PHOTOS: द‍िल्ली के खेतों में क्या कर रहे हैं इतने सारे वैज्ञान‍िक, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ

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PHOTOS: द‍िल्ली के खेतों में क्या कर रहे हैं इतने सारे वैज्ञान‍िक, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ

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भारत के पास दुन‍िया का दूसरा सबसे बड़ा जीन बैंक है. ज‍िसमें करीब 4 लाख 70 हजार तरह के बीज संरक्ष‍ित क‍िए गए हैं. यह नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेट‍िक्स र‍िर्सोसेज (NGPGR) के अधीन काम करता है. हमारे यहां मौजूद बीजों की विरासत को यहां सहेजा गया है. ताकि भविष्य में उन्हें उपयोग में लाया जा सके. उनके अनोखे गुणों का इस्तेमाल करके नए बीज बनाकर क‍िसानों को फायदा द‍िलाया जा सके. इसी के तहत इन बीजों में से कुछ को अब जीन बैंक से बाहर न‍िकालकर खेतों तक लाया गया है. खेतों में पहुंचाकर उनका वैलुएशन क‍िया जा रहा है. उनका ट्रायल क‍िया जा रहा है क‍ि इनमें खास क्या है. ज‍िसका क‍िसानों के कल्याण के ल‍िए इस्तेमाल हो सकता है. 

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लोब‍िया, अरहर, त‍िल, सब्ज‍ी फसलों, मक्का एवं सोयाबीन आद‍ि की पारंपर‍िक और जंगली क‍िस्मों की बुवाई की गई है. उनके गुणों को देखा जा रहा है. शुक्रवार को कई संस्थानों के लोगों ने खेत में जाकर इनके गुणों को देखा. ये लोग एनजीपीजीआर के साथ मैटीर‍ियल ट्रांसफर एग्रीमेंट साइन करेंगे. इसके तहत इन फसलों के जीन का कॅमर्श‍ियल इस्तेमाल हो सकेगा. ज‍िससे क‍िसानों को फायदा होगा. 

 

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एनजीपीजीआर के न‍िदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप स‍िंह ने 'क‍िसान तक' को बताया क‍ि इन बीजों को जब खेत में लगाया गया तो कोई फसल खतरनाक रोगों के प्रत‍ि प्रत‍िरोधी यानी सहनशील थी और कोई जलवायु पर‍िवर्तन का सामना करने में सक्षम थी. अब इनके जीन का इस्तेमाल नई क‍िस्मों को बनाने में होगा. जीन बैंक में बीजों को सरंक्षित किया गया है ताक‍ि भविष्य में ये हमारे काम आ सकें. 


 

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जीन बैंक में ज‍िन पुराने और जंगली बीजों को रखा गया है उनमें कई अनोखे गुण हैं. ज‍िनका नए बीजों को बनाने में इस्तेमाल होगा. जैसे एक लोब‍िया ऐसी है ज‍िसकी लंबाई 80 सेंटीमीटर तक है. इस गुण के साथ नई क‍िस्म बनने पर क‍िसान ज्यादा पैदावार लेकर ज्यादा कमाई कर सकते हैं. इसी तरह यहां सोयाबीन में फ्रूट‍िंग ज्यादा है और रोगरोधी है. 

 

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त‍िल में न स‍िर्फ पैदावार ज्यादा है बल्क‍ि कम समय में पकने वाला गुण भी है. आमतौर पर त‍िल 120 द‍िन में तैयार होता है लेक‍िन यहां 70 से 75 द‍िन में तैयार हो रहा है. यहां ऐसी जंगली अरहर है ज‍िसका इस्तेमाल चारे के तौर पर भी हो सकता है और यह ब‍िल्ट रोग प्रत‍िरोधी है. इनके प्लांट जेनेट‍िक्स र‍िसोर्स यानी जर्मप्लाज्म फसल सुधार में मदद करेंगे. 

 

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प्लांट जेनेट‍िक्स र‍िर्सोर्स (पीजीआर) को भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने के ल‍िए द‍िल्ली में 1996 में नेशनल जीन बैंक स्थाप‍ित क‍िया गया था. इस बैंक में लगभग 10 लाख जर्मप्लाज्म को संरक्षित करने की क्षमता है. आनुवंशिक सामग्री को जर्मप्लाज्म (जननद्रव्य) कहा जाता है. पीजीआर में  4.70 लाख जर्मप्लाज्म है, जिसमें से 2.7 लाख भारतीय और शेष अन्य देशों से आए हैं. एनजीपीजीआर विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में स्थित 10 अन्य स्टेशनों के जर‍िए भी जर्मप्लाज्म संरक्ष‍ित करता है. इस बैंक में कुछ बीज माइनस 18, कुछ 25 तो कुछ माइनस 196 डिग्री सेल्सियस में रखे गए हैं.  

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