महाराष्‍ट्र के विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के मामले ज्‍यादा, खेती में नुकसान और कर्ज बड़ी वजह

महाराष्‍ट्र के विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के मामले ज्‍यादा, खेती में नुकसान और कर्ज बड़ी वजह

महाराष्‍ट्र में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कृषि सुधार के लिए चलाई जा रही योजनाओं के बावजूद किसानों की खुदकुशी थमने का नाम नहीं ले रही हैं. विदर्भ के चिखल गांव के 50 वर्षीय किसान केशव यशवंत थोराट ने 24 दिसंबर 2024 को जहर पीकर आत्महत्या की थी. उन्होंने खेती के लिए बैंक से 30,000 रुपये का कर्ज लिया था, जो लगातार बढ़ता गया.

Farmer suicide MaharashtraFarmer suicide Maharashtra
धनंजय साबले
  • Akola,
  • Mar 12, 2025,
  • Updated Mar 12, 2025, 6:03 PM IST

विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े एक बार फिर चिंता बढ़ा रहे हैं. अमरावती डिवीजन के अकोला, अमरावती, यवतमाल, बुलढाणा और वाशिम जिलों में लगातार किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कृषि सुधार के लिए चलाई जा रही योजनाओं के बावजूद किसानों की खुदकुशी थमने का नाम नहीं ले रही हैं. चिखल गांव के 50 वर्षीय किसान केशव यशवंत थोराट ने 24 दिसंबर 2024 को जहर पीकर आत्महत्या की थी. उन्होंने खेती के लिए बैंक से 30,000 रुपये का कर्ज लिया था, जो लगातार बढ़ता गया.

अगले साल फिर बैंक से कर्ज का पुर्नगठन कर 13 हजार लिए, लेकिन यह बोझ और बढ़ गया और वह कर्ज न चुका सके. नई उम्मीद के साथ कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने ट्रैक्टर भी फाइनेंस कराया, लेकिन खराब मौसम और फसलों के गिरते दामों ने उन्हें और कर्ज में डुबो दिया. जब कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने अपनी जान दे दी.

बेटी ने रोते हुए बयां की पीड़ा

मृतक किसान की बेटी जाह्नवी 11वीं कक्षा में पढ़ती है. जाह्नवी ने रोते हुए कहा कि पहले मुझे अपने पिता पर गर्व था कि वे किसान हैं, लेकिन अब यह गर्व डर में बदल गया है. सरकार को किसानों की फसलों के लिए लागत से ज्यादा दाम तय करने चाहिए, ताकि कोई और बेटी अपने पिता को न खोए.

'सरकार के दावे और हकीकत में अंतर'

किसान संगठन के नेता विलास ताथोड ने बताया कि सरकार कर्जमाफी की बात करती है, लेकिन बजट में किसानों को कोई राहत नहीं दी गई. 2010 में जो फसलों के दाम थे, वे आज भी वही हैं, लेकिन लागत तीन गुना बढ़ गई है. ऐसे में किसान अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करें?

MSP से कम दाम पर हो रही खरीदी

सरकार ने 2024-25 में सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹4892 प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन बाजार में यह 3800-4000 रुपये प्रति क्विंटल तक ही बिक रही है.  कपास का समर्थन मूल्य ₹7421 है, लेकिन व्यापारी इसे ₹6800-₹6900 में खरीद रहे हैं. किसान सरकारी खरीद केंद्रों के भरोसे रहते हैं, लेकिन जैसे ही सरकारी खरीद बंद होती है, व्यापारी मनमाने दाम पर फसल खरीदकर किसानों का शोषण करते हैं.

विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार अब तक ठोस समाधान देने में विफल रही है. जब तक किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम नहीं मिलेगा, तब तक यह संकट और गहराता रहेगा. क्या सरकार किसानों को आत्महत्या से बचाने के लिए ठोस कदम उठाएगी, या फिर यह आंकड़े यूं ही बढ़ते रहेंगे?

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