पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में धान की कटाई शुरू हो गई है. साथ ही खेतों में पराली जलाने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. हालाँकि, ये मामले अभी भी बहुत कम हैं, जिससे चिंता कम है. पंजाब में 15 से 21 सितंबर के बीच पराली जलाने की घटनाओं के 10 से भी कम मामले सामने आए हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 106 मामले सामने आए थे. लेकिन कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अक्टूबर-नवंबर में ये मामले और बढ़ सकते हैं. पराली की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इससे वातावरण में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है. जिस वजह से लोगों को सांस लेने में सबसे अधिक समस्या होती है. ऐसे में इन समस्याओं पर रोक लगाने के लिए मुक्तसर के डीसी रूही दुग्ग ने गुरुवार को किसानों से धान की पराली न जलाने की अपील की.
साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई बन्दूक लाइसेंस धारक धान की पराली जलाते हुए पकड़ा गया तो उसका लाइसेंस हमेशा के लिए रद्द कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा, ''किसानों को पराली जलाने की बजाय उसे खेतों में ही मिला देना चाहिए. पराली जलाने का सबसे बड़ा नुकसान किसानों को होता है क्योंकि इससे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं.”
करनाल जिला प्रशासन ने जिले में पराली की घटनाओं को शून्य स्तर पर लाने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों की टीमें मैदान में उतार दी हैं. टीमें गांव-गांव जाकर किसानों और ग्रामीणों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताएंगी, साथ ही पराली जलाने वाले किसानों पर नियमानुसार जुर्माना लगाने से भी पीछे नहीं हटेंगी. फसल अवशेष जलाने की घटनाओं को शून्य करने के लिए पराली जलाने वाले किसानों पर 2500 रुपये से 15,000 रुपये तक जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
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सरकार का प्रयास है कि पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को हर हाल में रोका जाए, किसानों को जागरूक किया जाए और उन्हें फसल अवशेष प्रबंधन के तरीके अपनाने के बारे में पूरी जानकारी दी जाए. विभाग की ओर से होर्डिंग्स व दीवारों पर पेंटिंग करायी जा रही है.
पराली न जलाने वाले किसान अपना पंजीकरण करा लें. सरकार ऐसे किसानों को 1,000 रुपये की अनुदान राशि दे रही है. इस योजना के तहत करनाल जिले में 11 करोड़ 53 लाख रुपये की अनुदान राशि दी गई. इसके अलावा इथेनॉल प्लांट के लिए भूसा क्रय केंद्र भी उपलब्ध कराए जाएंगे.