आम लोगों के जीवन में अभी तक बेर का बहुत ही सीमित इस्तेमाल था. बेर के इस्तेमाल की बात करें तो अभी तक गांव-देहात में बेर को गर्मियों के मौसम में खाया जाता है. तो वहीं बेर को सुखा कर या उबाल कर खाने और बेर की गुठली पीस कर इसका खट्टा-मीठा पाउडर बनाने तक ही इसका इस्तेमाल है, लेकिन बेर की चॉकलेट, चटनी, जैम, जूस और यहां तक कि बेर की शहद का जिक्र हो तो, चौंकना लाजिमी है.
जी हां, बुंदेलखंड में एक युवा उद्यमी किसान ने बेर से बने इन उत्पादों को बाजार में पेश कर दिया है. बेंगलुरू से फूड टेक्नोलाॅजी की पढ़ाई कर झांसी जिले में अपने पुश्तैनी गांव से स्टार्टअप शुरू कर शिवानी बुंंदेला, खट्टे-मीठे चटकारेदार स्वाद में बेर की चॉकलेट से लेकर शहद तक तमाम चीजें बना रही हैं.
बेर से उत्पाद तैयार कर रही शिवानी ने 'किसान तक' को बताया कि उन्हाेंने कोरोना महामारी की आपदा में अवसर तलाशते हुए झांसी जिले में स्थित अपने गांव लहरखुर्द का रुख किया था. बुंदेलखंड में बेर की पर्याप्त उपलब्धता को देखते हुए उन्होंने बेर से चॉकलेट और जूस बनाने के प्रयोग किए. इन प्रयोगों की कामयाबी के बाद बेर का जैम, शहद और त्वचा की देखभाल के लिए स्क्रब तक बना डाला. इन उत्पादों की आकर्षक पैकिंग के बाद स्थानीय बाजार में ट्रायल के तौर पर इन्हें पेश किया.
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बाजार से बेहतर रिस्पांस मिलने के बाद 2021 में शिवानी ने यूपी सरकार के उद्यान विभाग की मदद से बेर के उत्पादों का स्टार्टअप शुरू किया. इस प्रकार 'अब्रोसा' ब्रांड नेम के साथ बेर के उत्पादों ने बाजार में दस्तक देकर, बेर के मार्फत किसानों को उद्योग से जोड़ने के सफर की शुरुआत हो गई.
महज 2 साल के भीतर बेर के इन उत्पादों का लजीज स्वाद लखनऊ में यूपी सरकार के गलियारों तक पहुंच गया. गत फरवरी में दुबई में आयोजित इंटरनेशनल फूड एक्सपो में उद्यान विभाग द्वारा लगाए गए स्टॉल में बुंदेलखंड के बेर से बने उत्पादों ने विदेशियों को खूब लुभाया.
शिवानी ने बताया कि उनके स्टार्टअप द्वारा बनाए जा रहे बेर के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरे हैं. इसके फलस्वरूप ही दुबई मेले में उन्हें सऊदी अरब सहित अन्य देशों की कंपनियों से बेर के उत्पाद निर्यात करने के 5 ऑर्डर मिले हैं. इसके साथ ही बुंदेलखंड के बेर से बने उत्पाद अब भारत से बाहर भी अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक बेर के प्रोडक्ट का निर्यात होने से इस इलाके के किसानों को 300 रुपये प्रति किग्रा तक बेर की कीमत मिल सकती है. इससे स्पष्ट है कि बेर उत्पादक किसानों के लिए भविष्य में बेर से आय में इजाफा होना तय है.
शिवानी ने बताया कि बेर से तमाम उत्पाद बनाने के लिए उन्होंने स्वयं अपने एक खेत में बेर का बाग लगाया है. इसके अलावा वह आसपास के गांवों में किसानों से बेर खरीदती हैं. पिछले 2 साल में स्टार्टअप से लगभग 250 किसान जुड़ चुके हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने गांव लहरगिर्द में एक छोटी सी प्रोडक्शन यूनिट लगाई है. जिसमें बेर की चॉकलेट सहित अन्य उत्पाद बनाने के लिए लगभग 20 कर्मचारियों की टीम काम करती है. किसानोंं के अलावा बेर तोड़ कर इनकी आपूर्ति करने के लिए श्रमिक भी तैनात हैं. इन्हें बेर कलेक्टर कहा जाता है.
उनके स्टार्टअप से जुड़े सिरमऊ गांव के किसान अशोक गुप्ता ने बताया कि उनके 40 एकड़ खेत में बेर के लगभग 300 पेड़ हैं. हर सीजन में औसतन 10 पेड़ से प्रतिदिन 1 से 1.5 कुंतल बेर तोड़कर बाजार भेजे जाते हैं. बाजार में इनकी कीमत 20 40 रुपये प्रति किग्रा तक मिल जाती है. इस प्रकार एक सीजन में उन्हें कम से कम 1 से 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त आय हो जाती है.
शिवानी ने बताया कि बीते 1 साल में उन्होंने किसानों से 40 हजार किग्रा बेर खरीद कर बेर के तमाम उत्पाद बनाए. इस साल उनके स्टार्टअप में बेर की मांग 5 गुना तक ज्यादा है.
उन्होंने बताया कि अभी तक वह सिर्फ देसी बेर से ही चॉकलेट एवं अन्य उत्पाद बना रही थीं. बुंदेलखंड में किसान हाइब्रिड किस्म के मलेशियन और थाई एप्पल बेर भी उगाते हैं. हाइब्रिड बेर से सॉफ्ट ड्रिंंक एवं अचार सहित अन्य उत्पाद बनाने की तैयारी है.
झांसी मंडल के उप निदेशक, उद्यान विनय कुमार यादव ने कहा कि बेर की बेहतर उपज के लिए बुंदेलखंड बिल्कुल मुफीद इलाका है. उन्होंने कहा कि बेर से चॉकलेट जैसे उत्पाद बनाने का यह अनूठा स्टार्टअप झांसी में युवा उद्यमी किसान ने शुरू कर किसानों की अतिरिक्त आय बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. उन्होंने कहा कि यह स्टार्टअप किसान और बाजार को जोड़ने की आदर्श कड़ी बन कर उभर रहा है. विभाग द्वारा इस दिशा में किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ देने में पूरी मदद की जा रही है.