गन्ने की पैदावार बढ़ाने की आसान टिप्सदिसंबर का महीना आते ही ठंड बढ़ जाती है और तापमान गिरने लगता है. ऐसे में अक्सर किसान चिंता में पड़ जाते हैं कि गन्ने की बुवाई करें या नहीं. विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां जलभराव की समस्या रही है या पानी देर तक रुका रहा है, वहां जमीन की तैयारी और बुवाई एक बड़ी चुनौती बन जाती है. लेकिन गन्ना विशेषज्ञ डॉ. राम कुशल सिंह का कहना है कि आपको तापमान से डरने की जरूरत नहीं है. जिस जमीन में कुछ नहीं हो सकता, वहां भी गन्ना हो सकता है, बस तरीका सही होना चाहिए. अगर आप सही वैज्ञानिक विधि अपनाते हैं, तो कड़ाके की ठंड में भी गन्ने का 100% जमाव का लक्ष्य होना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि पुराने ढर्रे को छोड़कर नई तकनीक और सुझावों को अपने खेत में लागू किया जाए.
ठंड के मौसम में बुवाई के लिए सबसे अहम है बीज का सही चुनाव और उसका उपचार. बुवाई से पहले बीज को 'जागृत' करना जरूरी है. इसके लिए गन्ने के टुकड़ों को कम से कम 2 घंटे तक किसी घोल में डुबोकर रखें. आप इसके लिए 'जीवामृत' का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो गाय के गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ और खेत की मिट्टी से बनता है.
अगर जीवामृत नहीं है, तो 10-20 लीटर देसी गाय का मूत्र पानी में मिलाकर इस्तेमाल करें. अगर वह भी न हो, तो ट्राइकोडर्मा या फिर नैनो यूरिया 1-2% घोल में बीजों को उपचारित करें. नैनो यूरिया के घोल में भीगोने से गन्ने थोड़ी पानी में घुल जाती है और आंखें यानी जमने के लिए तैयार हो जाती हैं. यह प्रक्रिया ठंड से लड़ने की ताकत देती है.
अक्सर किसान बुवाई के बाद गन्ने को बहुत सारी मिट्टी से ढक देते हैं, जो ठंड में जमाव न होने का बड़ा कारण बनता है. सही तरीका यह है कि आप 'ट्रेंच विधि' का प्रयोग करें. दो लाइनों (नालियों) के बीच की दूरी कम से कम 4 से 4.5 फीट रखें. नाली की गहराई लगभग 10 इंच होनी चाहिए.
गन्ने के टुकड़ों को नाली में डालते समय उनके बीच दो से चार अंगुल का फासला रखें. सबसे अहम बात यह है कि टुकड़ों को ढकने के लिए सिर्फ 1 से 2 इंच मिट्टी का ही प्रयोग करें. नाली को पूरा ऊपर तक न भरें. इसे खुला छोड़ दें ताकि सूरज की रोशनी और हवा सीधे गन्ने की पोरियों तक पहुंच सके. ऐसा करने से मात्र 10 दिनों के भीतर गन्ने का जमाव शुरू हो जाता है.
गन्ने की बुवाई के समय खेत में यूरिया का प्रयोग बिल्कुल न करें. यूरिया की जगह आप सिंगल सुपर फॉस्फेट और 'मृदाकल्प' का इस्तेमाल करें. इसके साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण है, उसका प्रयोग करें. खेत की तैयारी के समय आप गोबर की सड़ी हुई खाद, वर्मी कम्पोस्ट या जीवामृत का भरपूर उपयोग करें.
मिट्टी को रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा का प्रयोग भी बहुत फायदेमंद है. यह संतुलन न केवल मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाता है बल्कि पौधे को शुरुआती मजबूती भी देता है. रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करके जैविक और संतुलित खादों का प्रयोग ही खेती को मुनाफेदार बनाता है.
दिसंबर की बुवाई का एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप गन्ने के साथ-साथ दूसरी फसलें भी ले सकते हैं. चूंकि हम गन्ने की लाइनों के बीच 4 फीट से ज्यादा की दूरी रख रहे हैं, तो यह खाली जमीन सोना उगल सकती है. आप इस खाली जगह में आलू, लहसुन, धनिया, मसूर, मटर या चना जैसी फसलें लगा सकते हैं. धनिया या लहसुन लगा सकते हैं. यह "शरदकालीन गन्ना" आपको एक ही लागत और मेहनत में दोहरी कमाई का मौका देता है.
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