A1-A2 दूध उत्पादों को लेकर देश में इन दिनों घमासान मचा हुआ है. A1-A2 दूध उत्पादों पर बीते एक सप्ताह में दो फैसले हुए हैं. इन फैसलों ने आम आदमी से लेकर डेयरी किसानों को दिमाग पर जोर डालने के लिए मजबूर कर दिया है. असल में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने 22 अगस्त को दूध से बने उत्पादों में A1 और A2 लैबलिंंग को गलत बताया था. इसी कड़ी में FSSAI ने ई-काॅमर्स और खाद्य कंपनियाें को दूध से तैयार उत्पादों में A1 और A2 लैबलिंंग को हटाने का आदेश दिया था.
FSSAI ने अपने आदेश में हवाला दिया था कि दूध उत्पादों में A1 और A2 की लैबलिंंग खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के अनुरूप नहीं है, लेकिन 26 अगस्त को FSSAI ने अपने ही पुराने आदेश को पलट दिया. जिसमें FSSAI ने A1-A2 लेबलिंग हटाने का अपना पुराना आदेश वापस ले लिया. FSSAI ने हवाला दिया कि सभी स्टेकहोल्डर्स के मशविरा के बाद वह अपना 22 अगस्त को आदेश वापस ले रहा है.
कुल जमा A1-A2 दूध को लेकर देश में घमासान देखने को मिला है, लेकिन सवाल ये है कि इससे डेयरी किसानों का कितना नफा-नुकसान जुड़ा है. डेयरी किसानों के लिए इस संग्राम में क्या पैगाम छिपा है. आज की कड़ी में इस पूरी तरह से जानेंगे की कोशिश करेंगे,जिसके तहत जानेंगे कि A1-A2 दूध क्या होता है, इसकी लैबलिंग से कंपनियां क्यों करती हैं.
A1-A2 दूध पर जारी घमासान के निहितार्थ निकालने से पहले A1-A2 दूध के बीच फर्क को समझते हैं. लुधियाना स्थित गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ इंद्रजीत सिंह ने A1-A2 दूध के बीच विशेष फर्क बताया है. उन्होंने बताया जेबू गाय, भैंस और बकरियों से A2 दूध प्राप्त होता है. जबकि क्राॅस ब्रीड गायों से A1 दूध प्राप्त होता है. A1 और A2 का पूरा मामला बीटा-केसीन प्रोटीन स्ट्रक्चर से जुड़ा हुआ है. माना जाता है A2 दूध में अमीनो एसिड का बेहतर न्यूट्रिशनल बैंलेंस होता है.
असल में जेबू नस्ल के मवेशियों का सीधा संबंध भारत से है. भारत में उत्पन्न हुए और बाद में अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैले मवेशियाें को जेबू मवेशी माना जाता है. कंधों पर बड़ा कूबड़, बड़ा कंधा और लटकते हुए कान उनकी पहचान होते हैं. मसलन, गिर, साहीवाल जैसी देसी नस्ल की गाय जेबू नस्ल की मवेशी है. वहीं क्राॅस ब्रीड नस्ल में यूरोपियन कैटल ब्रीड शामिल हैं, जिसमें जर्सी, आयरशायर, और ब्रीटिश शॉर्ट हॉर्न गायों की नस्लों काे शामिल किया जा सकता है.
असल में ई कॉमर्स समेत कई खाद्य कंपनियों पिछले कुछ सालों से दूध उत्पादों की A1-A2 दूध की अलग-अलग लैबलिंग करने में जुटी हुई हैं. इसका सीधा मतलब, A2 दूध और उसके उत्पादों की गुणवत्ता को रेखांकित कर उसका अलग बाजार विकसित करना है. ऐसे में डेयरी मार्केट में A2 दूध और दूध उत्पादों ने अपनी गुणवत्ता के आधार पर लोगों का ध्यान खींचा है. साथ ही आमआदमी के बीच भी इसको लेकर जानकारी सामने आई है.
A1-A2 दूध उत्पादों को लेकर देश में वैसे ही जागरूकता का अभाव है. बहुत सीमित संख्या में ही लोग A1 और A2 दूध उत्पादों के बीच के फर्क को समझते हैं. ऐसे में 22 अगस्त का FSSAI का फैसला देश में A2 दूध उत्पादों का कत्लेआम करने वाला था. जिसका सीधा नुकसान देश के डेयरी किसानों को उठाना पड़ता. हालांकि FSSAI ने भूल सुधार करते हुए अपने पुराने फैसले को पलट दिया है. इससे डेयरी किसान नुकसान से बच गए हैं.
डेयरी किसानों को इससे होने नुकसान को विस्तार से समझें तो उसके लिए देश में देसी गाय पालन को बढ़ावा देने की योजना को समझना होगा. असल में देश में कई राज्य सरकारें देसी गाय पालन को बढ़ावा देने के लिए देसी गायों की खरीद पर किसानों काे सब्सिडी दे रही है. वहीं भारत सरकार ने देसी गाय को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू किया हुआ है.
कुल जमा आने वाले कुछ सालों में देश के अंंदर देसी गायों की संख्या में व्यापक बढ़ाेत्तरी की संभावना है. ऐसे में देश के अंदर A2 दूध और उसके उत्पादों में भी बढ़ाेत्तरी होगी. इन हालाताें में अगर FSSAI देश के अंदर A2 की लैबलिंग को भ्रामक बताते हुए इस पर रोक लगा देता तो डेयरी किसानों को बड़ा नुकसान संभव था.
A1-A2 दूध पर घमासान ने डेयरी किसानों के सामने परेशानी खड़ी की है, लेकिन ये संग्राम अब दूध के दाम बढ़ाने में भी सहायक होगा. जिसका फायदा देसी गाय पालने वाले किसानों को मिलेगा. असल में A1-A2 दूध पर बीते दिनों हुए संग्राम ने आम जन के बीच A2 दूध उत्पादों की विशेषताओं को रेखांकित किया है. इससे A2 दूध उत्पादों के बारे में आम जन के बीच जागरूकता बढ़ी है. अब स्वाभाविक है कि ये विवाद A2 दूध उत्पादों का प्रचार भी करेगा. इससे A2 दूध उत्पादों का अलग बाजार विकसित होगा. डेयरी किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे.