दुनियाभर में हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस (World Water Day) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सभी देशों में स्वच्छ जल को सभी लोगों तक पहुंचाने के साथ-साथ जल के संरक्षण पर भी ध्यान देना है. लेकिन आप पूछ सकते हैं कि आखिर पानी बचाने की सारी जिम्मेदारी कृषि क्षेत्र या किसानों पर ही क्यों? दरअसल, खेती बारिश के पानी से ज्यादा सतही और भूजल पर निर्भर है, जो लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और अन्य दूसरे कारणों से गिरता जा रहा है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1993 में निर्णय लिया कि ताजे पानी के संरक्षण और इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक दिन निर्धारित किया जाना चाहिए. तब से 1993 से 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
बता दें कि भारत में जल के गिरते जलस्तर को रोकने और जल संरक्षण के लिए केंद्र के अलावा राज्य सरकारें भी अलग-अलग योजनाएं शुरू करने के साथ ही जिन फसलों में अधिक पानी न लगता हो उसकी खेती पर ध्यान दे रही हैं. फसल विविधीकरण से लगभग 65 से 70 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत कर सकते हैं.
भारत में पंजाब और हरियाणा में भी आए दिन भूजल का स्तर गिरता जा रहा है. इसका कारण इन दोनों राज्यों में धान की खेती को माना जाता है. दरअसल, अन्य फसलों की तुलना में धान की खेती में सिंचाई के लिए सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है. ऐसे में इन दोनों राज्यों के किसानों द्वारा धान की अधिक खेती की वजह से वहां पानी का संकट गहराने लगा है.
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इसी संकट को देखते हुए हरियाणा सरकार ने साल 2025-2026 वाले बजट में धान की खेती की जगह अन्य फसलों की खेती करने वाले किसानों की प्रोत्साहन राशि को बढ़ाया है. पहले हरियाणा में धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को 7000 रुपये दिए जाते थे, जिसे बढ़ाकर अब 8000 रुपये कर दिया गया है. बजट के दौरान सरकार ने बताया, 'मेरा पानी-मेरी विरासत' योजना के तहत धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को मिल रही सब्सिडी राशि 7000 रुपये प्रति एकड़ से बढ़ाकर 8000 रुपये प्रति एकड़ मिलेगी.
बता दें कि पंजाब में बढ़ती हुई धान की खेती को देखते हुए पंजाब सरकार ने भी पानी बचाने की मुहिम शुरू की है. इसी कड़ी राज्य सरकार क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के लिए एक योजना लेकर आई है. इसके तहत राज्य में धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को 7000 रुपये प्रति एकड़ की दर से मदद दी जाती है.
हरियाणा सरकार के एक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में भूजल स्तर, विशेष रूप से मीठे पानी वाले क्षेत्र में भारी उपयोग के कारण भूजल स्तर तेजी से घट रहा है, जो एक गंभीर समस्या है. जून 2014 से जून 2024 तक औसत गिरावट 5.41 मीटर है.
पानी की समस्या से छुटकारा पाने के लिए कई विकसित और कृषि प्रधान देश हैं जो धान की खेती कम करते हैं. या बिल्कुल ही नहीं करते हैं. उन देश के किसानों और सरकार का मानना है कि जितनी पानी वो धान की खेती में लगाएंगे उतने में उस पानी का इस्तेमाल अन्य चीजों में हो जाएगा. इन देशों में चीन शामिल है, जो धान की खेती करने के बजाय जरूरतों के लिए अन्य देशों हर साल लगभग 4.963 से 5.054 मिलियन टन चावल आयात करता है. वहीं, भारत हर साल दुनिया भर में करीब 20.5 मिलियन टन चावल निर्यात करता है. यह दूसरे सबसे बड़े चावल निर्यातक देश थाईलैंड के मुकाबले करीब 2.5 गुना ज़्यादा है. इसके अलावा भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है.