जहां एक तरफ भारत में आम चुनाव होने वाले हैं तो वहीं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में अब आम चुनावों के नतीजों पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. आठ फरवरी को पाकिस्तान में लंबे आर्थिक संकट, आतंकवादी संगठनों से हिंसा की धमकियों और जेल में बंद क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान के साथ उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर सैन्य समर्थित कार्रवाई की चिंताओं के बीच ही आम चुनाव हुए. इमरान इस बार चुनावी मैदान में नहीं हैं. तीन बार के पूर्व पीएम नवाज शरीफ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के बिलावल भुट्टो-जरदारी के बीच सीधी टक्कर है. एक नजर डालिए भारत के आम चुनावों की तुलना में पाकिस्तान के चुनाव कितने अलग हैं.
पाकिस्तान चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 44 राजनीतिक दल नेशनल असेंबली या संसद के निचले सदन में 266 सीटों में हिस्सेदारी के लिए मैदान में हैं. इनमें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए अतिरिक्त 70 सीटें आरक्षित हैं. चुनाव प्रक्रिया की निगरानी और कवरेज के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पत्रकार और पर्यवेक्षक पाकिस्तान पहुंचे हैं. पाकिस्तान चुनाव आयोग ने ऐलान किया कि उसने समय की कमी और मौसम संबंधी चुनौतियों के बावजूद देश भर में 260 मिलियन से अधिक मतपत्र वितरित किए हैं.
भारत और पाकिस्तान के भविष्य को साल 2024 में नई परीक्षाओं से गुजरना होगा. जल्द ही भारत में भी चुनाव होने वाले हैं. पाकिस्तान से अलग भारत के संसदीय चुनाव, राज्यों में विधानसभा चुनावों से अलग होते हैं. जबकि पाकिस्तान में नेशनल असेंबली यानी संसदीय चुनावों के साथ ही प्रांतीय असेंबली यानी विधानसभा चुनावों भी कराए जाते हैं. इन चुनावों में सफेद रंग की मतपेटियां नेशनल असेंबली के वोटों के लिए होती हैं जबकि हरी पेटियां प्रांतीय विधानसभाओं में डाले जाने वाले वोटों के लिए होती हैं. इसका सीधा अर्थ यही है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और प्रांतीय मुख्यमंत्री एक ही समय में चुने जाते हैं.
जहां भारत में अब ईवीएम से वोटिंग होती है तो पाकिस्तान अभी भी मतपत्रों पर निर्भर है. इन पर वोटों की गिनती के लिए मुहर लगानी और मोड़ना पड़ता है. भारत सन् 1990 के दशक के की शुरुआत से ही ईवीएम का प्रयोग कर रहा है. माना जाता है कि ईवीएम की गैर-मौजूदगी की वजह से ही पाकिस्तान में बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आम बात हैं. हालांकि जिस समय इमरान खान प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने पाकिस्तान में भविष्य के चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल की वकालत की थी. लेकिन उनके प्रस्ताव का नेशनल असेंबली में विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया. इस साल भी विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में फर्जी वोटिंग की आशंका जताई है.
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पाकिस्तान में जिस दिन वोट डाले जाते हैं, उसके अगले दिन ही नतीजों का ऐलान होने लगता है. पाकिस्तान के चुनाव परिणाम 12.8 करोड़ वोटर्स की बड़ी आबादी के बाद भी उसी दिन घोषित किए जाते हैं जब चुनाव होते हैं. मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए दो विधायकों के लिए मतदान करते हैं - एक संघीय और दूसरा प्रांतीय.
संघीय विधायिका के लिए पाकिस्तान में 5121 उम्मीदवार और प्रांतों के लिए 12695 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. इसके बावजूद मतदान खत्म होने के एक घंटे के अंदर ही वोटों की गिनती शुरू हो गई. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अधिकारी वोट डालने के बाद मतदान केंद्र पर मैन्युअल रूप से वोटों की गिनती करते . जबकि भारत में, मतदान समाप्त होने के बाद मतपेटियों को सील कर दिया जाता है और जिला मुख्यालय ले जाया जाता है. वोटिंग के कुछ दिनों बाद ही नतीजों का ऐलान होता है.
इन चुनावों से पहले पाकिस्तान नेशनल असेंबली में 342 सीटें थीं - जिनमें से 272 सीधे चुनी गईं, 60 महिलाओं के लिए और 10 धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित थीं. नए परिसीमन के बाद, अब 336 सीटें होंगी, जिनमें 266 सामान्य सीटें, 60 सीटें महिलाओं के लिए और 10 गैर-मुसलमानों के लिए आरक्षित होंगी यानी कुल मिलाकर छह सीटों की कमी है. कम आबादी वाला छोटा देश होने के कारण यह भारत की लोकसभा की 543 सीटों की तुलना में काफी कम है.
भारत में निचले सदन में 545 सीटें हैं, जिनमें से 543 सीटों को भरने के लिए चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कराया जाता है. जबकि बाकी बचीं दो सीटें एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रतिनिधियों के लिए होती हैं. चुनाव के अंत में, लोकसभा सदस्यों के बहुमत के बाद भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति होती है.
पाकिस्तान में विजयी उम्मीदवार नेशनल असेंबली के सदस्य बन जाते हैं. इसके गठन के बाद, नेशनल असेंबली सदन के एक नेता को चुनने के लिए संसदीय वोट रखती है, जो प्रधानमंत्री बनता है. एक सफल उम्मीदवार को 169 से ज्यादा सदस्यों का समर्थन प्राप्त करके सदन में साधारण बहुमत दिखाना होता है. मुख्यमंत्री के चुनाव के लिए प्रांतीय स्तर पर भी इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है.
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