Stubble Burning: इस बार खेतों में कम हुईं पराली की घटनाएं, फिर भी अगले कुछ दिन होंगे चुनौतीपूर्ण! 

Stubble Burning: इस बार खेतों में कम हुईं पराली की घटनाएं, फिर भी अगले कुछ दिन होंगे चुनौतीपूर्ण! 

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा कि पराली जलाने जैसे अमल के लिए, जो उत्तर भारत खासकर दिल्ली और उसके आसपास की सर्दियों की प्रदूषण समस्या का एक बड़ा कारण माना जाता है, कुछ लापरवाह किसानों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जाना चाहिए. बीते 24 घंटों में पंजाब में सिर्फ 67 नई पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे कुल संख्या 308 हो गई.

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Oct 20, 2025,
  • Updated Oct 20, 2025, 11:13 AM IST

धान की कटाई के मौसम की शुरुआत के साथ ही पराली की समस्‍या भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने यह सुनिश्चित किया कि राज्य सरकार पूरे समय सतर्क रहे और खेतों में पराली जलाने की घटनाओं पर सख्ती से नियंत्रण रखा जाए. इसका नतीजा यह हुआ कि इस बार खेतों में आग लगाने की घटनाएं पिछले वर्षों की तुलना में सबसे कम दर्ज की गई हैं. आपको बता दें कि इस बार पराली जलाने में पंजाब थोड़ा सा पीछे है जबकि उत्तर प्रदेश में जमकर पराली जलाई जा रही है. 

इस बार स्थिति थोड़ी बेहतर 

पहले जब पराली जलाने के मामलों में तेजी आती थी, तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता था. बीते 24 घंटों में पंजाब में सिर्फ 67 नई पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे कुल संख्या 308 हो गई. यह संख्या 2023 और 2024 में इसी तारीख को दर्ज 1,444 और 1,393 मामलों की तुलना में काफी कम है. अखबार ट्रिब्‍यून की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा कि पराली जलाने जैसे अमल के लिए, जो उत्तर भारत खासकर दिल्ली और उसके आसपास की सर्दियों की प्रदूषण समस्या का एक बड़ा कारण माना जाता है, कुछ लापरवाह किसानों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जाना चाहिए. 

पराली प्रोटेक्‍शन फोर्स की तैनाती 

यहां तक कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्‍यूएम) ने भी राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ पहले से ही बैठकें कीं और उन्हें निर्देश दिया कि अतिरिक्त धान के अवशेषों का पूर्ण प्रबंधन सुनिश्चित किया जाए. आयोग ने 'पराली प्रोटेक्शन फोर्स' की तैनाती के साथ निगरानी को और कड़ा करने के आदेश दिए. यह विशेष दस्ता सीएक्यूएम द्वारा पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए गठित किया गया है. हालांकि सरकार ने वर्ष 2018-19 से अब तक किसानों के बीच 1.57 लाख फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनें सब्सिडी दरों पर वितरित की हैं, फिर भी चिंताएं बनी हुई हैं. इन मशीनों के बावजूद खेतों में आग लगाने की घटनाएं एक बार फिर बढ़ने लगी हैं. रविवार को राज्य में 67 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए, जो इस सीजन की अब तक की सबसे अधिक संख्या है.  इससे पहले शनिवार को 33 मामले सामने आए थे. 

क्‍या बोले अधिकारी 

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, 'चुनौती यह है कि खेतों में आग लगाने की घटनाएं अचानक न बढ़ें. हालांकि गेहूं की बुवाई के लिए सीमित समय होने के कारण मामलों में तेजी से इजाफा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.' उन्होंने बताया, 'मालवा क्षेत्र में अभी कटाई पूरी तरह शुरू नहीं हुई है. यह इलाका आमतौर पर पराली जलाने के सबसे ज्यादा मामले दर्ज करता है. पिछले साल मालवा के संगरूर जिले में कुल 10,909 मामलों में से 1,725 घटनाएं दर्ज की गई थीं। हम इस बार भी उस पर कड़ी नजर रख रहे हैं.' 

किस साल कितनी जली पराली 

पीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में वर्ष 2024 में पराली जलाने के 10,909 मामले दर्ज हुए, जबकि 2023 में यह संख्या 36,663 थी. साल 2020 में 83,002, 2021 में 71,304 और 2022 में 49,922 मामले सामने आए थे.  इस बीच, किसान संगठनों ने किसानों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई, जिसमें मुकदमे दर्ज करना शामिल है, का विरोध किया है. किसान आमतौर पर ज्‍यादा उत्पादन देने वाली धान की किस्में जैसे पीयूएसए-44, पीआर-126 आदि बोना पसंद करते हैं. इन्हें पंजाब की मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदा जाता है. हालांकि, इन किस्मों से पराली की मात्रा भी काफी अधिक निकलती है. इसी कारण किसान संगठन लंबे समय से पराली निस्तारण के लिए नकद प्रोत्साहन (कैश इंसेंटिव) की मांग कर रहे हैं. 

किसानों ने ठुकराया प्रस्‍ताव 

किसानों ने बायो-डीकंपोजर स्प्रे के प्रयोग के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया है जो पराली को 30 दिनों में सड़ा सकता है. लेकिन धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच बहुत कम समय होने के कारण किसानों के लिए यह तरीका अपनाना व्यावहारिक नहीं है. एक किसान नेता ने कहा, 'सरकार को हमें पराली प्रबंधन के लिए नकद भुगतान करना चाहिए. सभी को यह समझना होगा कि खेतों से उठने वाले धुएं का सबसे ज्यादा असर हम किसानों और हमारे परिवारों पर ही पड़ता है. गांवों में रहने वाले लोग इस प्रदूषण से सबसे पहले और सबसे बुरी तरह प्रभावित होते हैं.' कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि आने वाले 10 दिन बेहद अहम हैं. उन्होंने कहा, 'अब तक के आंकड़े पिछले वर्षों की तुलना में काफी कम हैं और हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह संख्या तीन अंकों के भीतर ही बनी रहे.' 

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