अरहर में खर-पतवार खत्म के लिए बेहद कारगर हैं ये दो दवाएं, अभी करें इस्तेमाल

अरहर में खर-पतवार खत्म के लिए बेहद कारगर हैं ये दो दवाएं, अभी करें इस्तेमाल

खेत में खरपतवार के बेहतर प्रबंधन के लिए किसान कुछ दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके छिड़काव से घास और खरपतवारों को नियंत्रित करने में सफलता मिलती है. अरहर की फसल में घास कुल के खर-पतवार नियंत्रण के लिए क्लिजैलोफाप 5 EC 400 मिली 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए.

अरहर की खेतीअरहर की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 08, 2024,
  • Updated Aug 08, 2024, 9:40 AM IST

खरीफ के सीजन में धान और अन्य फसलों के अलावा किसान दलहनी फसलों की भी खेती करते हैं. खास कर अरहर की खेती खूब होती है,. इसकी खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद होती है क्योंकि अच्छी पैदावार होने पर इसके अच्छे दाम मिलते हैं. अरहर की खेती में अच्छा उत्पादन हासिल करने के लिए खेत का प्रबंधन अच्छे तरीके से करना चाहिए. सही समय पर खाद और दवाओं का छिड़काव करना चाहिए. साथ ही खेत में खरपतवार का नियंत्रण भी अच्छे से करना चाहिए. अगर खेत में सही तरीके से खरपतवार का नियंत्रण नहीं किया जाता है तो इसका सीधा असर उत्पादन पर होता है.

खेत में खरपतवार के बेहतर प्रबंधन के लिए किसान कुछ दवाओं का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके छिड़काव से घास और खरपतवारों को नियंत्रित करने में सफलता मिलती है. अरहर की फसल में घास कुल के खर-पतवार नियंत्रण के लिए क्लिजैलोफाप 5 EC 400 मिली 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए. इसके साथ ही अन्य सभी प्रकार के खर पतवार नियंत्रण के लिए इमैजीमापर 400 मिली 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. किसानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बुवाई के 15 से 20 दिन बाद ही छिड़काव करना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः बिहार के किसानों को चाय की खेती पर मिलेगी ढाई लाख रुपये की सब्सिडी, जानें कैसे करें आवेदन

रोग और कीट नियंत्रण

उकटा रोग: उकटा रोग अरहर को काफी नुकसान पहुंचाता है. यह यह फ्यूजेरियम नामक फंगस से फैलता है. पौधों में फूल लगने के दौरान ही इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. सितंबर से जनवरी के महीनें के बीच में यह रोग पौधों में दिखाई देता है. इस रोग में पौधा पीला होकर सूख जाता है. पौधों की जड़ें सड़कर गहरे रंग की हो जाती हैं. इस बीमारी से बचाव के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना चाहिए. साथ ही बीज की बुवाई से पहले बीजोपचार करना चाहिए. गर्मी के सीजन में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए.

ये भी पढ़ेंः काजू की दो नई हाइब्रिड किस्में लॉन्च करेंगे पीएम मोदी, किसानों की उपज और मुनाफा बढ़ेगा, जानिए खूबियां

फायटोप्थोरा झुलसा रोग

इस रोग से भी अरहर की खेती को काफी नुकसान होता है. इस बीमारी से संक्रमित पौधा पीला होकर सूख जाता है. इसमें जमीन के ऊपर वाले तने के हिस्से में गांठ दिखाई पड़ती है जो बड़ी हो जाती है. इसके साथ ही हल्की हवा चलने के साथ ही यह पौधा वहीं से टूट जाता है. इसकी रोकथाम के लिए 3 ग्राम मेटेलाक्सील फंगीसाइड से प्रति किलो बीज को बुवाई से पहले उपचार करना चाहिए. इसके साथ ही मूंग के साथ इसकी बुवाई करनी चाहिए और रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए.

 

MORE NEWS

Read more!