Dairy Farming: ये हैं गायों की टॉप 7 देसी नस्लें, दूध देने के लिए दुनियाभर में हैं मशहूर, देखें Photos

खबरें

Dairy Farming: ये हैं गायों की टॉप 7 देसी नस्लें, दूध देने के लिए दुनियाभर में हैं मशहूर, देखें Photos

  • 1/7

खेरीगढ़ गाय नस्ल का नाम क्षेत्र के नाम पर रखा गया है. इस नस्ल के मवेशी उत्तर प्रदेश के खेरी जिले में ज्यादातर पाए जाते हैं. वहीं कुछ जानवर निकटवर्ती पीलीभीत जिले में भी पाए जाते हैं. खेरीगढ़ गाय को खीरी, खैरीगढ़ और खैरी गाय के नाम से जाना जाता है. वहीं खेरीगढ़ नस्ल की गायें एक ब्यान्त में लगभग 300-500 लीटर तक देती हैं.
 

  • 2/7

गाय की देसी नस्ल थारपारकर भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है. थारपारकर का नाम इसके उत्पत्ति स्थल यानी थार रेगिस्तान से लिया गया है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के मुताबिक थारपारकर नस्ल की गायें औसतन एक ब्यान्त में 1749 लीटर तक दूध देती हैं. वहीं इस नस्ल की गायें हर रोज 12 से 16 लीटर तक दूध देती हैं. 
 

  • 3/7

देशी नस्ल के गायों में राठी नस्ल की गाय एक महत्वपूर्ण दुधारू नस्ल है. यह नस्ल देश के किसी भी क्षेत्र में रह लेती है. राठी गाय को 'राजस्थान की कामधेनु' भी कहते हैं. वहीं, राठी नस्ल की गायें प्रतिदन लगभग 7 से 12 लीटर तक दूध देती हैं. जबकि, अच्छी देखभाल और खानपान होने पर 18 लीटर तक दूध देते हुए भी देखा गया है.

  • 4/7

साहिवाल गाय को किसान व्यावसायिक रूप से पालन करना अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि साहिवाल गाय काफी अधिक मात्रा में दूध का उत्पादन करती है. वहीं साहिवाल गाय का पालन ज्यादातर उत्तर भारत में किया जाता है. साहिवाल गाय औसतन 10 से 20 लीटर देती है. हालांकि, अच्छी तरह देखभाल करने पर यह गाय 40-50 लीटर दूध भी दे सकती है.

  • 5/7

गिर गाय, गाय की एक ऐसी नस्ल है जो रोजाना औसतन 12-20 लीटर तक दूध देती है. वहीं गिर गाय, भारतीय गायों में सबसे बड़ी होती है जो औसतन 5-6 फुट ऊंची होती है. इसका औसत वजन लगभग 400-500 किलोग्राम तक होता है. इसके अलावा, गिर गाय की स्वर्ण कपिला और देवमणी नस्ल सबसे अच्छी नस्लें मानी जाती हैं. वहीं, स्वर्ण कपिला प्रतिदिन औसतन 20 लीटर दूध तक देती है और इसके दूध में फैट सबसे अधिक 7 प्रतिशत पाया जाता है.

  • 6/7

लाल कंधारी गाय छोटे किसानों के लिए बहुत लाभकारी गाय है, क्योंकि इसके देखभाल में ज्यादा लागत नहीं आता है और इसे खिलाने के लिए हमेशा हरे चारे की जरूरत भी नहीं पड़ती है. ऐसा मानते हैं कि गाय की इस नस्ल को चौथी सदी में कांधार के राजाओं द्वारा विकसित किया गया था. इसे लखाल्बुन्दा भी कहा जाता है. वहीं रेड कंधारी गाय प्रतिदिन 1.5 से 4 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है. 

  • 7/7

बचौर बिहार की भारवाहक मवेशी नस्ल है. जोकि बिहार की एकमात्र पंजीकृत मवेशी नस्ल है. बचौर नस्ल को ‘भूटिया’ के नाम से भी जाना जाता है. वहीं बचौर नस्ल की गाय मुख्य तौर पर बिहार के दरभंगा, सीतामढ़ी और मधुबनी आदि जिलों में पायी जाती है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के अनुसार बचौर नस्ल की गायें एक ब्यान्त में औसतन 347 लीटर तक दूध देती हैं. जबकि, न्यूनतम 225 लीटर और अधिकतम 630 लीटर तक दूध देती हैं. 
 

Latest Photo