महाराष्ट्र में इस साल मॉनसून की बारिश ने भारी कहर मचाया, जिसमें लाखों हेक्टेयर फसल तबाह हो गई और सैकड़ों लोगों की जान चली गई. बाढ़-भारी बारिश से मची तबाही आम लोगों और किसानों की खुशियां भी बहा ले गई है. इस साल लाखों किसानों की दीपावली की खुशियां फीकी पड़ गई हैं. ऐसा ही हाल नांदेड़ जिले की 45 वर्षीय महिला किसान कल्पना का है. बीते महीने हुई भारी बारिश और बाढ़ ने उनकी फसल पूरी तरह चौपट कर दी और साथ ही उनका घर भी इसकी वजह से टूट गया. इस बार की दिवाली उनके लिए खुशियों का नहीं, बल्कि मजबूरियों का त्योहार बन गई है.
कल्पना ने मेहनत कर अपनी 1.5 एकड़ जमीन पर सोयाबीन की फसल बोई थी और महीनों तक फसल की देखभाल की. उन्हें उम्मीद थी कि फसल बिकने के बाद परिवार के लिए नए कपड़े खरीदेंगी और अपने लिए एक साड़ी लेंगी. लेकिन, पिछले महीने मराठवाड़ा क्षेत्र में आई बाढ़ और अत्यधिक बारिश ने उनकी सारी उम्मीदें बहा दीं. फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई. अब वह अपनी बेटी और बुजुर्ग मां के साथ गांव छोड़कर नांदेड़ जिले के नायगांव औद्योगिक क्षेत्र (MIDC) के एक गोदाम में रह रही है.
कल्पना नायगांव औद्योगिक क्षेत्र में ही जूट के थैले (बैग) सिलकर कुछ पैसे कमाने की कोशिश कर रही है. कल्पना ने अपना दुख बताते हुए कहा, “पूरा खेत पानी में डूब गया. पिछले साल चार-पांच बोरी चने बेचकर करीब 10 हजार रुपये मिले थे. इस बार सोचा था कि सोयाबीन से कुछ बेहतर होगा, लेकिन सब बर्बाद हो गया.”
महाराष्ट्र सरकार ने बाढ़ प्रभावित किसानों के लिए 31 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है. लेकिन, कल्पना का कहना है कि उन्हें अब तक किसी तरह की मदद नहीं मिली. “खेती मेरे बेटे के नाम पर है, जिसकी दो साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी. इसलिए शायद हमें राहत नहीं मिली.”
कल्पना ने बताया कि अब उनके पास न नया घर है, न रोजगार का भरोसा. मेरा घर बाढ़ में टूट गया है. पति शराबी है, इसलिए साथ रहना मुश्किल हो गया था. इसलिए वह अपनी बेटी के साथ यहां आ गईं. यहां 50 थैले सीने पर 30 रुपये मिलते हैं, लेकिन काम रोज नहीं मिलता है.”
कल्पना ने आगे बताया कि एक हादसे में उनकी पीठ, पैर और गर्दन बुरी तरह घायल हो चुके हैं, फिर भी वह किसी तरह काम कर रही हैं, ताकि परिवार का गुजारा चल सके. मेरी बूढ़ी मां भी मेरे साथ हैं, इसलिए काम रोक नहीं सकती. अब मेरी सबसे बड़ी चिंता अपनी बेटी की पढ़ाई है. बेटी को ओपन यूनिवर्सिटी से मास्टर्स में दाखिला दिलाना है. साड़ी खरीदने का सवाल ही नहीं उठता, पहले बेटी की फीस जमा करनी होगी.
वहीं, ‘शिवार’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ने कल्पना के परिवार की मदद के लिए कदम बढ़ाया है. संगठन के वॉलेंटियर विनायक हेगणे ने बताया, “हमने कल्पना की बेटी के एडमिशन को लेकर कुछ लोगों से बात की है. कोशिश करेंगे कि दाखिला हो जाए, लेकिन परिवार को और मदद की जरूरत है.” कल्पना फिर से रबी सीजन में खेती शुरू करने का इरादा रखती है. लेकिन, सवाल अब भी यह है कि बीज और खाद के पैसे कहां से आएंगे. (पीटीआई)