ईआरसीपी पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए जीवनदायिनी योजना है. इससे लाखों किसानों के खेतों को पानी और लाखों लोगों के लिए पीने का पानी मिलने वाला है. लेकिन इसमें सियासत का भी एक बड़ा रोल है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस योजना को लेकर अपने-अपने तरीके से आमने-सामने हैं. 15 अगस्त को मौके पर राजस्थान के मुख्यमंत्री ने इस योजना में 53 अन्य बांधों को जोड़ने की घोषणा की. साथ ही ईसरदा बांध से जयपुर के लगभग सूखे पड़े रामगढ़ बांध में भी पानी लाया जाएगा.
किसानों और आम लोगों के फायदों से इतर इस परियोजना का एक सियासी गणित भी है. इसीलिए कांग्रेस इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराने की मांग मोदी सरकार से कर रही है. सियासत के जानकारों का कहना है कि बीजेपी भी इस योजना में श्रेय लेना चाह रही है. इसीलिए कांग्रेस की सरकार रहते मोदी सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करना चाहती.
ये बात दीगर है कि केन्द्र के जलशक्ति मंत्री और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक ही शहर जोधपुर से आते हैं.
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) 13 जिलों में सिंचाई और पेयजल की योजना है. ये जिले भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, बारां, बूंदी, कोटा, अजमेर और झालावाड़ हैं. इन जिलों में राजस्थान की कुल 200 में से आधी से कुछ कम यानी 83 विधानसभा सीटें आती हैं जिनकी करीब तीन करोड़ आबादी है.
ये राजस्थान की कुल आबादी का 41.13 प्रतिशत है. ये जिले प्रदेश के हाड़ौती, मेवात, ढूंढाड़, मेरवाड़ा और ब्रज क्षेत्र में आते हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों में 13 जिलों की 83 विधानसभा सीटों में से 61 फीसदी यानी 51 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. साथ ही कुछ और सीट पर उसके समर्थित निर्दलीय, बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अन्य पार्टियों का कब्जा है.
वहीं, इन 13 जिलों में से सात जिलों में कांग्रेस बहुत अच्छी स्थिति में है. अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा जिले में 39 विधानसभा सीट हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 25 सीट इन जिलों में जीती थी. बाकी पांच बीएसपी, चार निर्दलीय और एक आरएलडी के खाते में गई.
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सरकार बनने के बाद बीएसपी का कांग्रेस में विलय हो गया. निर्दलीय और आरएलडी विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को मिला. इस तरह 39 में से 35 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. इसीलिए इन जिलों में कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में है. इसी साल विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस चाहेगी कि यह स्थिति इसी तरह मजबूत बनी रहे.
इसीलिए ईआरसीपी को लेकर सीएम गहलोत काफी गंभीर हैं. वे कहते हैं, “अगर केन्द्र ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करता तो राज्य सरकार इसे अपने संसाधनों से पूरा कराएगी.”
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए सिंचाई और पेयजल की योजना है जिससे 2051 तक इन जिलों को पानी की पूर्ति होनी है. ईआरसीपी के धरातल पर उतरने से 2.02 लाख हेक्टेयर नई सिंचाई भूमि बनेगी. साथ ही इन जिलों में पहले से बने 26 बांधों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सकेगा. हाल ही में इसमें 53 बांध और जोड़े गए हैं. इससे करीब एक लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी है. इस काम को सात साल में पूरा होना है, लेकिन जिस रफ्तार से इसका काम चल रहा है, उससे देरी होना पक्का है.
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पूर्वी राजस्थान में एक ही बारहमासी नदी चंबल बहती है. इस नदी में हर साल 20 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी यमुना-गंगा के जरिए बंगाल की खाड़ी में बेकार बह जाता है. यही पानी हर साल इस क्षेत्र में बाढ़ का कारण बनता है. इन बेकार बहकर जाने वाले पानी के उपयोग के लिए ईआरसीपी योजना बनाई गई है. इस परियोजना के तहत मानसून के दिनों में कुल 3510 एमसीएम पानी जिसमें 1723.5 पेयजल, 1500.4 एमसीएम सिंचाई और 286.4 एमसीएम पानी को उद्योगों के लिए चंबल बेसिन से राजस्थान की दूसरी नदियों और बांधों में शिफ्ट करना है.
इसके लिए पार्वती, कालीसिंध, मेज नदी के बरसाती ज्यादा पानी को बनास, मोरेल, बाणगंगा और गंभीर नदी तक लाया जाना है. कुल मिलाकर ईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान की 11 नदियों को आपस में जोड़ा जाना है. परियोजना के पूरे होने से मानसून में बेकार बहकर जाने वाले बाढ़ के पानी का उपयोग होगा. इसी से 13 जिलों को सिंचाई, पेयजल और उद्योगों के लिए पानी मिल सकेगा.