खेती-किसानी के दौरान बंदरों और छुट्टा या आवारा पशुओं के द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाना कोई नई बात नहीं है. हालांकि, यह नई बात जरूर है कि जिन फसलों और फलों को कुछ साल पहले तक बंदर नुकसान नहीं पहुंचाते थे. उन फसलों और फलों को भी नुकसान पहुंचाने लगे हैं. लेकिन कहते हैं न ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ यानी जरूरत पड़ने पर चीजों का आविष्कार किया जाता है. कुछ ऐसा ही यूपी के किसानों ने भी किया है. दरअसल, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के कुछ गांवों के किसानों ने अपनी खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों, खासकर बंदरों से बचाने के लिए एक बहुत ही नायाब तरीका ढूंढ निकाला है.
दरअसल, बंदरों और अन्य जानवरों से अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए किसान अपनी खेतों में भालू का पोशाक पहन कर घूमने लगे हैं. वहीं, किसान इस काम के लिए मजदूरों को 250 रुपये प्रति दिन के हिसाब से काम पर रख रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बजरंग गढ़ गांव के संजीव मिश्रा ने शाहजहांपुर से 5,000 रुपये में "भालू की पोशाक" खरीदी है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, संजीव मिश्रा ने कहा, “बंदरों या छुट्टा मवेशियों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने की वजह से खेतों में महीनों की मेहनत बेकार हो जाती है. वहीं, भालू की पोशाक वाली युक्ति अच्छी तरह से काम कर रही है और क्षेत्र में लोकप्रिय हो रही है. हालांकि, रेक्सिन से बनी भालू की पोशाक पहनना आसान नहीं है. पोशाक गर्म होने की वजह से खेतों में चलना या दौड़ना मुश्किल होता है.”
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मजदूरों में से एक, 26 वर्षीय राजेश कुमार ने कहा, “मैं भालू के पोशाक को रोजाना पहनता हूं, और मैं खेतों के पांच चक्कर लगाता हूं और फिर एक पेड़ के नीचे बैठकर बाकी समय बिताता हूं. मेरी नौ घंटे की ड्यूटी के दौरान मेरी पत्नी कई बार मेरे साथ रहती है. वहीं, मेरा पूरा शरीर ढका हुआ रहता है और मैं जानवरों द्वारा चोट लगने के डर के बिना उन पर हमला भी कर सकता हूं.” धधौरा गांव के एक किसान लवलेश सिंह ने कहा, "यह तरीका दिन के समय अच्छा काम करता है, लेकिन हम अभी भी रात में छुट्टा या आवारा मवेशियों को दूर रखने के तरीके खोज रहे हैं."
खीरी जिले के मितौली प्रखंड के फरिया पिपरिया और धधौरा गांव के किसानों ने भी इस नायाब तरीके का सहारा लिया है और बरेली से भालू पोशाक लाए हैं. फरिया पिपरिया के विनय सिंह ने कहा, 'बंदरों के आतंक को लेकर हमने कई बार वन विभाग से संपर्क किया था, लेकिन अधिकारियों ने फंड की कमी का हवाला देकर समस्या से निपटने में असमर्थता जताई. अब, हमने इस मामले को अपने हाथों में ले लिया है और बंदरों के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए एक सस्ता विकल्प लेकर आए हैं. हमने एक रोस्टर तैयार किया है और हर किसान भालू की पोशाक पहनकर खेतों में घूमता है.
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खीरी के प्रभागीय वन अधिकारी संजय बिस्वाल ने कहा, “हम जानते हैं कि किसान बंदरों को दूर रखने के लिए एक नायाब तरीका ढूंढे हैं. वर्तमान में, हमारा विभाग धन की कमी के कारण छुट्टा या आवरा पशुओं को पकड़ने के लिए अभियान चलाने में असमर्थ है.”