Kisan Diwas 2025: अफ्रीका का ये मॉडल, भारत के सूखे इलाकों के लिए बन सकता है उम्मीद!

Kisan Diwas 2025: अफ्रीका का ये मॉडल, भारत के सूखे इलाकों के लिए बन सकता है उम्मीद!

किसान दिवस स्पेशल में हम आपको दुनिया भर के खेतों की सैर करवा रहे हैं. बता रहे हैं दुनिया भर के किसानों की इनोवेशन. इस आर्टिकल में जानिए दक्षिण अफ्रीका के किसानों की कहानी. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका के किसान ट्री-अंडर-फार्मिंग मॉडल अपनाकर दूनिया भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं.

भारत के लिए उम्मीद है ये मॉडलभारत के लिए उम्मीद है ये मॉडल
संदीप कुमार
  • Noida,
  • Dec 23, 2025,
  • Updated Dec 23, 2025, 4:28 PM IST

इस बार किसान दिवस स्पेशल में हम आपको दुनिया भर के खेतों की सैर करवा रहे हैं. बता रहे हैं दुनिया भर के किसानों की इनोवेशन. इस आर्टिकल में जानिए दक्षिण अफ्रीका के किसानों की कहानी. ऐसी कहानी जो आपको बताएगी आखिर कैसे सहारा रेगिस्तान के नीचे के इलाकों में ट्री-अंडर-फार्मिंग मॉडल अपनाकर दुनिया भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं. इस मॉडल में किसान खेतों में पेड़ों को काटने के बजाय उन्हें बचाकर उनके नीचे खेती करते हैं.

इस मॉडल को अपनाकर अफ्रीका के कई देशों में रेगिस्तान जैसी जमीन पर भी हरियाली लौट आई है. बताया जाता है कि इस मॉडल के जरिए अब तक करीब 200 मिलियन पेड़ खेतों में लगाए और बचाए जा चुके हैं. यह सिर्फ पर्यावरण की नहीं, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाने की भी कहानी है. यही मॉडल भारत के सूखे इलाकों में भी कारगर साबित हो सकता है.

इन देशों के लिए वरदान बना ये मॉडल

सहारा रेगिस्तान के नीचे के देशों जैसे नाइजर, माली और बुर्किना फासो में हालात भारत के कई सूखा प्रभावित इलाकों जैसे ही थे, जहां बारिश कम होती थी, मिट्टी कमजोर हो चुकी थी और खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही थी. ऐसे में किसानों ने एक आसान तरीका अपनाया. उन्होंने खेतों में अपने आप उग आए छोटे-छोटे पेड़ों और पौधों को बचाना शुरू किया. वहीं, जब वो फसलों की बुवाई के लिए हल चलाया तो पौधों को काटा नहीं, बल्कि सही दूरी पर छोड़ दिया और समय-समय पर उनकी छंटाई की. इन पेड़ों का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि मिट्टी में नमी बनी रही.

बाजरा, ज्वार और दालें उगाते हैं किसान

ट्री-अंडर-फार्मिंग मॉडल से पेड़ों की जड़ें जमीन को पकड़कर रखती हैं, जिससे हवा और पानी से होने वाला कटाव कम होता है. साथ ही पत्तियां गिरकर प्राकृतिक खाद बन जाती हैं. इससे जमीन की ताकत धीरे-धीरे लौट आती है. अफ्रीका में इस मॉडल को अपनाने के बाद देखा गया कि जहां पहले सूखे में फसल नहीं टिकती थी, वहां अब बाजरा, ज्वार और दालें उगने लगीं.

भारत के इन क्षेत्रों के लिए बेस्ट है ये मॉडल

अगर बात करें भारत की तो राजस्थान, बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, विदर्भ, तेलंगाना और कर्नाटक के कई हिस्से सालों से पानी की कमी से जूझ रहे हैं. यहां के किसानों की हालात अफ्रीकी किसानों जैसी ही है. ऐसे में ट्री-अंडर-फार्मिंग मॉडल भारत के लिए एक आसान टिकाऊ और सस्ता समाधान बन सकता है, क्योंकि इसमें महंगे साधनों या ज्यादा खर्च की जरूरत नहीं होती ऐसे में भारत के किसानों के लिए ये मॉडल किसी वरदान से कम साबित नहीं होगा.

भारत के किसान उगा सकते हैं ये पेड़

भारत में नीम, खेजड़ी, करंज, बबूल, शीशम, बेर और इमली जैसे पेड़ सूखे यानी रेगिस्तान वाली जमीनों में भी अच्छे से टिक जाते हैं. ऐसे में अगर किसान इन पेड़ों को खेतों में सही तरीके से लगाएं और उनके साथ फसल उगाएं, तो उत्पादन पर सकारात्मक असर पड़ सकता है. पेड़ों की छाया से खेत का तापमान भी कम रहेगा और जमीन जल्दी सुखेंगे भी नहीं. ऐसे में भारत के सूखे क्षेत्रों में इस मॉडल को अपनाने से किसानों की कमाई का जरिया मिलेगा और पेड़ों से लकड़ी, पशुओं के लिए चारा और फल भी मिलेगा. इससे किसान की आमदनी के कई रास्ते खुलेंगे. खासकर सूखे के समय जब फसल खराब हो जाती है, तब भी पेड़ किसान का सहारा बना रहेगा.

भारत के सूखे इलाकों के लिए उम्मीद

अगर भारत सरकार इन क्षेत्र को किसानों को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस मॉडल को अपनी योजनाओं से जोड़ दे तो ये किसानों के लिए सोने पर सुहागा हो जाएगा. VB-G RAM G, प्राकृतिक खेती और एग्रोफोरेस्ट्री जैसी योजनाओं के जरिए किसानों को जागरूक किया जा सकता है. ऐसे में किसानों और सरकार को ये समझाना जरूरी है कि पेड़ खेती के दुश्मन नहीं, बल्कि दोस्त हैं. कुल मिलाकर अफ्रीका का ट्री-अंडर-फार्मिंग मॉडल भारत के सूखे इलाकों के लिए उम्मीद की नई किरण बन सकता है. अगर किसान और सरकार मिलकर इसे अपनाएं, तो बंजर जमीन भी धीरे-धीरे हरी हो सकती है और किसानों की जिंदगी बदल सकती है. 

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