तमाम कोशिशों के बाद भी सोयाबीन के भाव में तेजी नहीं आ रही है. सात हफ्ते बीत गए जब सरकार ने खाद्य तेलों की इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाई थी. उम्मीद की गई कि इस कदम से आयात महंगा होगा और देसी उपजों की खरीदारी बढ़ेगी जिसका फायदा किसानों को मिलेगा. लेकिन इंपोर्ट ड्यूटी जैसा सख्त कदम उठाने के बाद भी सोयाबीन के दाम में तेजी नहीं आ रही है. हालत ये है कि सरकार के सेट किए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP से भी इसका भाव नीचे चला गया है.
ऐसा क्या हुआ जो इन बड़ी कोशिशों के बाद भी सोयाबीन का भाव उछाल नहीं ले रहा है. एक्सपर्ट इसके कुछ कारण बता रहे हैं. पहला कारण है उपज में अधिक नमी होना. दरअसल, कटाई से ठीक पहले सोयाबीन के इलाकों में बारिश हुई. बारिश भी इतनी तेज हुई कि उपज में उसका पानी समा गया. अब वही पानी नमी के रूप में सामने आ रहा है. इस नमी के चलते सरकारी या प्राइवेट खरीद में बड़ी बाधा आ रही है. इस नमी ने सोयाबीन के दाम को गिराए रखा है और यह भाव 4500 रुपये से 4700 रुपये क्विंटल पर चल रहा है.
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सरकारी एजेंसी जैसे कि नेफेड और एनसीसीएफ ने 27000 टन से अधिक सोयाबीन की खरीद की है. यह आंकड़ा चार-पांच दिन पहले का है, इसलिए इसमें कुछ वृद्धि हुई होगी. हालांकि किसान इस खरीदी से खुश नहीं हैं क्योंकि उन्हें रेट पर आपत्ति है और धीमी खरीद पर भी ऐतराज है. एक सवाल ये भी है कि इस बार सोयाबीन के उत्पादन में तेजी के अनुमान और इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाए जाने के बाद भी भाव में वृद्धि क्यों नहीं है? इसके जवाब में एक्सपर्ट कहते हैं कि बाजार में सोयाबीन की सप्लाई ज्यादा हो गई है और मांग में कमी है. इस वजह से मंडी में सोयाबीन का दाम एमएसपी तक नहीं पहुंच पा रहा है जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.
मंडियों का हाल देखें तो वहां सोयाबीन का भाव एमएसपी की दर 4892 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चल रहा है. एक बड़ी चिंता की बात ये भी है कि अभी बाजार में सोयाबीन की आवक का पीक सीजन चल रहा है जो अक्टूबर से शुरू होकर दिसंबर तक चलता है. ऐसे में इस अवधि में सोयाबीन के भाव नहीं बढ़ेंगे तो आगे उसका बहुत बड़ा फायदा मिलता नहीं दिखता. एक रिपोर्ट से पता चलता है कि हाल के महीनों में खाद्य तेलों का आयात घटा है क्योंकि इस सीजन में तिलहन की पैदावार बढ़ने का अनुमान है. इसमें सोयाबीन भी शामिल है. इस आयात के घटने का फायदा सोयाबीन को मिलना चाहिए था, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं दिख रहा है.
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