Chhath Puja 2025: आज से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानें किस दिन का क्या है महत्व

Chhath Puja 2025: आज से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानें किस दिन का क्या है महत्व

छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. इस व्रत में महिलाएं पूरे 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं. इस व्रत में भगवान सूर्य और छठ मैया की पूजा की जाती है. इस व्रत में दो बार सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.आइए जानते हैं इस पर्व का महत्व.

आज से शुरू हुआ छठ महापर्वआज से शुरू हुआ छठ महापर्व
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Oct 25, 2025,
  • Updated Oct 25, 2025, 1:18 PM IST

चार दिवसीय छठ महापर्व छठ का शुभारंभ आज 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से हो चुका है. हिंदू धर्म में छठ का पर्व बहुत ही विशेष और खास माना जाता है. इस त्योहार पर सूर्यदेव और छठी मैय्या की पूजा-उपासना की जाती है. छठ पर्व के ये 4 दिन बहुत ही खास माने जाते हैं, जो कि विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है. छठ पूजा को प्रतिहार, डाला छठ, छठी और सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपने परिवार और पुत्र की दीर्घायु के लिए करती हैं.

इस बार छठ के पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार से हो रही है और इसका समापन 28 अक्टूबर, मंगलवार को होगा. छठ के पर्व ये चार दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं जिसमें पहला होता है नहाय-खाय, दूसरा खरना, तीसरा संध्या अर्घ्य और चौथा ऊषा अर्घ्य-पारण. आइए अब छठ पर्व की सभी तिथियों के बारे में जानते हैं.

छठ पर्व की तिथियां

  • पहला दिन- नहाय खाय, जो कि 25 अक्टूबर 2025 को है.
  • दूसरा दिन- खरना, जो 26 अक्टूबर को है.
  • तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य, जो  27 अक्टूबर को किया जाएगा.
  • चौथा दिन- ऊषा अर्घ्य, जो 28 अक्टूबर को किया जाएगा.

नहाय खाय

छठ पूजा का पहला दिन होता है नहाय खाय. इस दिन व्रती किसी पवित्र नदी में स्नान करके, इस पवित्र व्रत की शुरुआत की जाती है. माना जाता है कि छठी मैया स्वच्छता और पवित्रता की प्रतीक हैं, इसलिए किसी भी तरह की अशुद्धि नहीं होनी चाहिए. इस दिन व्रती एक बार ही भोजन करते हैं, जिसे “नहाय-खाय का प्रसाद” कहा जाता है. खाना कांसे या पीतल के बर्तन में और मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है. खाना बनाने में आम की लकड़ी या गोबर के उपले का उपयोग किया जाता है क्योंकि इन्हें सात्विक और शुद्ध माना जाता है. भोजन में आमतौर पर कद्दू की सब्जी, चने की दाल और सादा चावल बनाया जाता है. नहाय-खाय के दिन ही व्रती छठ व्रत का संकल्प लेते हैं और आने वाले तीन दिनों तक शुद्धता, संयम और भक्ति का पालन करते हैं.

खरना

छठ पूजा का दूसरा दिन होता है खरना. खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास करते हैं. शाम के समय व्रती मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ की खीर और घी से बनी रोटी तैयार करते हैं. सूर्य देव की विधिवत पूजा के बाद यही प्रसाद सबसे पहले ग्रहण किया जाता है. इस प्रसाद को खाने के बाद व्रती अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने तक अन्न और जल का पूर्ण रूप से त्याग करती हैं.

संध्या अर्घ्य

छठ पूजा का तीसरा और महत्वपूर्ण दिन होता है संध्या अर्घ्य. इस दिन व्रती दिनभर बिना जल पिए निर्जला व्रत रखती हैं. फिर शाम को व्रती नदी या तालाब में डूबकी लगाते हुए ढलते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं. बता दें कि इस दिन सूर्य अस्त शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा.

ऊषा अर्घ्य

इस पूजा का चौथा और आखिरी दिन होता है ऊषा अर्घ्य. इस दिन सभी व्रती और भक्त नदी में डूबकी लगाते हुए उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर होगा. अर्घ्य देने के बाद, 36 घंटे का व्रत प्रसाद और जल ग्रहण करके खोला जाता है, जिसे पारण कहा जाता है. छठ महापर्व में वैसे तो कई प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, लेकिन उसमें सबसे अधिक महत्व ठेकुए का होता है. ठेकुए को गुड़ और आटे से बनाया जाता है. छठ की पूजा ठेकुआ के बिना अधूरी मानी जाती है.

छठ पूजा महत्व

छठ पूजा सूर्य देव और छठी मईया की आराधना का पर्व है, जिसे शुद्धता, आस्था और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है. इस पर्व में व्रती पूरी निष्ठा और संयम के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देकर जीवन में सुख, समृद्धि और संतानों के कल्याण की कामना करते हैं. यह पर्व प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा हुआ है, जो मानव जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता के महत्व को बढ़ाता है.

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