5 पॉइंट्स में जानिए क्या है 'नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग' जिससे जुड़ेंगे 1 करोड़ किसान

5 पॉइंट्स में जानिए क्या है 'नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग' जिससे जुड़ेंगे 1 करोड़ किसान

एनएमएनएफ का मकसद है किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ना. इस मिशन के जरिये किसान को उसके लोकल इलाके की खेती और उसकी पद्धतियों से जोड़ा जाएगा. किसान अगर अपने स्थानीय तौर-तरीकों से खेती करेंगे तो उसमें सफलता मिलने की गुंजाइश ज्यादा रहेगी. यहां तक कि किसान जब अपने पारंपरिक स्रोत की सहायता से खेती करेंगे तो उसमें कामयाबी की गुंजाइश ज्यादा रहेगी.

नेचुरल फॉर्म‍िंग म‍िशन पर क‍ितना पैसा खर्च होगा? नेचुरल फॉर्म‍िंग म‍िशन पर क‍ितना पैसा खर्च होगा?
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Nov 26, 2024,
  • Updated Nov 26, 2024, 6:37 PM IST

देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने सोमवार को नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग (NMNF) की घोषणा की. इस अभियान पर केंद्र सरकार कुल 2481 करोड़ रुपये खर्च करेगी. इस अभियान का मकसद है देश में अधिक से अधिक लोगों को प्राकृतिक खेती से जोड़ना ताकि केमिकल फ्री खेती को बढ़ावा दिया जा सके. इस मिशन के जरिये सरकार प्राकृतिक खेती में देश के एक करोड़ किसानों को जोड़ेगी और उन्हें ट्रेनिंग देगी. इसके लिए किसानों को और भी कई तरह की सुविधाएं दी जाएंगी ताकि वे रासायनिक खादों से हटकर कंपोस्ट और प्राकृतिक खादों का इस्तेमाल बढ़ा सकें.

1-सॉइल डिग्रेडेशन पर वार

अभी हाल में एक रिपोर्ट में कहा गया कि देश की 30 फीसद मिट्टी डिग्रेडेशन का शिकार हो चुकी है. डिग्रेडेशन का अर्थ है कि देश की लगभग एक तिहाई मिट्टी बीमार हो चुकी है. मिट्टी अपनी उपजाऊ क्षमता खो चुकी है. उससे अगर पैदावार मिल रही है तो केवल केमिकल खादों के बल पर. मिट्टी की बर्बादी के पीछे वजह यही केमिकल खाद हैं. ऐसी खादों में मिले केमिकल ने मिट्टी की जैविक और कार्बनिक क्षमता को कमजोर कर दिया है. यहां तक कि मिट्टी में अब केंचुए भी नहीं दिखते जिन्हें किसानों का मित्र कहा जाता था. इस सॉइल डिग्रेडेशन को देखते हुए भी सरकार ने नेचुरल फार्मिंग मिशन का ऐलान किया है. नेचुरल फार्मिंग मिशन मिट्टी को सुधारने का बड़ा प्रयास साबित हो सकता है.

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2-क्या है मिशन का मकसद

एनएमएनएफ का मकसद है किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ना. इस मिशन के जरिये किसान को उसके लोकल इलाके की खेती और उसकी पद्धतियों से जोड़ा जाएगा. किसान अगर अपने स्थानीय तौर-तरीकों से खेती करेंगे तो उसमें सफलता मिलने की गुंजाइश ज्यादा रहेगी. यहां तक कि किसान जब अपने पारंपरिक स्रोत की सहायता से खेती करेंगे तो उसमें कामयाबी की गुंजाइश ज्यादा रहेगी. अगर किसी छोटी जोत वाले किसान को ट्रैक्टर की तुलना में हल-बैल की खेती सही लगती है तो उसके लिए ही बढ़ावा दिया जाएगा. किसान को लगे कि वह गोबर खाद से ही उपज ले सकता है, तो उसे केमिकल खाद नहीं डालने के लिए प्रेरित किया जाएगा.

3-किन किसानों को फायदा 

इस मिशन के तहत केंद्र सरकार 1584 करोड़ रुपये खर्च करेगी जबकि राज्य सरकारें 897 करोड़ रुपये अपनी तरफ से खर्च करेंगी. इस मिशन की योजना 2025-26 तक के लिए बनाई गई है. इस स्कीम में सरकार देश में अलग-अलग क्लस्टर बनाएगी. अगले 2 साल में सरकार की योजना 15,000 क्लस्टर बनाने की है जिसके लिए ग्राम पंचायतों का चयन किया जाएगा. ग्राम पंचायतों के जरिये सरकार एक करोड़ किसानों को जोड़ेगी और तकरीबन 7.5 लाख हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती शुरू कराएगी.

4-किसानों को मिलेगी ट्रेनिंग

दरअसल, सरकार प्राकृतिक खेती को लेकर पहले कोशिश कर चुकी है. इससे पहले केंद्र सरकार ने 2019-20 में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति अभियान को लॉन्च किया था. इसके बाद गंगा के तटीय इलाकों में 2022-23 में नेचुरल फार्मिंग कॉरिडोर बनाया गया था. इस तरह के और भी कई अभियान पूरे देश में चल रहे हैं. केंद्र सरकार ने एनएमएनएफ में इन सभी अभियानों को जोड़ दिया है. इसके तहत सरकार देश के कृषि संस्थानों में 2,000 मॉडल डेमोंस्ट्रेशन फार्म शुरू करेगी और वहां फार्मर मास्टर ट्रेनर नियुक्त किए जाएंगे जो किसानों को नेचुरल फार्मिंग की ट्रेनिंग देंगे.

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5-आयात पर निर्भरता होगी कम

केमिकल खादों के साथ मिट्टी के नष्ट होने के साथ आर्थिक तौर पर भी बहुत नुकसान है. केमिकल खाद का अधिकांश हिस्सा विदेशों से आयात होता है जो बहुत महंगा पड़ता है. कह सकते हैं कि केमिकल खादों के निर्यात से पैसे की बर्बादी के साथ मिट्टी और पर्यावरण की बर्बादी भी जुड़ी है. हालांकि उपज जरूर मिलती है, लेकिन वह स्वस्थ उपज न होकर केमिकलों से भरी होती है. नेचुरल फार्मिंग मिशन इस आयात पर भी चोट करेगा क्योंकि किसानों को खुद की खाद बनाने और प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल को बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. इससे किसान आत्मनिर्भर होने के साथ देश भी आत्मनिर्भर होगा. खाद के आयात का पैसा बचेगा.

 

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