
महाराष्ट्र की तरह मध्य प्रदेश के सोयाबीन किसान भी परेशान हैं. एमपी देश का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक सूबा है. यहां के किसानों पर एकसाथ दोहरी मार पड़ी है. एक तरफ बारिश से फसल चौपट तो दूसरी ओर उपज का सही भाव नहीं मिलना. इन दोनों वजह से सोयाबीन किसानों की आंखों में आंसू हैं. हालांकि प्रदेश सरकार ने किसानों को दाम सुनिश्चित कराने के लिए भावांतर योजना चलाई है, मगर इसे लेकर भी विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं. छोटे किसान इस योजना का पूरा फायदा नहीं उठा पा रहे. किसानों की शिकायत है कि हर बार की तरह सोयाबीन के इस सीजन में भी व्यापारी मालामाल हो गए, जबकि किसान बेहाल हैं.
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है. उसमें भी धार और खरगोन जिले प्रमुख हैं. इन जिलों के किसान कपास, मिर्च और सोयाबीन की फसल मुख्य तौर पर लेते हैं. इस बार भी किसानों ने पूरी उम्मीद के साथ सोयाबीन की फसल उगाई. देखरेख भी पूरी मेहनत से की, लेकिन मौसम ने साथ नहीं दिया. सोयाबीन पर पीला मोजैक रोग हावी हो गया. इल्लियों का प्रकोप भी दिख गया.
किसान बताते हैं कि समय पर बारिश नहीं हुई. हुई भी तो बहुत कम. इससे फसल में पानी की कमी पड़ गई. इस कमी से फसल पर पीला मोजैक रोग का प्रभाव बढ़ गया. बारिश की कमी से फूल भी कम आए. लिहाजा, सोयाबीन का उत्पादन घट गया. कहीं-कहीं तो कटाई के समय बारिश हो गई जिससे उपज में भारी गिरावट आई. किसानों को जहां 17-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक सोयाबीन की उपज मिलती है, लेकिन इस बार उन्हें 3-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का ही औसत मिला. इससे किसानों की बर्बादी का आलम समझा जा सकता है.
खरगोन में कई जगह ऐसा हुआ कि किसानों ने अपनी खड़ी फसल में माचिस की तिल्ली मार दी. किसानों में इस कदर मायूसी थी कि उन्होंने फसल की कटाई पर पैसा खर्च करना भी सही नहीं माना. किसानों को लगा कि जितना पैसा फसल कटाई में लगेगा, उतना तो बिक्री के बाद भी नहीं मिलेगा. ढुलाई का खर्च अलग से होगा. इस डर में किसानों ने खेत में अपनी फसल को आग के हवाले कर दिया. किसानों से बात करने पर पता चला कि जिस उपज की क्वालिटी खराब थी, उसका रेट अधिकतम 2900 रुपये क्विंटल मिल रहा था. फिर किसानों ने इसे आग के हवाले करना ही मुनासिब समझा.
इस बीच भारतीय किसान संघ ने सरकार से मांग की कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को या तो मुआवजा मिले या प्रशासन से राहत राशि दिलाई जाए. लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ. यहां तक कि फसल की गिरदावरी भी नहीं हुई क्योंकि जबतक पूरे जिले में फसल खराब नहीं होती, उसका सर्वे नहीं हो पाता. किसानों की बर्बाद फसलों को देखने के लिए खेतों में कोई नहीं गया.
इस बारे में भारतीय किसान संघ, खरगोन के जिला अध्यक्ष सदाशिव पाटीदार ने कहा कि सरकार भावांतर योजना लेकर आई, ये अच्छी बात है. किसानों को इससे बहुत उम्मीद थी. लेकिन इसके एफएक्यू से किसानों में निराशा फैल गई. एफएक्यू के तहत सरकार ने भावांतर में ऐसी शर्तें थोप दीं जिसकी पूर्ति करना सबके लिए संभव नहीं है. किसानों की पूरी फसल इतनी अच्छी नहीं है जो सरकारी मापदंडों को पूरा कर सके. इसका सबसे बुरा असर छोटे किसानों पर पड़ा है जिनकी फसल कम क्वालिटी की है. उनकी फसल को भावांतर से कोई लाभ नहीं मिल रहा है.
सदाशिव पाटीदार ने कहा, सरकार ने सोयाबीन का मॉडल भाव 4800 रुपये प्रति क्विंटल तय किए. जिस किसान का माल 4000 रुपये क्विंटल बिका है, उसे भी 523 रुपये मिला है और जिसका माल 4500 रुपये बिका है, उसे भी 523 रुपये मिला है. छोटे किसान को तो नुकसान ही नुकसान है क्योंकि उसकी उपज 3000 रुपये क्विंटल बिकी है जिस पर सरकार ने भावांतर का एफएक्यू लगा दिया और उसे कुछ नहीं दिया. यानी छोटे किसानों को भावांतर का कोई लाभ नहीं मिल रहा है. भावांतर में हालात ये हैं कि किसी भी रेट पर सोयाबीन बिके, किसान को 523 रुपये प्रति क्विंटल ही मिलने हैं. इससे किसानों में नाराजगी है.
सदाशिव ने कहा कि भावांतर स्कीम में सबसे अधिक फायदा व्यापारियों को हुआ है और किसान नुकसान में गए हैं. सरकार ने इस स्कीम के प्रचार पर भले लाखों रुपये खर्च कर दिए, मगर उसका असली लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. खरगोन में लगभग 24000 किसान हैं जो सोयाबीन की खेती करते हैं. सरकारी रेट पर खरीदी नहीं होने से इन किसानों में घोर निराशा है. दूसरी ओर, इससे भी बुरी हालत महाराष्ट्र के किसानों की है जहां भावांतर जैसी योजना भी नहीं है. वहां सोयाबीन किसानों को 4500 रुपये रेट भी नहीं मिल रहे हैं.