देश में रबी फसलों की बुवाई का काम जोरों पर चल रहा है. रबी सीजन में चना दलहन की मुख्य फसल है. चने की बुवाई दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है. यानी अब बुवाई का सहीयह महीना पूरी तरह से चने की बढ़वार अवस्था का होता है. ऐसे में जो किसान चने की खेती कर रहे हैं वे किसान फ़सल की लागत कम कर अधिक से अधिक पैदावार ले सकें इसके लिए कृषि विभाग एवं कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किसान हित में एडवाइजरी जारी की जा रही है. इस कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा दिसंबर महीने में चना की खेती को लेकर किसानों को सलाह दे रहे हैं. इसमे चने में सिंचाई,कीट एवं रोग का नियंत्रण,खाद का उपयोग,मिट्टी का चयन को लेकर एडवाइ जारी की है.
कैसे करें खरपतवार का नियंत्रण
उत्पादकता में कमी को रोकने हेतु फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है. इसके लिए किसानों को चने की बुआई के 30 दिनों बाद एक निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को निकालना काफी लाभदायक रहता है. इससे जड़ों की अच्छी बढ़वार तथा फसल से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है. चने में बुआई के 35-40 दिनों बाद शीर्ष कालिका की तुड़ाई से भी अधिक शाखाएँ बनने से भी पैदावार अधिक मिलती है.
इस तरह की भूमि का करें चयन
चने की खेती हल्की से भारी मिट्टी में की जाती है. इसकी खेती के लिए ऐसे भूमि का चयन करें जहां जलनिकासी की पर्याप्त व्यवस्था उपयुक्त हो. पौधों के अच्छे विकास के लिए 5.5 से 7 पी एच वाली मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती हैं,
कब करना चाहिए सिंचाई
उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में फूल बनते समय एक सिंचाई लाभदायक रहती है. वहीं उत्तर-पश्चिमी मैदानी तथा मध्य भारत क्षेत्रों में दो सिंचाइयाँ जैसे शाखाएँ निकलते समय तथा फूल बनते समय सबसे अधिक लाभकारी होती है. इस महीने सिंचाई के साथ-साथ खरपतवार और कीट-रोगों का प्रबंधन भी चने में आवश्यक हो जाता है.
कीटों से बचाने के लिए करें ये उपाय
प्रथम सिंचाई बिजाई के 55 दिन बाद, द्वितीय सिंचाई 100 दिन बाद करनी चाहिए. लेकिन यदि एक ही सिंचाई करनी हो तो 50-60 दिन बाद करें. हैलीकोवरपा आर्मीगेरा फीरोमॉन कार्ड 10-12 प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं. कम हमला होने पर सुंडी को हाथ से उठाकर बाहर निकाल दें. शुरूआती समय में एच एन पी वी या नीम का अर्क 50 ग्राम प्रति लीटर पानी का प्रयोग करें.
उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर होती है चने की खेती
चने का उत्पादन उत्तर भारत मे बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. संरक्षित नमी वाले शुष्क क्षेत्रों में इसकी खेती बेहद उपयुक्त मानी जाती है. ध्यान रखें इसकी खेती ऐसे स्थानों पर करें जहां 60 से 90 सेमी बारिश होती है. सर्द मौसम वाले क्षेत्र में अगर आप इसकी खेती करते हैं तो सबसे बेहतर है. 24 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इसके पौधे अच्छे तरीके से विकास करते हैं.