पंजाब में किसानों और राज्य सरकार के बीच हाल के दिनों में तनाव काफी बढ़ गया है, जिसका मुख्य कारण पंजाब सरकार का सख्त रुख है. पिछले कुछ दिनों में किसानों को चंडीगढ़ पहुंचने की अनुमति न दिए जाने से स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुख अचानक नहीं, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से लिया गया है. विपक्ष भी इसे लेकर अपनी असहमति जाहिर कर रहा है और कह रहा है कि स्थिति को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था.
पंजाब में किसान संगठनों और राज्य सरकार के बीच तनाव तब बढ़ा, जब मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसानों को चंडीगढ़ जाने से रोक दिया. 3 मार्च को मुख्यमंत्री ने किसानों पर आरोप लगाया कि उन्होंने अनुचित व्यवहार किया और संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के साथ बैठक से बाहर चले गए. मान का कहना था कि अगर किसान 5 मार्च को होने वाले धरने पर आगे बढ़ना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं. इसके बाद, मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से कहा कि राज्य सरकार किसानों को सड़कों और पटरियों पर बैठने की अनुमति नहीं देगी, क्योंकि उनका फर्ज राज्य के 3 करोड़ लोगों के प्रति है.
इसके बाद, 5 मार्च को किसानों ने चंडीगढ़ पहुंचने की कोशिश की, लेकिन पंजाब पुलिस ने उन्हें गांवों में ही रोक लिया. कई प्रमुख किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया, जिनमें बलबीर सिंह राजेवाल और जोगिंदर उग्राहां जैसे नाम शामिल थे.
यह अचानक बदलाव क्यों हुआ? गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कुलदीप सिंह के अनुसार, किसानों के आंदोलनों की लोकप्रियता अब उतनी मजबूत नहीं रही जितनी कुछ साल पहले थी. इससे राज्य सरकार को यह लग सकता है कि लगातार किसान आंदोलनों को बढ़ावा देना राज्य की बाकी जनता के लिए परेशानी का कारण बन सकता है.
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इसके अतिरिक्त, अर्थशास्त्री प्रोफेसर आरएस बावा का कहना है कि किसानों की कई प्रमुख मांगें केंद्र सरकार से हैं, जिन पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं है. वे मानते हैं कि राज्य सरकार को अब यह समझ में आ चुका है कि लगातार धरने और नाकेबंदी से केवल किसानों ही नहीं, बल्कि राज्य की सामान्य जनता भी परेशान हो रही है. बावा का कहना है कि राज्य सरकार को अब बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए और किसानों के मुद्दों का समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए.
किसानों और राज्य सरकार के बीच बढ़ते तनाव का असर पंजाब के राजनीतिक हलके पर भी पड़ रहा है. विपक्षी दल मान सरकार को किसानों के खिलाफ तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगा रहे हैं. पंजाब कांग्रेस के विधायक परगट सिंह का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री किसानों की मांगों को गंभीरता से सुनते, तो शायद स्थिति को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था.
किसान नेता सरवन पंढेर ने कहा, "यह राज्य सरकार की तानाशाही हरकत है, और किसान इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. पंजाब सरकार किसानों को उनकी राज्य की राजधानी चंडीगढ़ जाने की अनुमति नहीं दे रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है." वहीं, पंजाब आप प्रमुख अमन अरोड़ा ने कहा कि सरकार का रुख अब भी वही है और किसानों को बातचीत के लिए खुले दरवाजे दिए गए हैं, लेकिन वे बड़ी संख्या में नहीं आ सकते.
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यह मामला अब पंजाब की राजनीति में अहम मोड़ पर है, और यह तय करेगा कि राज्य सरकार और किसानों के बीच आगे कैसे संबंध बनते हैं. अब तक, किसान संगठनों ने अपना विरोध जारी रखने का संकल्प लिया है. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि दोनों पक्षों के बीच बातचीत की प्रक्रिया शुरू होती है, तो स्थिति में सुधार हो सकता है.
कुल मिलाकर, पंजाब में किसानों और राज्य सरकार के बीच का यह विवाद केवल एक राज्य की राजनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के किसानों के मुद्दों को भी उजागर करता है. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी सरकार आगे किस तरह से इस जटिल समस्या का समाधान निकालते हैं.
पंजाब में बढ़ते किसानों के विरोध और राज्य सरकार के सख्त रुख ने राज्य की राजनीति को एक नई दिशा दी है. जहां एक तरफ किसान अपनी मांगों को लेकर दृढ़ हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार अपनी रणनीति में बदलाव लाकर राज्य की आम जनता को संतुष्ट रखने की कोशिश कर रही है. आगे की स्थिति इस पर निर्भर करेगी कि दोनों पक्ष किस तरह से संवाद करते हैं और किस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं. (असीम बस्सी की रिपोर्ट)