Election Memories : जब चुनाव में किसानों ने अपने ही 'राजा' को वोट देने से किया इंकार

Election Memories : जब चुनाव में किसानों ने अपने ही 'राजा' को वोट देने से किया इंकार

वैसे तो राजा रजवाड़े History of Democracy में समा गए, लेकिन भारत में आजादी के 75 साल बाद भी राजघरानों के लोग राजकाज में अपनी पैठ बनाए हुए हैं. इन्ही राजघरानों के कुछ राजा ऐसे भी हुए हैं, जो सही मायने में जनसेवक कहलाए. जनता ने उन्हें 'फकीर' तक कह डाला. चुनावी इतिहास में दर्ज है कि ऐसे ही एक राजा काे जनता ने जब वोट देने से इंकार कर दिया.

न‍िर्मल यादव
  • Lucknow,
  • Apr 04, 2024,
  • Updated Apr 04, 2024, 10:12 PM IST

लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व चुनाव होता है. चुनाव होने के बाद 5 साल तक जनता भले ही याचक बनकर नेताओं के पीछे चक्कर काटती रहे, मगर चुनाव के वक्त जनता का रुतबा राजा की तरह हो जाता है. बड़े से बड़े नेता भी हाथ जोड़कर जनता के सामने याचक बने नजर आते हैं. जम्हूरियत में जनता की इसी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जब एक राजघराने का राजा को भी Electoral Fight जीतने के लिए जनता से वोट की भीख मांगनी पड़ती है. देश में 75 साल के चुनावी इतिहास में इस तरह की घटनाएं भरी पड़ी हैं, जब असल राजाओं को जनता ने वोट की ताकत का अहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी तरह का एक रोचक किस्सा प्रयागराज की मांडा रियासत का है, जिसके राजा अपनी दरियादिली के बलबूते देश के प्रधानमंत्री भी बने, लेकिन मौका आने पर उन्हीं की रियासत के कुछ किसानों ने उन्हें वोट देने से दो टूक इंकार कर दिया.

अमिताभ बच्चन की उतरी थी खुमारी

बात उन दिनों की है जब 1980 के दशक में कांग्रेस का रुतबा था. तत्कालीन PM Indira Gandhi की 1984 में हत्या के बाद हुए General Election में उपजी Sympathy wave के चलते कांग्रेस ने ऐति‍हासिक जीत दर्ज कराई थी. कांग्रेस की तूफानी लहर के बीच जनता के दिलों पर राज कर रहे सिने स्टार अमिताभ बच्चन को भी इलाहाबाद सीट (वर्तमान में प्रयागराज) पर ऐतिहासिक मतों से जनता ने जिताया.

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इसके बाद इलाहाबाद सीट पर 1988 में हुए उपचुनाव में दो दिग्गज आमने सामने आ गए. इलाहाबाद से सटी मांडा रियासत के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस छोड़कर Independent Candidate के तौर पर चुनावी दंगल में उतर गए. वहीं, कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री को उतारा था.

वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने अपनी पुस्तक ''वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं'' के एक अध्याय में इस घटना का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा कि कांग्रेस को इस जमीनी हकीकत का अहसास था कि पिछले चुनाव में जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने एकतरफा जीत दर्ज कराई थी, उस तरह के हालात इस उपचुनाव में नहीं है. लिहाजा राजा मांडा के सामने कांग्रेस उम्मीदवार सुनील शास्त्री की डगर आसान नहीं है.

राजा ने मांगे किसानों से वोट

इस उपचुनाव के पहले वीपी सिंह Cabinet Minister और UP CM रह चुके थे. जनता के मन में उनकी छवि भी देश के बड़े नेता होने के साथ साथ, फकीर वाली भी थी. इलाहाबाद के कटघर इलाके में मौजूद 'मांडा हाऊस' से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक में वीपी सिंह के घर के दरवाजे जनता के लि‍ए हमेशा खुले रहते थे. इसीलिए उस समय वीपी सिंह‍ के लिए एक नारा लगता था ''राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है.''

इस छवि को सही साबित करते हुए वीपी सिंह उपचुनाव में प्रचार के दौरान गांव गांव जाकर जनता से वोट मांग रहे थे. उस वक्त Rabi Season की मुख्य फसल गेहूं की कटाई भी चल रही थी. तभी वीपी सिंह दर्जनों मोटर साइकिल के काफिले में शामिल होकर वोट मांगते हुए एक गांव से गुजर रहे थे. उन्होंने देखा कि सड़क किनारे एक‍ खेत में कुछ किसान फसल काट रहे थे. वह मोटर साइकिल से उतर कर खेत की मेंड़ से पैदल चलते हुए तकरीबन दर्जन भर किसानों के पास पहुंचे. किसानों के समूह में कुछ महिलाएं भी थीं.

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हम तोहके नाही, राजा को वोट देब

वीपी सिंह ने किसानों से हाथ जोड़कर कहा कि ''मैं विश्वनाथ हूं, चुनाव में खड़ा हूं, इसलिए मुझे आपका वोट चाहिए.'' इन किसानों ने बिना कोई लाग लपेट के एक स्वर में दो टूक कह दिया कि ''हम तोहके वोट न देब.'' पूर्व सीएम, पूर्व केंद्रीय मंत्री और स्थानीय रियासत के पूर्व राजा होने के बावजूद अपनी ही जनता से इस तरह का जवाब सुनकर वीपी सिंह के चेहरे की हवाईयां उड़ गई.

निराश होकर वह वापस जाने लगे, तभी दो कदम चलकर उन्होंने किसानों से पूछा कि हमकाे वोट नहीं दोगे, ये बात तो ठीक है, इतना तो बता दो कि किसको वोट दोगे. वीपी सिंह को उम्मीद थी कि किसान कांग्रेस को वोट देने की बात कहेंगे.

किसानों ने उतनी ही बेबाकी से कहा कि ''हम तो राजा मांडा को वोट देब.'' इतना सुनकर वीपी सिंह मुस्कुराए और बोले कि आप लोग मुझे नहीं, राजा मांडा को ही वोट दीजिएगा. चुनाव के जब नतीजे आए तो वीपी सिंह‍ ने सुनील शास्त्री को 1 लाख से भी ज्यादा वोट से हरा दिया था.

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