मंडी हो या खुदरा बाजार, टमाटर की कीमतें बेहद तेजी से गिर रही हैं. मंडियों में जहां किसानों को टमाटर का भाव 5 रुपये मिल रहा है तो खुदरा बाजार में 10 से 15 रुपये तक कीमत गिर गई है. इससे किसान और व्यापारी दोनों परेशान हैं. हालांकि उपभोक्ताओं को राहत जरूर है क्योंकि पहले इसी टमाटर का भाव 80-100 रुपये तक चढ़ा था. हम यहां तेलंगाना की मंडियों की बात कर रहे हैं.
तेलंगाना के सिद्दीपेट में किसान बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती करते हैं. किसानों ने इस उम्मीद में टमाटर की खेती की थी कि उन्हें अच्छा रेट मिलेगा. लेकिन उल्टे उन्हें मायूसी मिली है. यहां कुछ किसानों ने अपनी ही फसल को इसलिए बर्बाद कर दिया क्योंकि उन्हें मंडी में टमाटर के अच्छे भाव नहीं मिले. ऐसे किसानों को मंडी में मात्र 2.5 रुपये किलो भाव मिल रहा था. इससे नाराज होकर किसानों ने अपने हाथों से ही फसल को चौपट कर दिया.
हालत ये है कि पिछले दो-तीन महीनों से फसल पर इतना समय और पैसा खर्च करने के बाद किसानों को फसल काटने में खर्च की गई मजदूरी भी नहीं मिल रही है. खुदरा बाजार में सब्जी 10 से 15 रुपये प्रति किलो बिक रही है, लेकिन किसानों को सिर्फ 5 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं. सिद्दीपेट में तो कुछ किसानों ने तो अपनी फसल ही छोड़ दी, क्योंकि कुछ व्यापारियों ने उन्हें सिर्फ 2.5 रुपये प्रति किलो की पेशकश की थी.
यहां के मेडक जिले के किसानों ने करीब 2,000 एकड़ में टमाटर फसल की खेती की थी, लेकिन पिछले दो महीनों से कीमतों में गिरावट ने उन्हें गंभीर संकट में डाल दिया है. कीमतों में गिरावट ने एक बार फिर बागवानी विभाग की ओर से फसल की खेती कैसे और किस हद तक की जाए, इस बारे में दिशा-निर्देशों की कमी को उजागर किया है. साथ ही राज्य सरकार की ओर से किसानों को दिए जाने वाले समर्थन की कमी को भी उजागर किया है.
'तेलंगाना टुडे' की एक रिपोर्ट में कहा गया है, शिववमपेट मंडल के एक किसान, वदिथ्या लछिराम नायक कुछ अच्छी कीमत पाने की उम्मीद में संगारेड्डी रविवार के बाजार में दो क्विंटल टमाटर लेकर आए थे. हालांकि उन्हें मुश्किल से 15 रुपये प्रति किलो का भाव मिल पाया. नायक ने कहा कि उन्हें शाम तक टमाटर 10 रुपये प्रति किलो पर बेचना पड़ा क्योंकि वे उन्हें वापस नहीं ले जा सकते थे. उन्होंने बाकी की उपज अपने खेत में व्यापारियों को 5 रुपये किलो पर बेच दी थी. चूंकि मेडक में कोई कोल्ड स्टोरेज या प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है, इसलिए टमाटर किसान अब गहरे वित्तीय संकट में हैं.
एक अन्य किसान रवि गौड़, जो एक महीने पहले अपनी फसल को आग लगाने के लिए चर्चा में आए थे, उन्होंने कहा कि बागवानी विभाग को उन्हें यह बताना चाहिए कि उन्हें कब फसल उगानी चाहिए और कब नहीं. उन्होंने अपनी दो एकड़ टमाटर की फसल इसलिए हटा दी क्योंकि उन्हें अच्छे रिटर्न की कोई उम्मीद नहीं थी. किसानों ने प्रत्येक एकड़ पर 50,000 से 70,000 रुपये खर्च किए थे, लेकिन उन्हें अपनी लागत भी वापस मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी.
सिद्दीपेट में टमाटर की खेती करने वाले कई किसानों ने अपनी फसल इसलिए छोड़ दी क्योंकि व्यापारियों ने उन्हें मात्र 2.5 रुपये प्रति किलो का भाव दिया. यहां तक कि जो किसान अपनी फसल सिद्दीपेट में खुद बेचने के लिए ले गए थे, उन्हें भी उपभोक्ताओं को 8 रुपये प्रति किलो की दर से बेचना पड़ा. चूंकि किसानों को मजदूरों की मजदूरी के अलावा ढुलाई पर 25 किलो के प्रत्येक डिब्बे पर 40 रुपये खर्च करने पड़े, इसलिए मिरुदोड्डी मंडल के कोंडापुर के मूल निवासी युवा किसान चत्री श्रीकांत ने कहा कि उन्होंने फसल नहीं काटने का फैसला किया है.
श्रीकांत ने कहा कि एक सप्ताह पहले तक उन्हें 25 किलो के डिब्बे के लिए 100 रुपये मिलते थे. हालांकि, व्यापारियों ने रविवार को 25 किलो के डिब्बे के लिए सिर्फ 60 रुपये की पेशकश की, जिससे श्रीकांत और कोंडापुर के अन्य आधा दर्जन किसानों ने उपज छोड़ दी.