाद सब भूल जाते हैं. “हमें कर्ज नहीं, हमारी उपज के सही दाम चाहिए. अगर सरकार ने अपनी नीति किसानों से बिना सलाह लिए ही तय करनी है, तो आंदोलन तय है.” “अगर यही चलता रहा, तो हमें खेती छोड़नी पड़ेगी,” – यही है आज के समय का सबसे पीड़ादायक किसान सत्य.