पंजाब में बाढ़ के कारण सामान्य जनजीवन बेहाल है. आलम ये है कि होशियारपुर में कई परिवार तो ऐसे हैं जो अपने घरों को छोड़ने को मजबूर हुए तो ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को ही अस्थायी घरों में बदल दिया. ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से बने ऐसे अस्थायी घरों की लंबी कतारें श्री हरगोबिंदपुर रोड के किनारे लगी दिखाई दे रही हैं. ये वही लोग हैं जिन्हें भारी बारिश और बाढ़ में अपने घरों के बह जाने का खतरा है. दरअसल, पंजाब में ये भारी बाढ़ हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के जलग्रहण क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण आई है. गुरदासपुर, पठानकोट, फाजिल्का, कपूरथला, तरनतारन, फिरोजपुर, होशियारपुर और अमृतसर सहित कुल 12 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं.
रारा गांव के निवासी 54 साल के मंजीत सिंह ने बताया कि बाढ़ के पानी ने न केवल उनकी खेती को नष्ट कर दिया है, बल्कि उनका घर भी 3 फीट पानी में डूब गया है. अपने दो भाइयों और उनके परिवारों के साथ, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, (कुल 12 सदस्य) मंजीत सिंह रारा पुल के पास खड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर तिरपाल की चादरों के नीचे डेरा डाले हुए हैं. उन्होंने कहा कि हम किसी तरह कुछ कपड़े, दो बोरी गेहूं और कुछ जरूरी सामान ला पाए हैं. हमारे मवेशी भी हमारे साथ यहां बंधे हैं. उन्होंने अपने कच्चे घर के ढह जाने का डर भी जताया क्योंकि पानी चारों तरफ से घिर गया है. उन्होंने बताया कि पास का एक घर पहले ही ढह चुका है. उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को तिरपाल से ढकना पड़ा और बारिश में पूरी रात छाता पकड़े बैठे रहना पड़ा. आज ही एक एनजीओ ने हमें बेहतर छत मुहैया कराई है, इसलिए उम्मीद है कि आज रात थोड़ी बेहतर होगी.
मंजीत सिंह, जिनके पास 2.5 एकड़ ज़मीन है और 15 एकड़ जमीन ठेके पर है, गन्ना, धान, मक्का और चिनार की खेती करते हैं. उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि चिनार को छोड़कर, सभी फसलें बाढ़ में नष्ट हो गई हैं. हमने जिस जमीन का ठेका लिया था, वह पानी में डूबी हुई है, फिर भी हमें किराया देना होगा. उन्होंने सरकार से किसानों को उनकी फसल के नुकसान की भरपाई करने और क्षतिग्रस्त घरों के पुनर्निर्माण में मदद करने का आग्रह किया. उन्होंने बताया कि आस-पास के गांवों के भले लोग उनके मवेशियों के लिए सूखे और हरे चारे का इंतजाम कर रहे हैं. स्थानीय गुरुद्वारे और स्वयंसेवी संगठन पका हुआ खाना मुहैया करा रहे हैं, लेकिन सिंह ने बताया कि शुरुआत में उन्हें जो पतले तिरपाल दिए गए थे, वे बारिश से बचने के लिए नाकाफ़ी थे. हाल ही में इलाके के एक विधायक ने उनसे मुलाकात की और राशन, पशुओं का चारा और तिरपाल बांटे.
अन्य स्थानों पर भी ऐसी ही दुखद कहानियां सामने आ रही हैं, क्योंकि रारा, गंधोवाल और फत्ता कुल्ला गांवों के लगभग 40-45 परिवार भी लगभग 250 मवेशियों के साथ उसी सड़क पर डेरा डाले हुए हैं. ज़्यादातर परिवारों ने अपने घरों और पशुओं की देखभाल के लिए ज़िला प्रशासन द्वारा स्थापित राहत शिविरों में जाने के बजाय अपने गांवों के पास ही रहना पसंद किया. कोलियन गांव में, दिहाड़ी मजदूर गोपाल मसीह (35) ने बताया कि उनका दो कमरों का कच्चा मकान क्षतिग्रस्त हो गया है, एक कमरा पहले ही ढह चुका है और दूसरा खतरे में है.
उनकी पत्नी, दो बच्चे और बुज़ुर्ग मां सहित उनका परिवार एक ऊंची जगह पर स्थित गांव के सरपंच के घर में शरण लिए हुए है. उन्होंने कहा कि हम कुछ अन्य परिवारों के साथ वहीं खाना बनाते और खाते हैं. गैर-सरकारी संगठन राशन की मदद कर रहे हैं. सरपंच के पति डेविड मसीह ने बताया कि चार-पांच परिवारों के लगभग 20-25 लोग उनके घर में शरण लिए हुए हैं. उन्होंने कहा कि उनके अपने घर अभी भी घुटनों तक पानी से घिरे हुए हैं. असली चुनौती बाढ़ का पानी उतरने के बाद शुरू होगी.
(सोर्स- PTI)
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