आजकल जल संकट और बढ़ती पानी की कमी के कारण, धान की खेती में जल प्रबंधन को लेकर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. उचित जल प्रबंधन से न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि फसल की पैदावार भी बेहतर होती है. आइए जानते हैं कि धान की खेती में जल प्रबंधन कैसे किया जाए और पानी की बचत के लिए कौन से है जरूरी टिप्स.
धान की खेती में पानी की बहुत जरूरत होती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि बेमतलब पानी का इस्तेमाल किया जाए. फसल के विकास के अलग-अलग चरणों में पानी की जरूरत होती है. जैसे कि बीज डालने के समय पानी की आवश्यकता अधिक होती है, जबकि बाद में यह कम हो सकती है. इसलिए पानी की सही अनुमान लगाना और उसी अनुसार सिंचाई करना महत्वपूर्ण है.
ड्रिप इरिगेशन एक प्रभावी सिंचाई तकनीक है, जो पानी की बचत करने के साथ-साथ फसल की खाद की खपत को भी नियंत्रित करती है. इस विधि में पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, जिससे मिट्टी की वाष्पीकरण दर कम होती है और पानी की बचत होती है. इसके अलावा, यह तकनीक बहुत कम पानी में बेहतर परिणाम देती है.
पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए आप पॉन्जी (पानी की झीलों से पानी निकालने वाली तकनीक) या सौर सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये दोनों तकनीक पानी की बचत करने और सिंचाई के खर्च को कम करने में मदद करती हैं. सौर ऊर्जा का उपयोग करके सिंचाई प्रणाली को चलाना पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होता है.
पंक्ति तकनीक में फसल की पंक्तियों के बीच अधिक जगह छोड़ी जाती है, जिससे मिट्टी में पानी के अवशोषण की क्षमता बढ़ती है. इसके अलावा, यह तकनीक पानी के संचय को भी बढ़ाती है और खेत में जलवायु परिवर्तन का असर कम करती है. पंक्ति तकनीक में पौधों के बीच उचित अंतराल रखा जाता है ताकि जल का प्रवाह ठीक से हो सके.
धान की खेती के लिए स्थायी जल स्रोत होना बहुत जरूरी है. यदि आपके पास जलाशय या तालाब हो तो आप बारिश के पानी को इकट्ठा कर सकते हैं और उसे भविष्य में सिंचाई के लिए उपयोग कर सकते हैं. यह जल संग्रह तकनीक पानी की भारी कमी के समय में बहुत मदद करती है. इसके अलावा, यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होती है.
सिंचाई का समय भी बहुत महत्वपूर्ण होता है. अधिकतर किसान दिन के गर्म समय में सिंचाई करते हैं, जिससे पानी का वाष्पीकरण अधिक होता है और पानी का व्यर्थ खर्च होता है. इसके बजाय, सिंचाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए, जब तापमान कम होता है और पानी का वाष्पीकरण कम होता है.