
देश की खेती-किसानी के लिए रबी का मौजूदा सीजन अच्छी खबरें लेकर आया है. कृषि मंत्रालय द्वारा 28 नवंबर 2025 तक जारी किए गए ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश का किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ दलहन और तिलहन की तरफ रूझान किया है. यह बदलाव न केवल भारतीय कृषि के लिए अच्छा संकेत है, बल्कि देश को खाद्य तेलों और दालों में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम भी है. हालांकि, आंकड़ों की इस खुशी के पीछे एक चिंता भी छिपी है. चिंता यह है कि बंपर पैदावार के बाद अगर किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिला, तो यह उत्साह अगले साल ठंडा पड़ सकता है.
इस साल रबी फसलों की बुवाई के आंकड़े बेहद उत्साहजनक हैं. 1 दिसंबर-2025 को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, इस साल पिछले साल (2024-25) के मुकाबले कुल 35.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. सबसे खास बात यह है कि गेहूं की बुवाई में रिकॉर्ड 27 लाख हेक्टेयर का उछाल आया है, जिससे इसका कुल रकबा 160.26 से बढ़कर 187.37 लाख हेक्टेयर हो गया है.
वहीं, किसानों ने तिलहन, खासकर सरसों पर खूब भरोसा जताया है, जिससे तिलहन का कुल रकबा 80 लाख का आंकड़ा पार करते हुए 80.53 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है. दलहन की स्थिति भी सुधरी है और चना-मसूर की खेती बढ़ने से इसका कुल दायरा 85.06 से बढ़कर 87.01 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो कृषि क्षेत्र के लिए एक शुभ संकेत है.
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारत को दाल और तेल के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उनका कहना है कि हम हर साल हजारों करोड़ रुपये का खाद्य तेल और दालें विदेश से मंगवाते हैं. अगर यही पैसा हमारे देश के किसानों की जेब में जाए, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी.
शिवराज सिंह चौहान का जोर इस बात पर है कि खेती को सिर्फ 'अन्न उत्पादन' तक सीमित न रखकर उसे 'आमदनी का जरिया' बनाया जाए. वे अक्सर कहते हैं कि दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता है.
रबी की बंपर बुवाई के बीच सबसे बड़ा और संवेदनशील सवाल यही है कि क्या किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम मिल पाएगा? अक्सर देखा गया है कि 'खेती के उल्टे गणित' के चलते जब भी किसान अच्छे मुनाफे की उम्मीद में रिकॉर्ड उत्पादन करते हैं, तो मंडियों में आवक बढ़ते ही दाम गिर जाते हैं.
अगर इस बार भी सरसों या चने की बंपर फसल के बाद बाजार भाव 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' (MSP) से नीचे चले गए, तो किसान खुद को ठगा हुआ महसूस करेंगे. इसका बुरा असर यह होता है कि अच्छे दाम न मिलने पर किसान अगले साल उस फसल की बुवाई घटा देते हैं, जिससे देश फिर से आयात पर निर्भर हो जाता है.
दलहन और तिलहन मिशन की असली सफलता केवल बुवाई का रकबा बढ़ाने में नहीं, बल्कि फसल कटाई के बाद किए गए ठोस प्रयासों पर निर्भर करती है. इसके लिए सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि बाजार भाव गिरने पर किसानों का एक-एक दाना एमएसपी पर खरीदा जाए और यह प्रक्रिया मंडियों में आसान हो.
साथ ही, आयात शुल्क का सही प्रबंधन बेहद जरूरी है. अक्सर फसल आने के समय सस्ता विदेशी आयात घरेलू बाजार को तोड़ देता है, इसलिए उस दौरान शुल्क बढ़ाकर भारतीय किसानों को सुरक्षा देनी चाहिए. इसके अलावा, गोदामों और भंडारण की उचित व्यवस्था भी अनिवार्य है ताकि किसानों को मजबूरी में अपनी उपज औने-पौने दामों पर न बेचनी पड़े.