पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार की तरफ से जिन उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली मिल रही है, उनके लिए अब मुसीबतें बढ़ सकती हैं. मुफ्त बिजली की सप्लाई जारी रखना पंजाब सरकार के लिए जल्द ही चुनौतीपूर्ण हो सकता है. केंद्र सरकार की तरफ से एक सख्त तीन-विकल्पीय निजीकरण फॉर्मूला तैयार किया गया है. इसका मकसद उन राज्यों पर कड़ी कार्रवाई करना है जो अपनी बिजली सब्सिडी के बिल समय पर चुकाने में नाकाम रहते हैं.
अखबार ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब कई श्रेणियों में भारी बिजली सब्सिडी मुहैया करता है. जहां किसानों को ट्यूबवेल चलाने के लिए मुफ्त बिजली दी जाती है, वहीं घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली का लाभ मिलता है. राज्य कासालाना कृषि सब्सिडी बोझ 1997-98 में 604.57 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में लगभग 10,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. अगर बाकी श्रेणियां भी शामिल की जाएं, तो कुल अनुमानित सब्सिडी लगभग 20,500 करोड़ रुपये है.
पावर सेक्टर विशेषज्ञ और ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के प्रवक्ता वीके गुप्ता ने कहा कि पहले विकल्प के तहत राज्य सरकार को बिजली वितरण निगमों में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचनी होगी और उन्हें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत संचालित करना होगा. दूसरे विकल्प के तहत, बिजली वितरण निगमों में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री के साथ प्रबंधन नियंत्रण एक निजी कंपनी को सौंपना अनिवार्य है. तीसरे विकल्प के अनुसार, वह राज्य जो निजीकरण से बचना चाहता है, उसे अपनी बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को सेबी और स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर करना जरूरी होगा.
तीन विकल्पों और सब्सिडी खत्म करने के प्रस्ताव को हाल ही में एक मंत्री स्तरीय मीटिंग में सात राज्यों के साथ साझा किया गया था. पंजाब इसमें शामिल नहीं था. पंजाब के किसान राज्य सरकार की तरफ से निजी कंपनियों को बिजली क्षेत्र का नियंत्रण सौंपने की किसी भी कोशिश का विरोध कर रहे हैं. राज्य के ज्यादातर किसान सिंचाई के मकसद से ट्यूबवेल चलाने के लिए फ्री बिजली का प्रयोग करते हैं. किसान यूनियन नेताओं ने इलेक्ट्रिसिटी एमेंडमेंट बिल-2025 का भी विरोध किया है. इस बिल के जरिये पावर टैरिफ में बदलाव करने और निजी कंपनियों को बिजली क्षेत्र में फैसले लेने का अधिकार देने का प्रस्ताव है. यूनियनों का आरोप है कि यह बिल जनता के नुकसान पर प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है.
गुप्ता ने बताया कि ऐसी स्थिति में, कैसे सिर्फ सात सेलेक्टेड राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु) की राय के आधार पर सभी राज्यों पर बिजली क्षेत्र के निजीकरण का निर्णय थोप दिया जा सकता है. उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि देश में प्राइवेटाइजेशन कैंपेन को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है.' भारत में वर्तमान में 60 से ज्यादा डिस्कॉम यानी बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियां हैं. इनमें से 16 निजी कंपनियों द्वारा चलाई जाती हैं, जैसे गुजरात, दिल्ली, मुंबई, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और दादरा एवं नगर हवेली में हैं.
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