लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) के बीच तल्खी की खबरें आ रही हैं. लेकिन इन खबरों के बीच ही कुछ ऐसा हुआ है जिससे दोनों के बीच नरमी के संकेत मिल रहे हैं. सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस का सदस्य बनने पर लगा प्रतिबंध पिछले दिनों खत्म कर दिया गया है. इस बैन को खत्म करने वाला सरकारी आदेश इस बात का मजबूत संकेत है कि हाल के दिनों में अपने रिश्तों में आई मुश्किलों के बाद बीजेपी और आरएसएस एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाने के लिए तैयार हैं.
अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसरार नौ जुलाई को एक सरकारी आदेश के तहत कर्मचारियों के आरएसएस का सदस्य बनने पर 58 साल पुराना प्रतिबंध अब खत्म कर दिया गया है. हालांकि विपक्ष ने इस पर कड़ी आलोचना की है. विपक्ष का कहना है कि यह कदम इस बात को बताता है कि सरकार में बैठी बीजेपी वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध नौकरशाही बनाने की कोशिश कर रही है. वहीं आरएसएस ने इस फैसले की तारीफ की है. आरएसएस प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा, 'सरकार का मौजूदा फैसला सही है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करता है.'
यह भी पढ़ें-भारत को 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में हर साल पैदा करनी होगी 78.5 लाख नौकरियां: आर्थिक सर्वे
उन्होंने कहा कि संगठन का देश और समाज की सेवा में 99 साल का इतिहास रहा है. आंबेकर के मुताबिक अपने राजनीतिक हितों के कारण तत्कालीन सरकार ने बेबुनियाद तरीके से सरकारी कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया था. दूसरी तरफ संघ परिवार के अंदर इससे यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि यह मोदी सरकार और बीजेपी की तरफ से आरएसएस के साथ आई तल्खियों को सुलझाये जाने का एक जरीया है.
यह भी पढ़ें-हरियाणा सरकार ने किसान नेताओं से शुरू की बातचीत, सरकारी अधिकारियों के साथ SKM की बैठक
आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि चुनावों से पहले संघ और बीजेपी के बीच संवाद में कमी आई थी. लेकिन संघ के एक वरिष्ठ नेता की मध्यस्थता से स्थिति में सुधार हुआ है. आरएसएस ने लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अजित पवार गुट को महायुति में शामिल किए जाने पर अपना असंतोष जताया था. कई लोगों ने कहा कि चुनाव के दौरान बीजेपी को अपनी संगठनात्मक ताकत देने वाला संगठन जूनियर पवार की एनसीपी के लिए प्रचार करने से दूर रहा.