हिन्दू धर्म में भगवान शिव को तीनों लोकों का स्वामी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि पूरी सृष्टि उन्हीं में समाहित है. अगर शिव नहीं हों, तो सृष्टि शव के समान है. शिव प्राण देते हैं, जीवन देते हैं और संहार भी करते हैं. आमतौर पर आपने शिव मंदिर में देखा होगा कि शिवलिंग के आसपास एक नंदी बैल जरूर होता है. जी हां, पर क्या कभी आपने सोचा है इसका क्या कारण है. दरअसल, नंदी को भगवान शिव का वाहन माना जाता है. नंदी को भगवान शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है.
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव तक अपनी श्रद्धा पहुंचाने के लिए नंदी को प्रसन्न करना जरूरी होता है. नंदी को बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है. ऐसे में आइए जानते हैं नंदी बैल ही क्यों है शिवजी का वाहन? क्या है इसके पीछे की कहानी-
हिन्दू धर्म के अनुसार, नंदी बैल ही क्यों है शिवजी का वाहन? इसको लेकर कई मान्यताएं हैं जिनमें से एक मान्यता यह है कि एक शिलाद नाम के ऋषि थे. उन्होंने लंबे समय तक भगवान शिव की तपस्या की. जिसके बाद भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर एक पुत्र का वरदान दिया जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा. शिलाद ऋषि एक आश्रम में रहते थे. उनका पुत्र भी उन्हीं के साथ आश्रम में रहता था. एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए जिनकी सेवा का जिम्मा शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा. नंदी ने पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की. संत जब आश्रम से जाने लगे, तो उन्होंने शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया पर नंदी को नहीं.
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इस बात से शिलाद ऋषि परेशान हो गए. उन्होंने संतों से इस बात का कारण पूछा. तब संत पहले तो सोच में पड़ गए. लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, नंदी अल्पायु है. यह सुनकर शिलाद ऋषि काफी परेशान रहने लगे. पिता की चिंता को देखते हुए एक दिन नंदी ने उनसे पूछा, ‘क्या बात है, आप इतना परेशान क्यों हैं पिताजी’. शिलाद ऋषि ने कहा, ‘संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो इसीलिए मेरा मन बहुत चिंतित है.’ नंदी ने जब पिता की परेशानी का कारण सुना तो वह बहुत जोर से हंसने लगा. और बोला, ‘भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है. ऐसे में मेरी रक्षा करना भी उनकी ही जिम्मेदारी है, इसलिए आप परेशान न हों.’
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नंदी पिता की चिंता को खत्म करने के लिए भुवन नदी के किनारे भगवान शिव की तपस्या करने लगे. नंदी द्वारा दिन-रात तप करने से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को दर्शन दिया. भगवान शिवजी ने नंदी से पूछा, ‘क्या इच्छा है तुम्हारी वत्स’. नंदी ने कहा, मैं ताउम्र सिर्फ आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूं. नंदी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने नंदी को गले लगा लिया. इसके बाद नंदी को बैल का चेहरा दिया और उन्हें अपने वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तम रूप में स्वीकार कर लिया. इसके बाद ही शिवजी के मंदिर के बाद से नंदी के बैल रूप को स्थापित किया जाने लगा.