आप लोगों ने खेतों में या जमीन के अंदर कीड़ानुमा एक अनोखे जीव को जरूर देखा होगा. पर क्या आप इस अनोखे जीव का नाम जानते हैं? इस जीव का नाम है केंचुआ. केंचुआ को खेती के हिसाब से काफी फायदेमंद माना जाता है. इसे गांव के लोग मछलियों के खाद के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. केंचुआ प्राचीन काल से ही किसानों का मित्र रहा है. केंचुआ खेत में उपलब्ध सड़े-गले कार्बनिक पदार्थो को खाकर अच्छी क्वालिटी की खाद तैयार करते रहते हैं. आज से 25-30 वर्ष पहले जमीनों में केंचुआ बहुत पाए जाते थे, लेकिन आज सिर्फ बागों, तालाबों में ही केंचुआ रह गए हैं.
केंचुओं की दिन प्रतिदिन घटती जा रही संख्या के कारण ही भूमि उर्वरता में कमी आती जा रही है. शायद यही कारण है कि जैविक और टिकाऊ कृषि में किसानों को फिर से केंचुआ खाद की याद आने लगी है. आइए जानते हैं केंचुए और उससे बनने वाली खाद के बारे में पूरी जानकारी.
पूरे विश्व में केंचुओं की अनुमानित तकरीबन 4000 प्रजातियां पाई जाती हैं. इसमें लगभग 3800 प्रजातियां पानी में रहने वाली हैं. 200 प्रजातियां जमीन में रहने वाली हैं. वहीं बात करें भारत की तो यहां तकरीबन 500 प्रजातियां पाई जाती हैं. जन्म और विकास के आधार पर केंचुओं को उच्च अकशेरू (बिना रीढ़ वाले जीव) के समूह में रखा गया है. विश्व में पाई जाने वाली केंचुओं की समस्त प्रजातियां पर्यावरण के अनुसार उपयोगी हैं. जमीन में पाई जाने वाली समस्त 200 जातियां जमीन को जीवंत बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है. हालांकि हाल के वर्षों में जमीन में केंचुओं की कमी हो गई है, यानी जमीन में कंचुए समाप्त हो गए हैं.
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वर्तमान समय में जैविक खेती में किसानों के बीच केंचुआ खाद यानी वर्मी कंपोस्ट का चलन तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि इसके खेती में अनोखे फायदे हैं. इसके इस्तेमाल से फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है. इसलिए किसान इसका खेती में अधिक उपयोग कर रहे हैं. दरअसल केंचुआ खाद बनाने के लिए एक अंधेरे और हवादार वाली जगह की जरूरत होती है. ऐसे स्थान पर दो मीटर लंबे और एक मीटर चौड़े स्थान पर चारों ओर एक मेंढ़ बना लें. उस जगह पर केंचुआ और अन्य खाने के छिलके या पदार्थ को इकट्ठा कर लें. इसके बाद इसमें 40 से 60 केंचुए प्रति वर्ग फुट की दर से डाल दें. फिर उसे भूसा, सूखे पत्ते, गाय का गोबर से ढक दें. इसके 50 से 60 दिनों के बाद आपकी वर्मी कंपोस्ट खाद बन कर तैयार हो जाएगी.
प्राकृतिक रूप से खेत की उर्वरता बढ़ाने में केंचुआ खाद का योगदान काफी तेजी से बढ़ रहा है. केंचुए का उपयोग करके जैविक खाद बनाई जाती है और इस खाद को वर्मी कंपोस्ट खाद भी कहा जाता है. यह केंचुओं और अन्य कीड़े या फिर खाने के पदार्थों को सड़ा कर तैयार किया जाता है. इस खाद से बदबू नहीं आती और किसी प्रकार का कोई प्रदूषण इससे नहीं फैलता है. वहीं इससे फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है.