भारत में विदेशी खाद्य तेलों की मांग घटी है. इसमें 5 लाख टन की गिरावट बताई जा रही है. इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं. पहला, देश में तिलहन की बढ़ती पैदावार और दूसरा, तेलों के बढ़े दाम से मांग में आई कमी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 तेल सीजन (नवंबर-अक्टूबर) में खाद्य तेलों के आयात में 5 लाख टन की गिरावट आई है. समाज के निम्न वर्ग परिवार में तेल की मांग में कमी आई है क्योंकि इसके दाम कुछ दिनों में बहुत तेजी से बढ़े हैं. दाम बढ़ने से इसकी खपत घटी है जिससे आयात गिर गया है.
सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन (SEA) के मुताबिक भारत ने इस बार 159 लाख टन से थोड़ा अधिक तेल का आयात किया है जबकि पिछले साल यह मात्रा लगभग 165 लाख टन थी. एसईए के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर बीवी मेहता ने कहा कि भारत को हर साल लगभग 10 लाख टन अतिरिक्त खाद्य तेल की जरूरत होती है क्योंकि आबादी बढ़ने से प्रति व्यक्ति खपत भी बढ़ रही है.
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मेहता ने कहा, इस बार मॉनसून अच्छा रहा है, इसलिए देश में 120 लाख टन सोयबीन और 90 लाख टन मूंगफली हो सकता है. 130 लाख टन तक सरसों भी निकल सकती है. इस हिसाब से 2024-25 सीजन में ओवरऑल तिलहन का उत्पादन 30 लाख अधिक रहने की संभावना है. इससे लोकल मार्केट में देसी तिलहन की उपलब्धता बढ़ेगी और आयात पर निर्भरता कम होगी. मेहता ने कहा कि पिछले एक साल से वैश्विक बाजारों में तेलों के दाम बढ़े हुए हैं जिसका असर देसी मार्केट में खाद्य तेलों की महंगाई पर देखा जा रहा है.
पिछले कुछ सालों का रिकॉर्ड देखें तो खाद्य तेलों के आयात में वृद्धि देखी गई ह. 2019-20 में यह मात्रा 132 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 160 लाख टन हो गई. पिछले पांच साल में सबसे बड़ी वृद्धि पाम तेल के आयात में देखी गई है. इसी तरह रिफाइंड तेल के आयात में भी तेजी है. पिछले पांच साल में यह आयात 3 परसेंट से बढ़कर 12 परसेंट हो गया है. हालांकि कच्चे खाद्य तेल के आयात में गिरावट आई है जो पहले 97 परसेंट था और अब 88 परसेंट पर आ गया है.
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2024-25 सीजन के लिए एसईए ने अपने अनुमान में है कि खाद्य तेलों का आयात 10 लाख टन तक गिर सकता है. यह भारत के लिए अच्छी बात होगी क्योंकि आयात पर एक बड़ा बजट खर्च होता है. आयातित तेल के दाम लोकल मार्केट में अधिक रहते हैं जिससे महंगाई बढ़ती है. एसईए का कहना है कि भारत के लिए यह अच्छी बात है कि पिछले चार साल में सामान्य बारिश हुई है जिससे तिलहन का उत्पादन बढ़ने की संभावना है. साल 2022-23 में यह उत्पादन 340 लाख टन था जो 2023-24 में 380 लाख टन होने का अनुमान है.