भारत तिलहन फसलों के बंपर उत्पादन और खाद्य तेल उत्पादन के बाद भी मांग पूरी करने के लिए बड़ी मात्रा में इसका आयात करता है. इस पर सरकार का काफी धन खर्च होता है. खाद्य तेल के शुल्क मुक्त आयात के कारण यहां के किसानों को अपनी फसल का सही दाम नहीं मिलता, इसलिए सरकार ने ज्यादातर देशों से इसके आयात पर शुल्क लगाकर रखा है. लेकिन नेपाल इस लिस्ट में शामिल नहीं और अब यहां के खाद्य तेल व्यापार के लिए यह चुनौतियां पैदा कर रहा है.
इससे देश के व्यापारियों को कीमतों में प्रतिस्पर्धा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए भारतीय वनस्पति तेल उत्पादकों के संघ (आईवीपीए) ने इसे लेकर आवाज उठाई है. आईवीपीए ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखकर इसमें हस्तक्षेप की मांग की है.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, IVPA ने सरकार से मांग की है कि वह आयात करने वालों पर लागू शुल्क अंतर के बराबर बैंक गारंटी लगाए, ताकि मूल स्थान के नियम के दिशा-निर्देशों का हो रहा है, यह सुनिश्चित हो सके. संगठन ने रिफाइंड ऑयल पर कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (AIDC) 5 फीसदी से 10 से 15 फीसदी करने की मांग की है. IVPA ने केंद्र से मांग की है कि वह नैफेड जैसी एजेंसियों के जरिए आयात को चैनलाइज करे और आयात की मात्रा पर लिमिट लगाए.
IVPA का कहना है कि भारत और नेपाल व्यापार संधि और दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) समझौते के चलते भारत ने नेपाल से आयात किए जाने वाले वनस्पति तेल को शुल्क मुक्त रखा है, यही वजह है कि अब यहां से रिफाइंड सोयाबीन और पाम ऑयल का इंपोर्ट बहुत बढ़ गया है.
भारतीय खाद्य तेल उद्योग से जुड़े लोगों का आरोप है कि नेपाल से भारत में तेल आयात पर शुल्क नहीं लगने के कारण कई ऐसे देश जिनपर इंपोर्ट ड्यूटी लगी है, वे इसे एक चैनल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. वे नेपाल के रास्ते खाद्य तेल भेजकर इसे भारत पहुंचा रहे हैं. नेपाल से आया तेल सस्ता होने के कारण इससे यहां के किसानों और व्यापारियों को कीमत कम होने से घाटा उठाना पड़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, अभी सोयाबीन और सरसों की उपज की कीमतें एमएसपी से कम चल रही हैं, जिससे किसानों को भी नुकसान हो रहा है और घरेलू खाद्य तेज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लक्ष्य पर भी इसका असर पड़ता है.