धान की सरकारी खरीद अभी शुरू भी नहीं हुई है कि उसकी मिलिंग को लेकर विवाद शुरू हो गया है. केंद्र सरकार ने टूटे चावल के दाने की छूट सीमा को 25 प्रतिशत से घटाकर मात्र 10 प्रतिशत कर दिया है. इस फैसले से राइस मिलर्स में भारी गुस्सा है. दरअसल, सरकार किसानों से एमएसपी पर धान खरीदती है, लेकिन स्टोर चावल को किया जाता है. इसलिए खरीद के बाद मंडी से उस धान को रजिस्टर्ड मिलर्स मिलिंग के लिए ले जाते हैं. जिसके लिए सरकार उन्हें पैसा देती है. लेकिन इन मिल वालों पर धान में से चावल की रिकवरी और उसके टूटने की मात्रा के कुछ मानक भी तय किए गए हैं, जिनमें सरकार मामूली बदलाव करती रहती है. यहीं से विवाद पैदा होता है.
कहा जा रहा है कि राइस मिलों पर टूटे चावल की मात्रा में बदलाव दो कारणों से किया गया है. पहला यह कि चावल की क्वालिटी में सुधार करना है. दूसरा यह कि इथेनॉल उत्पादन के लिए टूटे चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी है. सरकार की यह मंशा तो ठीक है, लेकिन राइस मिलर्स के सवालों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. धान की कुछ किस्मों में टूटन ज्यादा होती है और कुछ में कम. ऐसे में मिल वाले कैसे सिर्फ 10 फीसदी टूटन वाला चावल दे पाएंगे?
हरियाणा में 1 अक्टूबर से धान की सरकारी खरीद शुरू होने वाली है. इसलिए यहां यह मुद्दा गरमाया हुआ है. अखिल भारतीय व्यापार मंडल के राष्ट्रीय मुख्य महासचिव बजरंग गर्ग ने इस फैसले को वापस लेने की मांग की है. उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण राइस मिलें लगातार नुकसान में चल रही है.
गर्ग ने कहा कि सरकार धान से चावल निकालने की मिलिंग चार्ज 10 रुपये प्रति क्विंटल की दर से राइस मिलर्स को दे रही है. यह बहुत कम है. कम से कम एक रुपये किलो यानी 100 रुपये क्विंटल तो मिलना ही चाहिए.
मिलर्स का दावा है कि एक क्विंटल धान में लगभग 62 किलो चावल निकलता है, जबकि सरकार राइस मिलर्स से एक क्विंटल धान के बदले 67 किलो चावल मांग रही है. इस शर्त से मिलर संचालक काफी परेशान हैं. बजरंग गर्ग ने कहा कि सरकार पहले एफसीआई गोदामों में अनाज ले जाने का किराया देती थी, लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है. कुल मिलाकर राइस मिलर्स पर एक साथ नियमों के कई वज्रपात हुए हैं.
फिलहाल, देखना यह है कि 1 अक्टूबर से एमएसपी पर खरीद शुरू होने से पहले राइस मिलर्स और सरकार के बीच विवाद खत्म होता है या फिर किसानों को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा? क्योंकि अगर मिलर्स खरीदा गया धान मंडियों से नहीं उठाएंगे तो बहुत सारे किसानों को अपना धान बेचने का मौका नहीं मिल पाएगा, क्योंकि मंडियों में अनाज रखने की सीमित जगह होती है.