
भारत के बासमती से नेपाल की 'खुन्नस' कोई नई बात नहीं है लेकिन अब यह चावल वहां के किसानों की आंखों में भी खटकने लगा है. नेपाल के किसानों को भारत के इस प्रीमियम चावल से काफी दिक्कतें हैं और पिछले दिनों उन्होंने इसका खुलकर इजहार किया है. भारत के पड़ोसी देश के किसानों का कहना है कि यह चावल इतनी सस्ती दर पर नेपाल में मिलने लगा है कि अब उस चावल पर संकट आ गया है जिसे वह काफी लगन से उगाते हैं. यहां के किसानों की मानें तो अब जब हर घर में भारत में उगाया जाने वाला चावल बनने लगा है तो फिर कोई नेपाल में उगा चावल क्यों खरीदेगा. ऐसे में उनके जीवनयापन पर भी मुश्किल आ जाएगी. जानें आखिर क्या है सारा मामला.
बांके जिले के एक किसान सिपाही लाल पांडे ने नेपाल न्यूज को बताया कि इस साल उन्होंने 60 क्विंटल धान की फसल उगाई. इस फसल में से 40 क्विंटल धान फूड मैनेजमेंट एंड ट्रेडिंग कंपनी (FMTC) को तो आराम से बेच दिया लेकिन बाकी फसल उन्हें औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ी. नेपाल में सरकार ने मोटे धान (बड़े आकार के धान) के लिए खरीद मूल्य 3,463.81 रुपये प्रति क्विंटल और मध्यम आकार के धान के लिए 3,628.33 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था. इस सरकारी कीमत के बावजूद किसानों को अपना धान प्राइवेट व्यापारियों को बहुत कम दाम पर, खासकर 2,500 से 2,600 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बेचना पड़ रहा है, जो गारंटीड रेट से लगभग 1,000 रुपये कम है.
पिछले साल, नेपाल में लगभग 5.9 मिलियन मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ था. कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इस साल भी इतनी ही मात्रा में धान का उत्पादन होगा. नेपाल ने बंपर फसल के बावजूद 10 अरब रुपये से ज्यादा का धान और चावल आयात किया है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में कुछ महीनों के लिए, भारत ने नेपाल को धान और चावल के निर्यात पर बैन लगा दिया था. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि उस साल, 22.23 रुपये का धान और चावल आयात किया गया था. इसके बावजूद, ज्यादातर किसानों ने अपना धान व्यापारियों को बेच दिया.
किसानों का कहना है कि सरकार अच्छी कीमत देने के बावजूद सिर्फ थोड़ी मात्रा में ही धान खरीदती है. नेपाल के किसानों और विशेषज्ञों की मानें तो भारत से सस्ते एक्सपोर्ट की वजह से नेपाली किसानों को अपने धान का सही दाम नहीं मिल पाता. हर साल, भारत पुराने चावल की नीलामी करता है और नए धान का स्टॉक जमा कर लेता है. नेपाली व्यापारी इस नीलाम हुए चावल को खरीदते हैं और नेपाल लाते हैं. इसकी कीमत नेपाली चावल से सस्ती होती है.
बांके जिले के नेपालगंज में FTMC ऑफिस के चीफ राम शरण लामिछाने की मानें तो अभी भी व्यापारी भारत से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर चावल ला रहे हैं. वो नेपाल में धान ही 3,628.33 रुपये में खरीद रहे हैं. उनका कहना था कि नेपाल में पैदा होने वाला धान भारत से आयात होने वाले सस्ते चावल का मुकाबला नहीं कर सकता. किसानों की मानें तो बांके की स्थिति यह बताने के लिए काफी है कि भारत के धान की वजह से नेपाली किसानों को अपना धान सस्ते में बेचने के लिए कैसे मजबूर होना पड़ता है.
धनुषा की नगरैन नगर पालिका के बिपत साह का कहना है कि चावल का इंपोर्ट बढ़ गया है क्योंकि नेपाली किसान अच्छी क्वालिटी का चावल पैदा नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अच्छी प्रोसेसिंग वाला पॉलिश किया हुआ चावल बॉर्डर पार से आता है. उनका कहना है कि नेपाल का चावल असल में ज्यादा स्वादिष्ट और क्वालिटी में बेहतर है लेकिन कंज्यूमर की आदतें बदल गई हैं. अब भारतीय चावल ही रोजाना खाया और बनाया जाता है.
धनुषा के एग्रीकल्चर नॉलेज सेंटर के चीफ डॉ. राम चंद्र यादव के मुताबिक, धान से चावल बनाने में बहुत मेहनत लगती है. नेपाली धान गैर-कानूनी तरीकों से भारत जाता है, और फिर किसान वहीं से चावल खरीदते हैं. गांवों और बस्तियों में पहले की तरह खेत में काम करने वाले मजदूर मिलना भी मुश्किल हो रहा है, इसलिए किसान धान उगा रहे हैं और चावल इंपोर्ट कर रहे हैं.
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